Friday, October 19, 2007

जो चाहोगे वही मिलेगा

माइकेल जे. लोज़ियर की ताज़ा किताब लॉ ऑफ अट्रेक्शन: द साइंस ऑफ अट्रेक्टिंग मोर ऑफ व्हाट यू वाण्ट एण्ड लेस ऑफ व्हाट यू डोण्ट जीवन की एक महत्वपूर्ण गुत्थी को सुलझाने और जीवन पथ को सुगम बनने का एक दिलचस्प प्रयास है. जीवन में कई बार ऐसा होता है कि आप किसी चीज़ के बारे में शिद्दत से सोचते हैं और अनायास वह आपको मिल जाती है, आप अपने किसी प्रिय को याद करते हैं और अचानक वह आपके सामने आ जाता है. आप सोचते हैं कि यह या तो संयोग है या भाग्य. लेकिन लोज़ियर कहते हैं कि यह लॉ ऑफ अट्रेक्शन का परिणाम है.
अपनी लॉ ऑफ अट्रेक्शन की अवधारणा को समझाते हुए लोज़ियर बताते हैं कि आप अपने जीवन में उसी को अपनी तरफ खींचते और प्राप्त करते हैं जिस पर आप अपनी ऊर्जा और ध्यान केन्द्रित करते हैं. कभी ऐसा आपके चाहने से, आपके जाने में होता है, कभी अनजाने में. बकौल लोज़ियर, हमारे जीवन में सब कुछ ऐसी ऊर्जा से निर्मित है जो एक खास स्तर पर कम्पायमान होती रहती है. जब किसी के मन में कुविचार आते हैं तो नकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है. अधिकांश भाषाओं में ऐसे अनेक मुहावरें और कहावतें पाई जाती हैं जिनसे इस लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन की पुष्टि होती है, जैसे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे, बर्ड्स ऑफ द सेम फेदर फ्लॉक टुगेदर आदि.

लोज़ियर अपनी बात को और साफ करते हुए कहते हैं कि हम जिस तरह के भाव अपने मन में संचारित करते हैं, लॉ ऑफ अट्रेक्शन की वजह से वैसे ही और भाव उनके पास आते हैं. हमारी देह में भावों का यही कम्पन अनुभूतियों में तब्दील होता चलता है. उदाहरणार्थ, जब हम उत्साह, प्रेम, आत्म विश्वास या संतोष का अनुभव करते हैं तो यह कम्पन सकारात्मक होता है. इसके विपरीत, जब हम उदास, तनावग्रस्त, क्रुद्ध या लज्जित अनुभव करते हैं तब हमारा कम्पन नकारात्मक होता है. यही कारण है कि सुन्दर या प्रीतिकर को देखकर हम अच्छा अनुभव करते हैं और कुरूप या अप्रीतिकर को देखकर बुरा अनुभव करते हैं.
कहा भी जाता है कि हम अपना यथार्थ खुद रचते हैं. चाहे हम जान-बूझ्कर ऐसा करें या अनजाने में, हम सदा ही अपनी अनुभूतियों के अनुरूप ही व्यक्तियों और स्थितियों को आकृष्ट करते हैं. हम लगातार जैसा सोचते हैं, लॉ ऑफ अट्रेक्शन वैसी ही अनुभूतियों को उपजाकर तदनुरूप स्थितियां निर्मित कर देता है. और इसीलिए लॉज़ियर इस लॉ के ज़रिये हमें यह सिखाते हैं कि हम किस तरह उसे अपनी तरफ आकृष्ट कर सकते हैं जो हमें वांछित है और कैसे उसे दूर रख सकते हैं जिसे हम नहीं चाहते.

लॉज़ियर ऐसा करने के लिए एक त्रि-सूत्रीय फॉर्मूला सुझाते हैं. फॉर्मूला बहुत सरल है.
1. अपनी आकांक्षाओं को पहचानें अर्थात अपने जीवन के तमाम क्षेत्रों की विषमताओं को सीमित करें,
2. अपनी अनुभूतियों को उसके अनुरूप ढालें, अर्थात जो आप चाहते हैं उसी पर ध्यान केन्द्रित करें और जो नहीं चाहते हैं, उसकी तरफ से ध्यान हटायें, और
3. इसे विकसित होने दें, यानि ऐसा करने में जो मानसिक रुकावटें हैं , उन पर काबू पाएं.

इन तीन सूत्रों की क्रियान्विति के लिए लॉज़ियर कुछ व्यावहारिक तकनीकें भी सुझाते हैं और कहते हैं कि इनके सतत प्रयोग और अभ्यास से आप अपने सपनों को हक़ीक़त में बदल सकते हैं.

किताब रोचक तो है ही, सकारात्मक सोच का सहज विकास कर आपके जीवन को बेहतर बनाने के लिहाज़ से उपयोगी भी है. लोज़ियर कोई नई बात तो नहीं करते, लेकिन हमारी जानी हुई बात को नए, विश्वसनीय और प्रभावशाली तरीके से पेश ज़रूर करते हैं. लोज़ियर खुद कहते हैं कि वे अपने पाठक को यह नहीं सिखा रहे कि वे जीवन में कुछ कैसे हासिल करें, क्योंकि इस किताब को पढे बिना भी हम में से हरेक कुछ न कुछ तो हासिल करता ही रहता है. लोज़ियर तो बहुत सहज और सम्प्रेषणीय भाषा और शिल्प में केवल यह बताते हैं कि हम जो कर रहे हैं उसे और बेहतर तरीके से कैसे करें. कैसे प्रयत्न पूर्वक कुछ हासिल करें, कैसे जीवन में जो काम्य है उसे अपनी ओर खींचने में सक्षम बनें और कैसे प्रयत्नपूर्वक उसे दूर रखें जिसे हम पास नहीं आने देना चाहते. अंतर केवल प्रयत्न का है. जो हम अनायासम, बिना प्रयत्न के हासिल कर रहे हैं, अगर समझ कर, प्रयत्न कर उसे हासिल करना चाहेंगे तो अधिक सफलता मिलना निश्चित है. इस तरह, लॉ ऑफ अट्रेक्शन हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को बेहतर बनाने में मददगार होने का प्रयास करती है. किताब हमें अपने शब्दों और विचारों के बारे में और अधिक सजग होने के लिए प्रेरित करती है और कम से कम इस बात के महत्व पर कोई असहमति नहीं हो सकती.
◙◙◙

2 comments:

Anita kumar said...

आप ने बहुत ही सरल तरीके से लाजियर की बातें रखी हैं , ये सौलह आने सच है इस मे तो कोई दो राय नही, इस किताब का जिक्र तो किसी साइकॉलोजिस्ट को करना चाहिए था…क्या इसी विषय से आप जुड़े हुए हैं।

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

धन्यवाद, अनिता जी.
मैं तो पूरी ज़िन्दगी हिन्दी पढाता रहा हूं और अब सेवा निवृत्त हूं.
मैं यहां राजस्थान के लोकप्रिय अखबार राजस्थान पत्रिका में एक साप्ताहिक स्तम्भ 'वर्ल्ड ऑफ बुक्स' शीर्षक से लिखता हूं जिसमें दुनिया की एकदम नई प्रकाशित और चर्चित किताबों की चर्चा करता हूं. यह किताब भी इसी क्रम में पढी थी और यह टिप्पणी उसी कॉलम में छपी थी. अपनी टिप्पणियां इस ब्लॉग पर डालता रहता हूं.