दो समाचार एक साथ पढ़ने को मिले. हाल ही
में जर्मनी के बोन शहर में हुई यूनेस्को की 39 वीं सालाना बैठक में दुनिया की जिन
24 जगहों को विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया, उनमें से दो फ्रांस से हैं.
आपको याद ही होगा कि सन 2010 में इस सूची
में हमारे अपने जंतर मंतर को भी शामिल किया गया था. लेकिन पहले बात फ्रांस की.
फ्रांस की जिन दो जगहों और चीज़ों को इस बार विश्व विरासत का दर्ज़ा प्रदान किया गया
है उनमें से एक है वहां की शैम्पेन इण्डस्ट्री से जुड़ी जगहें और दूसरी है वहां की
विख्यात रेड वाइन के लिए अंगूर उगाने वाला इलाका बरगण्डी. यूनेस्को ने कहा है कि
जिस शैम्पेन इण्डस्ट्री को वे विरासत का दर्ज़ा दे रहे हैं वह एक बहुत ही विशिष्ट
कलात्मक गतिविधि है जो कि अब एक कृषि-औद्योगिक उद्यम में रूपांतरित हो चुकी है. आगे
बढ़ने से पहले बताता चलूं कि दुनिया में कुल 1031 जगहों और चीज़ों को वर्ल्ड हेरिटेज
का दर्जा दिया जा चुका है, जिनमें से मात्र 32 भारत में हैं. यूनेस्को दस घोषित
मानदण्डों की कसौटी पर इन विरासत स्थलों का चुनाव करता है. ये मानदण्ड समय-समय पर संशोधित होते रहते हैं. यूनेस्को जब किसी जगह आदि को विश्व विरासत
घोषित करता है तो उसको संरक्षित करने की
पूरी ज़िम्मेदारी भी अपने ऊपर ले लेता है. इसके अलावा भी, किसी जगह के साथ विश्व
विरासत स्थल होने का तमगा जुड़ जाने से उसकी लोकप्रियता और ख्याति में वृद्धि होती
है और इस तरह उसके विकास के अनेक मार्ग खुल जाते हैं. यहीं यह बात भी
स्मरणीय है कि यूनेस्को की इस सूची में 48 स्थल खतरे में बताए गए हैं. सुखद बात यह कि भारत का एक भी
विरासत स्थल खतरे में नहीं है.
आगे बढ़ने से पहले दूसरे समाचार की चर्चा
कर लूं. भारत में एक बहुत लोकप्रिय श्यामवर्णी
पेय पदार्थ रहा है जिसे उसके हिन्दी-प्रेमी कद्रदां बूढ़ा पादरी के नाम से
जानते हैं. कहना अनावश्यक है कि यह उसके ब्राण्ड के नाम का हिन्दी अनुवाद है. सेना
में, बुद्धिजीवियों और कलाकारों में और आम लोगों में भी इस पदार्थ के प्रति क्रेज़
रहा है. इस पेय-विधा विशेष के विशेषज्ञों का कहना है कि कदाचित इस श्रेणी में यही
एक पेय है जिसे पूरी तरह जेन्युइन यानि
खरा कहा और माना जा सकता है, शेष सभी में
जो कहा जाता है वो होता नहीं है बल्कि सुगन्ध और रंग के इस्तेमाल से वैसा दिखाने का
प्रयत्न मात्र होता है. बहरहाल, बहुत लम्बे समय तक लोकप्रियता की शीर्ष पायदान पर
टिके रहने के बाद अब यह पदार्थ बिक्री के
मामले में बहुत तेज़ी से पिछड़ता जा रहा है. अगर आंकड़ों की बात करें तो यह कि
2010 से अब तक आते-आते इसकी बिक्री में लगभग 55 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. और अगर
यही हाल रहा, जो कि रहेगा ही, तो वो दिन दूर नहीं है जब यह पेय केवल उल्लेखों में
बच रहेगा. अब आप इसके पराभव की वजह भी जान लीजिए. एक ज़माने में अस्सी लाख बोतलें
हर साल तक बिक जाने वाली यह डार्क रम अपनी मर्दाना गुणवत्ता के लिए विख्यात थी.
गुणवत्ता इसकी अब भी जस की तस है, लेकिन इस बीच बाज़ार में इसके बहुत सारे
प्रतिस्पर्धी और आ गए, जिनका रंग रूप तो अलहदा था
ही, जिनके पीछे बड़े मल्टी नेशनल घरानों की बहुत बड़ी प्रचार-प्रसार की ताकत
भी थी. तो इस दुनिया में भी दीये और तूफान की कहानी शुरु हुई, और अब हम कहानी के
उस मुकाम पर हैं जहां बस तूफान के एक तेज़ झोंके की ज़रूरत है इस दीये की लौ को
सदा-सदा के लिए बुझा डालने के लिए.
तो एक तरफ फ्रांस की स्पार्कलिंग शैम्पेन
जिसकी निर्माता कम्पनी दुनिया के लक्ज़री गुड्स की सबसे बड़ी कम्पनियों में शुमार
है, और कहा जाता है कि जिसकी आर्थिक हैसियत अकूत है, और इस सबके ऊपर यह बात कि
यूनेस्को ने भी अब इसी शैम्पेन के लिए ख़ास अंगूर पैदा करने वाले बागानों, तैयार
शैम्पेन को रखने वाले भूमिगत सुरागारों,
शैम्पेन निर्माण स्थलों और इनका विपणन करने वाली जगहों यानि शैम्पेन हाउसेस को विश्व विरासत सूची में शामिल करके और
भी ज़्यादा मज़बूती प्रदान की है, और दूसरी तरह अन्तिम सांसें लेती हुई हमारी अपनी श्यामवर्णी
ओल्ड मोंक. जिस दिन इसकी लौ बुझेगी वह दिन महज़ एक उत्पाद के खत्म हो जाने की तारीख नहीं होगा. उस दिन एक
परम्परा, एक विरासत, एक गाथा भी ख़त्म होगी. लेकिन क्या यह चिंता और अफसोस की बात
नहीं होगी कि शैम्पेन और वाइन जैसी समृद्ध इण्डस्ट्रियों की तरफ अपना वरद हस्त
बढ़ाने वाली संस्था की नज़र इस बेचारे दरिद्र पेय पर नहीं पड़ी!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 14 जुलाई, 2015 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.