Tuesday, September 23, 2014

कनेक्टेड या तनहा?

यूपीए सरकार के पराभव के बाद अनकही कहानियां सुनाने वाली किताबों का एक सिलसिला ही चल निकला है. इन किताबों में से एक पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह की किताब ‘वन लाइफ इज़ नोट इनफ़’  की चर्चा उसके एक कथन की वजह से इतनी ज़्यादा हुई और सारी बहस उसी कथन पर इस हद तक अटक कर रह गई  कि किताब की बाकी बातें, लेखक का व्यक्तित्व और उसकी लेखन शैली वगैरह सब नेपथ्य में चले गए. उनकी राजनीति से हटकर जब सोचता हूं तो मैं पाता हूं कि नटवर सिंह हमारे समकालीन राजनेताओं में अपने विद्या व्यसन की वजह से विलक्षण हैं. अपने समय के साहित्यकारों, कलाकारों और दुनिया भर के राजनेताओं से भी उनका जैसा घरोपा और अपनापा है उसकी तुलना शायद ही किसी और से करना मुमकिन हो. और उनका अंग्रेज़ी गद्य – उसका तो कहना ही क्या! मज़ाल है कि उनके लिखे में से एक भी शब्द को आप किसी दूसरे शब्द से बदलना मुनासिब समझें! इस बात का बहुत शिद्द्त से एहसास तब हुआ जब कुछ बरस पहले उनकी लिखी एक किताब ‘प्रोफाइल्स एण्ड लैटर्स’ का हिन्दी अनुवाद करने का अवसर मुझे मिला. नटवर सिंह जी ने अपने मित्र, प्रांत के एक अत्यंत वरिष्ठ और समादृत साहित्यकार से अपनी इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद करने के लिए किसी का नाम सुझाने को कहा, और उन्होंने मुझ पर अपने अनुराग के चलते मेरा नाम सुझा दिया. सच कहूं तो अपनी इतर व्यस्तताओं के चलते उनके स्नेह के दबाव में ही यह प्रस्ताव मैंने स्वीकार किया था, लेकिन जब अनुवाद करना शुरु किया तो मुझे समझ में आया कि मैंने खुद को किस मुश्किल में डाल लिया है!


बेशक यह किताब बहुत रोचक थी. अपने सुदीर्घ और विविधवर्णी  दायित्वों के दौरान नटवर सिंह जी जिन शख्सियतों के नज़दीकी सम्पर्क में आए उनके सजीव व्यक्तिचित्र और बेहद रोचक संस्मरण इस किताब में हैं. एक सूची पर नज़र डालते ही आप अनुमान लगा सकेंगे कि नटवर सिंह के ये अनुभव किस मैयार के होंगे. सी. राजगोपालाचारी, ई एम फॉर्स्टर, नीरद  सी चौधुरी, लॉर्ड लुई माउण्टबेटन, विजयलक्ष्मी पण्डित, आर के नारायण, हान सुयिन, इन्दिरा गांधी, ज़िया उल हक़ और नरगिस दत्त जैसे शीर्षस्थ राजनेता, लेखक, विचारक, और कलाकारों की यादों से सजी इस किताब का हर शब्द जैसे पाठक को अनुभव-समृद्ध करने वाला है. और जैसा मैंने कहा, अंग्रेज़ी गद्य को नटवर सिंह जिस कौशल से बरतते हैं वैसा इधर विरल है. किसी अनुवादक के लिए ऐसे गद्य का अनुवाद बहुत बड़ी चुनौती खड़ी करता है. बहरहाल, मैंने इस किताब का अनुवाद किया और हिन्दी के एक प्रतिष्ठित प्रकाशन गृह से वह अनुवाद ‘चेहरे और चिट्ठियां’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ.


आज मुझे इस किताब की याद फेसबुक पर एक संदेश देखते हुए आई. जो लोग नटवर सिंह के बारे में ज़रा भी जानते हैं वे अंग्रेज़ी के महान कथाकार और सुपरिचित भारत मित्र (‘अ पैसेज टू इण्डिया’ वाले) ई एम फॉर्स्टर से उनके नज़दीकी रिश्तों के बारे में भी ज़रूर जानते हैं. स्वाभाविक ही है कि इस किताब में नटवर सिंह ने फॉर्स्टर को बेहद आत्मीयता के साथ याद किया है. वैसे फॉर्स्टर उम्र में नटवर सिंह से पचास बरस बड़े थे. कद तो खैर उनका बहुत बड़ा था ही. नटवर सिंह और फॉर्स्टर की दोस्ती चिट्ठियों और टेलीग्राम्स के ज़माने की थी इसलिए स्वभावत: इस लेख में चिट्ठियों के खूब सारे अंश हैं. प्रसंगवश यह बात भी कि फॉर्स्टर के 90 वें जन्म दिन पर लन्दन में उनके सम्मान में जो किताब प्रकाशित हुई नटवर सिंह उसमें एक मात्र भारतीय लेखक थे, और उनके लेख का शीर्षक था – ‘ओनली कनेक्ट!’  

मुझे लगता है कि आज का समय भी ओनली कनेक्ट का ही तो है. आप अपने चारों तरफ नज़र दौड़ाइये तो पाएंगे हरेक किसी न किसी से कनेक्टेड है – अपने मोबाइल पर. और इसी बात  की चर्चा  उस सन्देश में है जिसका ज़िक्र अभी मैंने किया है. इस मज़ेदार और साथ ही चिंतित करने वाले सन्देश में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन को यह कहते उद्धृत किया गया है कि “मुझे भय है कि एक दिन तकनीक मानवता पर हावी हो जाएगी. इस दुनिया में सिर्फ बेवकूफों की पीढ़ी बच रहेगी.” और इसके बाद आठ तस्वीरें देकर यह टिप्पणी की गई है कि आइन्स्टाइन की आशंका कुछ जल्दी ही साकार हो गई है. तस्वीरें बड़ी रोचक हैं. मसलन एक तस्वीर में चार युवतियां एक कार में बैठी हैं और चारों ने अपनी गर्दनें अपने मोबाइलों में घुसा  रखी हैं, तीन युवतियां एक शानदार म्यूज़ियम में भव्य पेण्टिंग्स के नीचे बैठी हैं लेकिन देख वे अपने-अपने मोबाइल स्क्रीन्स को ही रही हैं, चार दोस्त एक रेस्तरां में हैं, सामने भोजन सजा है लेकिन वे चारों अपने-अपने मोबाइल्स को देख रहे हैं... और ऐसी ही दूसरी तस्वीरें हैं! यानि ‘ओनली कनेक्ट!’ और कनेक्ट होकर भी तनहा!   

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लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम  कुछ इधर कुछ उधर के अन्तर्गत मंगलवार, 23 सितम्बर, 2014 को नटवर की चेहरे और चिट्ठियों की दुनिया शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.