Tuesday, January 19, 2016

एक प्रतिबन्धित किताब की रोचक दास्तान

पूरी दुनिया में ऐसी अनगिनत किताबें हैं जिन्हें विविध कारणों से प्रतिबन्धित किया गया है. प्रतिबन्ध की दो बड़ी वजहें अश्लीलता और राजनीति रही हैं, हालांकि केवल ये ही दो वजहें नहीं रही  हैं. एक समय था जब किताब का केवल भौतिक अस्तित्व हुआ करता था. तब यह प्रतिबन्ध जितना प्रभावी होता था उसकी तुलना में आज प्रतिबन्ध एक रस्म अदायगी बन कर रह गया है. इण्टरनेट के विस्तार के बाद किताब ही क्यों, प्रतिबन्धित ऐसा क्या रह गया है जो सर्व सुलभ न हो!

ऐसी ही एक प्रतिबन्धित लेकिन सर्व सुलभ पुस्तक है मॉयन काम्फ़ (हिन्दी अर्थ: मेरा संघर्ष).  नाज़ी नेता एडॉल्फ हिटलर की यह किताब जो आंशिक  रूप से उनकी आत्मकथा और आंशिक रूप से उनके बड़बोले कथनों का खज़ाना है, पहली दफा 1925 और 1927 में दो खण्डों में प्रकाशित हुई थी और उसके बाद से इसके अनगिनत वैध-अवैध संस्करण पूरी दुनिया में छपे और बिके हैं. कहा जाता है कि 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद हर नव विवाहित जोड़े को यह किताब नाज़ी  शासन की तरफ से भेंट  में दी जाती थी.  लेकिन  द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 1945 में जर्मनी में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया और अब भले ही यह कानूनी रूप से वहां प्रतिबन्धित नहीं रह गई है, उसके बाद से आधिकारिक रूप से इसे वहां प्रकाशित ही नहीं किया गया. लेकिन अब, बीते साल (2015)  के आखिरी दिन जर्मनी के बवेरिया  राज्य के पास इसका जो कॉपीराइट था वह सत्तर बरस पूरे कर समाप्त हो गया और इस तरह इसके पुन: प्रकाशन की राह खुल गई.

यह जानना भी कम रोचक नहीं होगा कि बावज़ूद प्रतिबन्ध के, खुद जर्मनी के स्कूलों में भी अन्य नाजी सामग्री के साथ-साथ इस किताब के अंश भी पढ़ाए जाते रहे हैं. लेकिन जब म्यूनिख़ के समकालीन इतिहास संस्थान ने इसके कॉपीराइट की अवधि पूरी होने के बाद इस किताब के एक नए, लगभग 2000 पन्नों के विस्तृत और टिप्पणी युक्त संस्करण को प्रकाशित करने की बात की तो इसके प्रकाशन के विरोध में तीव्र स्वर मुखर हो गए. स्वभावत: इस विरोध का भी विरोध हुआ.

संस्थान के अध्येताओं और इतिहासकारों ने तीन साल अनथक श्रम करके जो नया संस्करण तैयार किया उसके प्राक्कथन में हिटलर के लेखन को ‘अधपका, असंगत और अपठनीय’ कहा गया है. इन विद्वानों को इस लेखन की अनगिनत व्याकरणिक त्रुटियों ने बहुत दुःखी किया. लेकिन इसके बावज़ूद इन्होंने यह समझने और समझाने का प्रयास किया कि हिटलर ने कैसे नस्ल, स्पेस, हिंसा और तानाशाही – इन चार विचारों के आधार पर अपनी नाजी विचारधारा की नींव रखी. किताब के प्रकाशन के आलोचकों को शायद इसीलिए लगा कि हिटलर की विचारधारा को समझाने-समझाने का यह प्रयास वस्तुत: उनके कुकर्मों को मुलायम करते हुए उनकी बेहतर छवि गढ़ने का एक प्रयास है.

लेकिन दूसरे पक्ष का मानना है कि किसी किताब के प्रकाशन को रोके रखना  न तो  सम्भव है और न उचित. बवेरिया राज्य के वित्तमंत्री मार्क्स सोएडर ने कहा है कि इस पुस्तक के प्रकाशन से वे  यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि इसमें कैसी निरर्थक  बातें लिखी हुई हैं और इस तरह के खतरनाक विचारों ने किस तरह पूरी दुनिया में विपदाएं पैदा की हैं. जर्मन असोसिएशन ऑफ टीचर्स के अध्यक्ष जोसेफ क्राउस ने भी  कहा कि इस नए  संस्करण को वहां के हाई स्कूल की कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि जर्मनी की नई पीढ़ी पिछली पीढ़ी द्वारा किये गए अत्याचारों को जान कर  अतिवादी सोच के खतरों के प्रति सचेत हो सके. उनका यह भी कहना था कि अगर आप किसी किताब पर रोक लगाएंगे तो तो उसके प्रति उत्सुकता और अधिक बढेगी और लोग आसानी से उपलब्ध  ऑन लाइन संस्करणों का रुख  करेंगे. इससे तो यही अच्छा होगा कि इतिहास और राजनीति के अनुभवी और प्रशिक्षित शिक्षक विद्यार्थियों को इस किताब का परिचय दें.

तो, मॉयन काम्फ़ का यह नया, सुसम्पादित और विस्तृत टिप्पणियों युक्त संस्करण अंतत: मूल देश जर्मनी में प्रकाशित हो गया है और जो प्रारम्भिक खबरें आ रही हैं उनके अनुसार लगभग पाँच किलो वज़न वाला और उनसाठ यूरो (एक यूरो लगभग  74 रुपये के बराबर है) की अच्छी खासी कीमत वाला यह संस्करण प्रकाशकों की उम्मीदों से भी अधिक बिक रहा है. खबर यह भी आई है कि प्रकाशन पूर्व ही पन्द्रह हज़ार प्रतियों का आदेश मिल जाने की वजह से प्रकाशकों को इसके चार हज़ार प्रतियों के प्रथम मुद्रणादेश के भी बढ़ाना पड़ा था और जारी होने के कुछ ही घण्टों बाद अमेज़ॉन  की जर्मन साइट पर यह अनुपलब्ध था.

क्या इस बात से किताब जैसी चीज़ पर प्रतिबन्ध लगाने वाले कुछ सबक लेंगे?  
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 19 जनवरी, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.