Tuesday, September 25, 2018

लड़की, जब तक तुम पति नहीं जुटा लेती तुम्हारा जीवन व्यर्थ है!


सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में, जब चीन तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या की समस्या से त्रस्त था, तत्कालीन सरकार ने यह व्यवस्था लागू कर दी थी कि एक  युगल एक ही संतान को जन्म दे सकता है. व्यवस्था तो लागू हो गई, और समस्या पर काबू भी पा लिया गया,  लेकिन अब अध्येतागण यह पा रहे  हैं कि इस व्यवस्था के बाद जो संतानें पैदा हुईं वे ज्यादा निराशावादी हैं, जोखिम लेने से कतराती हैं और प्रतिस्पर्धा से बचना चाहती हैं. एक ही संतान को जन्म देने की सरकारी नीति के पालन का एक और असर यह हुआ कि बहुत सारे युगलों ने गर्भस्थ कन्या शिशु को कोख  में ही मार डाला  और अब विशेषज्ञों को आशंका है कि सन 2020 तक आते-आते कम से कम तीन करोड़ चीनी अपने लिए दुल्हन नहीं जुटा पाएंगे.

लेकिन कोढ़ में खाज यह कि संख्या में कम होने के बावज़ूद चीन में लड़कियों को शादी के लिए लड़के नहीं मिल रहे हैं.  असल में विवाह और पारिवारिक स्थितियों के मामले में चीन और भारत में अद्भुत साम्य है. वहां भी मां-बाप की पहली चिंता लड़की के हाथ पीलेकर देने की ही है और यह  काम वहां लगातार कठिन होता जा रहा है. कई बरसों से शंघाई में रह रही खासी पढ़ी लिखी और उम्दा नौकरी कर रही अट्ठाईस वर्षीया एक लड़की ड्रीम बताती है कि उसकी मां प्राय: इस बात पर दुखी होती हैं कि उसका कोई पुरुष मित्र क्यों नहीं है. अगर पुरुष मित्र होता तो मां को उसकी शादी की आस बंधती. उधर ड्रीम का कहना है कि चीनी मर्द अभी भी पत्नी के रूप में घर के काम काज में निपुणसेवा-भावी स्त्री की ही तलाश में रहते हैं. चीन में लड़की को एक ऐसी वस्तु के रूप में देखा जाता है जो चौबीस साल की होने के बाद अपना आकर्षण और महत्व खो देती है.  और इसके बाद  ड्रीम और उस जैसी लड़कियों को शेंग नुनाम से पुकारा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बची-खुची स्त्रियां. 

लेकिन यह समय तो बाज़ार का है. वह हर जगह अपने लिए सम्भावनाएं खोज लेता है. प्रौढ़ावस्था की तरफ कदम बढ़ा रही स्त्रियों की मदद के लिए चीन में बहुत सारे व्यावसायिक प्रतिष्ठान खुल गए हैं जो उन्हें कैसे तलाश करें बॉय फ्रैण्डविषय पर ज्ञान देने का पुण्य कमाते हुए ख़ासी कमाई भी कर रहे हैं. ऐसे ही एक प्रतिष्ठान वायम क्लब के अध्यक्ष है श्री  एरिक जो पिछले दस बरसों से इस काम में लगे हैं. शुरुआत  तो उन्होंने पुरुषों की सेवा से की थी लेकिन अब ज़्यादा सम्भावनाएं स्त्रियों की सेवा में नज़र आईं तो अपना कार्य क्षेत्र बदलने में तनिक भी संकोच नहीं किया. एरिक के क्लब में पढ़ाई सस्ती नहीं है. वे एक माह की फीस कोई छह हज़ार युआन (एक युआन करीब ग्यारह रुपये के बराबर) लेते हैं. लेकिन उनके काम का तरीका बहुत व्यवस्थित है. मसलन वे अपने यहां आने वाली स्त्रियों को  यह सिखाने के लिए कि वे किस तरह योग्यपुरुष तक पहुंचें सैद्धांतिक ज्ञान देने के साथ-साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण भी प्रदान करते हैं. इस के अंतर्गत प्रशिक्षणार्थियों को किसी लोकप्रिय शॉपिंग मॉल में जाकर खड़ा होना होता है. वहां इन्हें यह प्रदर्शित करते हुए कि जैसे उनके मोबाइल की बैटरी चुक गई है, किसी उपयुक्त प्रतीत होने वाले पुरुष के पास जाकर  यह अनुरोध करना होता है कि वह अपने मोबाइल से उनकी फोटो खींच दे. ज़ाहिर है कि फोटो खींचने के बाद  वह पुरुष उस स्त्री को फोटो भेजेगा भी. और इस तरह बिना मांगे ही उसका मोबाइल नम्बर स्त्री के पास आ जाएगा. फिर उनके बीच कुछ औपचारिक बातचीत होगी, और फिर आहिस्ता-आहिस्ता  उनके बीच की दूरियां नज़दीकियों में तब्दील होती जाएगी. 

ऐसी ही एक अन्य कम्पनी है डायमण्ड लव जो विशेष रूप से अमीर ग्राहकों की सेवा करती है. यह कम्पनी दस हज़ार से लगाकर दस लाख युआन तक का शुल्क लेकर उपयुक्त जीवन साथी तलाश कर देती है. यह कम्पनी अपने कार्यकर्ताओं को लव हण्टर्स के नाम से  पुकारती है. ग्राहक अपने जीवन साथी के लिए जो-जो गुण बताता है उनको ध्यान में रखकर ये लव हण्टर्स सम्भावित जीवन साथी छांटते है. इस कम्पनी को हमारे यहां की जोड़ी बनाने वाली कम्पनियों जैसा माना जा सकता है. इनके अलावा शंघाई के पीपुल्स पार्क में हर सप्ताहांत पर एक मैरिज़ मार्केट भी लगता है जहां अपनी संतानों का विवाह करवाने के इच्छुक मां-बाप इकट्ठे  होकर अपने बच्चों के बारे में सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं. कहना अनावश्यक है कि यहां अपेक्षाकृत कम समृद्ध लोग आते हैं.

आर्थिक और औद्योगिक  क्षेत्र में चीन ने भले ही कितनी ही प्रगति कर ली हो, जहां तक स्त्रियों का सवाल है, खूब पढ़ाई लिखाई करके और अच्छी नौकरी पाकर भी वे सुखी कहलाने की अवस्था में नहीं आ सकी हैं.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 25 सितम्बर, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.