बहुत लम्बे अर्से तक मानवीय यौनिक (सेक्सुअल) व्यवहार के बारे में कोई भी चर्चा किन्से रिपोर्ट्स
के ज़िक्र के बग़ैर अधूरी रही है. अल्फ्रेड किन्से इण्डियाना विश्वविद्यालय में
प्राणीशास्त्र के प्रोफेसर थे और इन्होंने किन्से
इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन सेक्स, जेण्डर एण्ड रिप्रोडक्शन की स्थापना की
थी. जिन्हें किन्से रिपोर्ट्स के नाम से जाना जाता है वे दरअसल पुरुषों और
स्त्रियों के यौनिक व्यवहारों का विश्लेषण करने वाली क्रमश: 1948 तथा 1953 में
प्रकाशित दो अलग-अलग किताबें हैं. अपने ज़माने में किन्से की ये रिपोर्ट्स खासी
विवादास्पद मानी गई थीं क्योंकि इनमें तब तक वर्जित माने जाने वाले बहुत सारे
मुद्दों पर खुलकर चर्चा की गई थी. लेकिन
इन रिपोर्ट्स के छह दशक बाद पूरी दुनिया इतनी अधिक बदल चुकी है कि हर मुद्दे पर
बहुत खुलकर बातें होने लगी हैं और उन बातों से आहत होना तो दूर की बात है, कोई
चौंकता भी नहीं है.
किन्से ने लगभग 6000 स्त्रियों से व्यक्तिगत साक्षात्कार करने के बाद
उनके यौनिक व्यवहार और इस विषयक उनकी पसन्द नापसन्द का विश्लेषण करते हुए पुरुषों
और स्त्रियों की यौनिक गतिविधियों का
तुलनात्मक खाका प्रस्तुत किया था. इसे याद करते हुए हाल ही में आए एक हज़ार से ज़्यादा स्त्रियों पर किए गए ग्लैमर
सर्वे को देखें तो जहां हम यह पाते हैं कि आज का
यह सर्वे भी किन्से की इस बात से सहमति
ज़ाहिर करता है कि मानवीय यौनिक व्यवहार में एक निरंतरता होती है लेकिन हर व्यक्ति की यौनिक पसन्द नापसन्द
परिवर्तनशील होती है, वहीं इस सर्वे में भाग लेने वाली स्त्रियों में से कम से कम
63 प्रतिशत ऐसी हैं जो अपनी यौनिक पहचान को किसी एक लेबल तक सीमित नहीं रखना चाहती हैं. इस बात को अगर थोड़ा खोलकर कहना हो तो
यों कहा जा सकता है कि ये स्त्रियां केवल पुरुषों की तरफ ही नहीं, स्त्रियों की
तरफ भी आकृष्ट हो सकती हैं और उनसे रिश्ते रख सकती हैं. इतना ही नहीं, इनमें से 47
प्रतिशत स्त्रियों ने तो खुलकर इस बात को स्वीकार भी किया है वे अन्य स्त्रियों की
तरफ आकर्षित हुई हैं. 31 प्रतिशत ने और भी आगे बढ़ते हुए अन्य स्त्रियों के साथ
यौनिक अनुभव साझा करने की बात भी स्वीकार की है. लेकिन एक मज़ेदार विरोधाभास यह भी
सामने आया कि इस सर्वे में भाग लेने वाली
स्त्रियों में से 63 प्रतिशत ने यह कहा कि
वे ऐसे किसी पुरुष को डेट नहीं करेंगी जिसने किसी अन्य पुरुष के साथ दैहिक रिश्ते
कायम किये हों.
अगर आप यह सोचते हों कि यह सब तो उस पश्चिम की बातें हैं जो बहुत उदार, खुला या जो भी आप समझते हों वो है, तो मैं बहुत विनम्रतापूर्वक आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि कृपया पोर्नहब डॉट कॉम द्वारा हाल ही में जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट पर भी एक नज़र डाल लें. पोर्नहब दरअसल एक एडल्ट
वीडियो वेबसाइट है लेकिन हाल ही में इसने
एक रिकॉर्ड लेबल लॉंच किया है, इसकी अपनी एक वस्त्र श्रंखला है, हाल ही में इसने
एक स्कॉलरशिप फण्ड निर्मित किया है और एक नया अभियान बॉडी पॉजिटिव भी इसने शुरु
किया है. तो इस पोर्नहब ने अपने सर्वेक्षण के आधार पर भारतीय महिलाओं को लेकर कुछ बड़े खुलासे
किये हैं, जो काफी चौंकाने वाले हैं. पोर्नहब के अनुसार भारत की महिलाएं
दुनिया में सर्वाधिक पोर्न देखने वाली महिलाओं में तीसरे स्थान पर हैं. पहले और
दूसरे स्थान पर क्रमश: अमरीका और यू.के. की महिलाएं हैं. ज़ाहिर है कि कनाडा,
जर्मनी फ्रांस वगैरह सब देशों की
स्त्रियां पीछे हैं. दूसरी बात यह कि औसतन दुनिया भर के पुरुषों की तुलना में
भारतीय स्त्रियां पोर्न देखने में थोड़ा-सा ज़्यादा समय बिताती हैं. तीसरी और और भी
अधिक चौंकाने वाली बात पोर्नहब के अपने दर्शकों के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर
यह है कि जहां दुनिया भर की स्त्रियां औसतन 35.3 वर्ष की उम्र में इस एडल्ट
वेबसाइट पर आती हैं, भारतीय स्त्रियां 22 वर्ष की उम्र में ही आने लगती हैं. पोर्नहब
ने अपने दर्शकों का लैंगिक आधार पर विश्लेषण करते हुए यह भी बताया है कि जहां पूरी
दुनिया में औसतन 24% महिलाएं इस वेबसाइट को देखती हैं वहीं, भारत में यह प्रतिशत
30 है. वैसे अगर खुश होना चाहें तो यह याद कर सकते हैं कि जमैका और निकारागुआ में
यह प्रतिशत क्रमश: 40 और 39 है.
किन्से रिपोर्ट और फिर ग्लैमर
के सर्वे के सन्दर्भ में पोर्नहब के वार्षिक प्रतिवेदन के इन आंकड़ों की चर्चा से
इतना तो स्पष्ट है कि जीवन के अंतरंग क्रियाकलापों को लेकर खुलेपन की बयार केवल
कुख्यात पश्चिम में ही नहीं अपने पारम्परिक भारत में भी बहने लगी है. बेशक, यह
बयार खुशी का नहीं फिक्र का ही पैगाम ला रही है.
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टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर
कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 16 फरवरी,
2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.