Friday, November 10, 2017

पेरू में सौंदर्य प्रतियोगिता में उठी स्त्री हक़ की आवाज़

लातिन अमरीकी देशों में पेरू का एक विशेष स्थान है. मात्र 31.77 मिलियन की आबादी वाले इस देश ने अपनी आर्थिक नीतियों के सफल क्रियान्वयन से पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की है. पिछले एक दशक में इस देश ने अपनी गरीबी की दर को घटा कर आधा कर लिया  है और इससे यहां के सत्तर लाख लोग जो कि आबादी का 22 प्रतिशत हैं, गरीबी से उबर चुके हैं.  लेकिन हाल में इस देश का नाम एक और वजह से सुनने को मिला. यह प्रकरण भी मिसाल पेश करने का ही है. यहां एक सौंदर्य प्रतियोगिता आयोजित होती है जिसमें पेरू सुंदरी (मिस पेरू) का चयन किया जाता है.

दुनिया के और बहुत सारे देशों की ही तरह पेरू में भी सौंदर्य प्रतियोगिताओं का एक सुनिश्चित तौर-तरीका है. अन्य बहुत सारे चयन उपक्रमों से गुज़रने के बाद चुनिंदा सुंदरियों को एक कतार में खड़ा किया जाता है और फिर उनमें से एक-एक करके आगे आती है और अपनी  देह के माप (वक्ष-कटि,नितम्ब) के आंकड़े उपस्थित विशिष्ट दर्शक समुदाय के सामने प्रस्तुत करती हैं. पेरू का यह समारोह वहां के राष्ट्रीय टीवी नेटवर्क पर भी सजीव प्रसारित होता है और इस बार के प्रसारण के लिए कहा जाता है कि वह वहां के सर्वाधिक देखे जाने वाले कार्यक्रमों में से एक था.

सब कुछ बहुत व्यवस्थित तरीके से चल रहा था. दर्शक भी शाम का भरपूर आनंद ले रहे थे. तभी सुंदरियों के माइक पर आने की घोषणा हुई और पहली सुंदरी ने आकर कहा, “मेरा नाम है कैमिला केनिकोबा. मैं लीमा का प्रतिनिधित्व कर रही हूं. मुझे यह बताना है कि मेरे देश में पिछले नौ बरसों में भ्रूण हत्या के 2202 केस दर्ज़ हुए हैं.” जो लोग 32-26-33 जैसे आंकड़े सुनने की  उम्मीद कर रहे थे उन्हें एक झटका तो लगना ही था. वे इस झटके से उबर पाते उससे पहले दूसरी सुंदरी माइक पर आई, और बोली: “मेरा नाम है कारेन क्यूटो और मैं लीमा का प्रतिनिधित्व करती हूं. मुझे यह बताना है कि मेरे देश में इस बरस 82 भ्रूण हत्याएं हुई हैं और 156 भ्रूण हत्याओं के प्रयास हुए हैं.” और इसके बाद तो जैसे एक सिलसिला ही बन गया. “अलमेंन्द्रा मेरोक़ुइन के  अभिवादन स्वीकार कीजिए. मैं कैनेट से हूं और बताना चाहती हूं कि 25 प्रतिशत लड़कियों और किशोरियों के साथ उनके स्कूलों में बदसुलूकी होती है.” बेल्जिका गुएरा ने कहा, “मुझे यह बताना है कि विश्वविद्यालयों की 65 प्रतिशत युवतियों के साथ उनके साथी ही बदसुलूकी करते हैं.”  और फिर आई रोमिना लोज़ानो: “मेरा आंकड़ा यह है कि सन 2014 से अब तक 3114 स्त्रियां अनुचित  बर्ताव की शिकार हुई हैं.” रोमिना को इस प्रतियोगिता की विजेता घोषित किया गया और वे इसी माह लास वेगस में आयोजित होने वाले मिस यूनिवर्स पेजेण्ट में अपने देश की नुमाइंदगी करेंगी.

बेशक प्रतियोगी युवतियों का यह कदम आकस्मिक नहीं, पूर्व नियोजित था. इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि जब ये सुंदरियां अपने आंकड़े प्रस्तुत कर रही थीं तब नेपथ्य में एक स्क्रीन पर अखबारों में छपी इसी तरह की खबरों की कतरनें दिखाई जा रही थीं. ज़ाहिर है कि ऐसा बिना पूर्व तैयारी के मुमकिन नहीं था. बाद में यह बात सामने आ भी गई कि इन युवतियों ने आयोजकों की सहमति से ही यह किया था. वैसे, पेरू में स्त्रियों  के खिलाफ हिंसा एक विकट समस्या मानी जाती है, और पिछले अगस्त में राजधानी लीमा में इसके खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन भी  हो चुका है. असल में तब घरेलू हिंसा का एक हाई प्रोफाइल मामला खूब  चर्चित रहा था जिसमें  एक वकील को उसका पूर्व बॉय फ्रैण्ड होटल के रिसेप्शन पर बालों से खींचता हुआ दर्शाया गया था. यह प्रदर्शन इतना ज़ोरदार था कि टाइम पत्रिका ने इसे अपने चुनिंदा सौ की सूची में शामिल किया था. तब से अनेक बार पेरू में स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ें उठती रही हैं.

इस प्रतियोगिता के समापन खण्ड में हर प्रतियोगी के सामने यह सवाल रखा गया कि वे अपने स्तर पर स्त्रियों के खिलाफ़ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए क्या करना चाहेंगी. इस सवाल के जवाबों के दौरान जहां यह बात सामने आई कि हर प्रतियोगी स्त्री के खिलाफ बदसुलूकी को बहुत गम्भीरता से लेती है, अनेक मौलिक और उपयोगी सुझाव भी सामने आए. इस कार्यक्रम के दर्शकों का खयाल है कि भले ही सौंदर्य प्रतियोगिताएं स्त्री को एक वस्तु के रूप में पेश करती हैं और इनका अपना व्यावसायिक एजेण्डा  होता है, इन्हें बहुत बड़ा समुदाय रुचि पूर्वक देखता है और इसलिए इस मंच से स्त्री पर होने वाले अत्याचारों-अनाचारों  का मुखर विरोध जन चेतना जगाने के लिहाज़ से बहुत महत्व रखता है. सौंदर्य प्रतियोगिता में आयोजकों की सहमति से इस तरह का प्रतिरोध कर पेरू की सुंदरियों ने पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल कायम की है, और इस मिसाल को  सर्वत्र सराहा जा रहा है.  

●●●
जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत शुक्रवार, 10 नवम्बर, 2017 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.