Tuesday, August 13, 2019

रिश्तों की मज़बूती के लिए अच्छी नींद भी बहुत ज़रूरी !


यह बात सन 2012 में ही सामने आ चुकी थी. एक संस्था बेटर स्लीप काउंसिल ने अपने सर्वे में पाया था कि हर चार में से एक दम्पती रात को बेहतर और अबाधित निद्रा लेने के लिए अलग-अलग सोते हैं. इसी बात को आगे बढ़ाया पिछले बरस एक रिसर्च कम्पनी वन पोल ने. उसने एक शैया निर्माता कम्पनी के  लिए किये गए सर्वे में पाया कि अमरीका के कुल दो हज़ार  उत्तरदाताओं में से छियालीस प्रतिशत की आकांक्षा अपने जीवन साथियों से अलग शयन करने की थी. असल में आहिस्ता-आहिस्ता  पूरी दुनिया में यह हो रहा है कि दम्पती अलग-अलग कमरों में या फिर कम से कम अलग अलग पलंगों पर सोना पसंद करने लगे हैं. और जैसे हमें चौंकाने के लिए इतना ही पर्याप्त न हो, न्यूयॉर्क शहर की एक जानी-मानी मनश्चिकित्सक ने तो यह तक कह दिया था कि “कुछ दम्पतियों का तो यह खयाल भी है कि अलग-अलग सोने से उनके रिश्ते और मज़बूत हो गए हैं.” अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया कि ऐसे दम्पतियों का कहना था कि एक दूसरे की भिन्न भिन्न आदतों के कारण नींद में आने वाले ख़लल से मुक्ति की कल्पना ही उनके लिए इतनी सुकून दायक थी कि वे लोग अतीत में एक दूसरे की जिन बातों से क्षुब्ध होते थे उनको भुलाकर  अपने रिश्तों की अन्य सुखद बातों पर ध्यान केंद्रित कर पा रहे थे. 

इस सारी बात के मूल में यह हक़ीक़त है कि एक ही शयन कक्ष में सोने वाले युगल अपने साथी की बहुत सारी बातों, जैसे खर्राटे भरना, मुंह से बदबू आना, नींद में करवटें बदलना या हाथ-पांव चलाना, उजाले में नींद आने का अभ्यास  वगैरह के कारण परेशान होते हैं. यह परेशानी जब अधिक बढ़ जाती है तो इससे स्वास्थ्य  विषयक अनेक दिक्कतें तो पैदा होती ही हैं, चिड़चिड़ाहट भी बढ़ने लगती है और इन सबकी परिणति वैवाहिक सम्बंधों के बिगड़ने में होती है. सन 2016 में जर्मनी की न्यूरेम्बर्ग यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध कार्य से पता चला कि नींद में ख़लल और रिश्तों में तनाव इन दोनों में चोली-दामन का साथ है. वैसे, सन 2013 में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी,  बर्कले में हुए एक शोध में यह बात पहले ही कही जा चुकी थी कि पति पत्नी में से किसी एक की नींद विषयक आदतों की वजह से जब दूसरे की नींद खराब होती है तो उसका सीधा असर उनके वैवाहिक सम्बंधों पर पड़ता है. और इसलिए समझदार दम्पती  एक दूसरे की सुविधा-असुविधा का खयाल कर सप्ताह में कुछ दिन अलग-अलग कमरों में सोने लगे हैं. वे कहते हैं कि यह चुनाव से ज़्यादा किसी समस्या के व्यावहारिक समाधान  का मामला है.

इस समाधान के अनेक रूप हैं. कमरे अलग हो सकते हैं, या फिर एक ही कमरे में बिस्तर अलग-अलग हो सकते हैं. वैसे इस समस्या पर अधिक विचार पश्चिम में हुआ है और या फिर हमारे यहां सुविधा सम्पन्न लोगों में, क्योंकि शेष के पास तो वैसे ही कोई विकल्प नहीं होता है. उन्हें तो जो है और जैसा  है में ही ज़िंदगी बितानी होती है.  वैसे भी पश्चिम में व्यक्तिवाद,  निजी स्पेस और अपनी शर्तों पर जीवन जीने का का आग्रह हमारे यहां की तुलना में बहुत ज़्यादा है. अब देखिये ना, बाल्टीमोर की 45 वर्षीया टीना कूपर की शिकायत है कि उन्हें देर रात तक जगे रहना अच्छा लगता है जबकि उनके जीवन साथी की आदत सुबह सबेरे जल्दी उठ जाने की है. उन्हें उठते ही सूरज की रोशनी को देखना पसंद है जबकि टीना जी को यह सुखद नहीं लगता. वे घुप्प अंधेरा पसंद करती हैं. उन्हें कुछ आवाज़ों में नींद आती है जबकि उनके साथी को नींद में डूबने के लिए गहरे सन्नाटे की तलब होती है. उनके साथी को कठोर गद्दे पर नींद आती है जबकि खुद उन्हें मुलायम और तकियों से भरा गद्दा अच्छा लगता है. अब आप ही सोचिये कि जिनकी आदतों और रुचियों में इतना ज़्यादा फ़र्क़ हो वे भला एक बिस्तर तो क्या एक कमरे में भी कैसे सो सकते हैं?

इस सारी चर्चा का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि बहुत सारी शोधों और अध्ययनों से यह बात  पता चली है कि पुरुषों की तुलना में स्त्रियां अपने जीवन साथी की अनुचित हरकतों और आदतों से अधिक प्रभावित होती हैं और इसलिए वे ही समस्या के इस समाधान का अधिक पक्ष भी लेती हैं. सन 2007 में एक जर्नल स्लीप एण्ड बायोलॉजिकल रिद्म्स में इस तरह का अध्ययन प्रकाशित हो चुका है और उसे प्राय: उद्धृत किया जाता है.

भले ही हम लोग यह मानने के अभ्यस्त रहे हैं कि दम्पती की रात एक कमरे में बीतनी चाहिए, न्यूयॉर्क के एक बड़े मनोवैज्ञानिक की यह बात भी ग़ौर तलब तो है ही: “जो युगल अलग-अलग कमरों में सोते हैं वे एक दूसरे के साहचर्य को मिस भी करते हैं और यह बात उनके दाम्पत्य जीवन को अधिक उत्तेजक और दिलकश बना देती है.”

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 13 अगस्त, 2019 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.