Tuesday, September 4, 2018

फ़िनलैण्ड में हैं दुनिया के सबसे ज़्यादा खुशहाल लोग!


संयुक्त राष्ट्र संघ का सस्टेनेबल डेवलपमेण्ट सोल्यूशंस नेटवर्क पिछले कुछ बरसों से हर साल विश्व खुशहाली रिपोर्ट ज़ारी करता है. इस बरस की रिपोर्ट में कई चमत्कारी उठाव-गिराव हुए हैं, मसलन अमरीका अपनी फिसलन बरक़रार रखते हुए पांच सीढ़ियां और नीचे उतरकर अठारहवें स्थान पर जा टिका है और फ़िनलैण्ड पांच सीढ़ियां  छलांग कर पहली पायदान पर जा पहुंचा है. बहुत स्वाभाविक है कि हम यह जानना चाहें कि हम और हमारे पड़ोसी देश इस सूची में कहां हैं. तो जान लीजिए कि 156 देशों की सूची में भारत 133 वें स्थान पर है. हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका 116, बांग्ला देश 115, भूटान 97 और पाकिस्तान 75 वें स्थान पर हैं.

कनाडा की ब्रिटिश कोलम्बिया यूनिवर्सिटी  के प्रोफ़ेसर और इस विश्व खुशहाली रिपोर्ट के सह-सम्पादक जॉन हैलीवेल का कहना है कि खुशहाली की इस रिपोर्ट के माध्यम से पूरी दुनिया में रहन-सहन के स्तर को नापा जाता है. उनका कहना है कि जीवन स्तर को बेहतर बनाने में किसी देश की जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के साथ-साथ वहां के निवासियों की सेहत और लम्बी उम्र का भी महत्व होता है. लेकिन इनके साथ-साथ लोगों का एक दूसरे से जुड़ाव, आपसी सहायता करने और सहारा देने का भाव और अपने फ़ैसले खुद करने की आज़ादी का होना भी बहुत अहमियत रखता है. कहना अनावश्यक है कि फ़िनलैण्ड के लोगों में ये बातें सबसे ज़्यादा पाई गईं. यहीं एक मज़ेदार बात भी याद कर लें कि रीडर्स डाइजेस्ट वालों ने एक टेस्ट किया और पाया कि सबसे ज़्यादा बटुए हेलसिंकी में ही उनके मालिकों को लौटाए गए. वैसे पूरे ही फ़िनलैण्ड के बारे में यह बात सर्व विदित है कि वहां अगर कोई पैसों से भरा बटुआ कहीं भूल जाए तो उसे कोई हाथ भी नहीं लगाता है और एक-दो दिन बाद भी वो बटुआ वहीं पड़ा मिल जाता है. इसी प्रसंग से यह बात भी याद आती है कि मिन्ना तरवामाकी नामक एक बैले नर्तकी किसी पार्क में गई, कुछ समय वहां रुकी और फिर उठ कर चली गई. रास्ते में उसे याद आया कि वो अपना पर्स तो पार्क की बेंच पर ही भूल आई है. लेकिन इस बात से वो तनिक भी विचलित या परेशान नहीं हुई, क्योंकि उसे इस बात  का पक्का भरोसा था कि बटुआ वहीं पड़ा रहेगा, कोई उसे छुएगा भी नहीं.  यहीं आपको यह बात भी बताता चलूं कि सकारात्मक बातों को बढ़ावा देने वाली एक कम्पनी पॉज़िटिवॉरिट ओए ने पिछले बरस इसी बैले नर्तकी मिन्ना तरवामाकी को फ़िनलैण्ड की सबसे खुशहाल हस्ती के रूप में नामांकित किया था.

लेकिन बहुत मज़े की बात यह है कि जिस फ़िनलैण्ड को इस विश्व खुशहाली रिपोर्ट में पहले स्थान पर देखकर हमें रश्क़  हो रहा है, खुद उसी देश के नागरिक इस रिपोर्ट से सहमत नहीं हैं! और इन असहमतों में यह मिन्ना तरवामाकी भी शामिल है. इन असहमतों का कहना है कि यह रिपोर्ट  फ़िनलैण्ड के लोगों की असली खुशी को अभिव्यक्त नहीं कर पा रही है. हैप्पीनेस रिसर्च इंस्टीट्यूट के सीईओ माइक वाइकिंग का कहना है कि फ़िनलैण्ड के लोगों को इस सर्वे रिपोर्ट पर हैरानी शायद इसलिए भी हुई क्योंकि वे समझ नहीं पाए कि सर्वे के माध्यम से किस चीज़ को नापा जा रहा है. इनका यह भी कहना है कि फ़िनलैण्ड के लोग  भावनात्मक रूप से अंतर्मुखी होते हैं. वे कभी भी खुलकर अपनी खुशी या नाराज़गी प्रकट नहीं करते हैं. फ़िनलैण्ड के लोग अपनी भावनाओं को दबाए रखना अच्छी तरह से जानते हैं. इसे वे सिसू कहते हैं, जिसका अर्थ होता है ताकत, वैराग्य और लचीलापन. ये लोग भावनाओं को दबाए रखने में ही अपनी ताकत की कामयाबी मानते हैं.

एक और बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि फ़िनलैण्ड की सरकार बहुत संवेदनशील और अपने नागरिकों के प्रति स्नेहिल है. यहां मानवाधिकारों का बहुत ध्यान रखा जाता है और लैंगिक समानता, रोज़गार  और पर्यावरण सम्बंधी फैसले करते वक़्त बहुत छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान दिया जाता है. बहुत स्वाभाविक है कि जनता के प्रति सरकार की यह सजग संवेदनशीलता खुशियों में वृद्धि करती है. फ़िनलैण्ड की गिनती दुनिया के सबसे कम भ्रष्ट और सामाजिक रूप से सर्वाधिक प्रगतिशील देशों में होती है. यहां की पुलिस को बेहद विश्वसनीय और बैंकों को सबसे ज़्यादा भरोसेमंद माना जाता है. एक अचरज भरी बात यह है कि इन नॉर्डिक देशों में नागरिक सारी दुनिया में सबसे ज़्यादा कर चुकाते हैं लेकिन उन्हें इसकी कोई शिकायत नहीं है. वे मानते हैं कि उच्च गुणवत्ता वाले जीवन के लिए यह ज़रूरी है. उन्हें निशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं और विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा सुलभ है. इन्हीं सब वजहों से यह स्थिति बनी है कि  जितने खुशहाल फ़िनलैण्ड के मूल निवासी हैं उतने ही खुशहाल वे लोग भी हैं जो बाहर से आकर यहां बसे हैं!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक स्तम्भ कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 04 सितम्बर, 2018  को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.