Tuesday, April 23, 2019

हांग कांग: एक शहर जो सिर्फ़ अमीरों के लिए है

जब भी दुनिया में वैभव, विलासिता और चमक दमक की बात होती है, हांग कांग का नाम ज़रूर आता है. हांग कांग लगभग 200 छोटे-बड़े द्वीपों का समूह है और इसका शाब्दिक अर्थ है सुगंधित बंदरगाह. माना जाता है कि यहीं पूर्व और पश्चिम का मेल होता है. सन 1997 में इंग्लैंड ने हांगकांग की संप्रभुता कई शर्तों के साथ चीन को वापस सौंपी, जिसमे प्रमुख शर्त थी हांगकांग की पूँजीवादी व्यवस्था को बनाए रखना.  चीन ने भी रक्षा व विदेश छोड़कर हांग कांग की प्रशासकीय व्यवस्था में हस्तक्षेप न करने का व पूँजीवादी व्यवस्था को आगामी पचास वर्षों तक न छेड़ने का आश्वासन दिया. चीन ने हांग कांग को एक विशिष्ट प्रशासकीय क्षेत्र घोषित कर 'एक देश दो प्रणाली' का फार्मूला अपनाया. देश के मुख्य भाग में साम्यवाद और इस विशिष्ट भाग में पूँजीवाद. अब स्थिति यह  है कि पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा अमीरों का  जमावड़ा यहीं है.  और जब हम अमीरों की बात कर रहे हैं तो आम अमीरों की नहीं, ऐसे अमीरों की बात कर रहे हैं जिनमें से हरेक की औकात तीस मिलियन डॉलर से ज़्यादा की है. यहां हर सात में से एक आदमी करोड़पति (मिलिनेयर) है और 93 व्यक्ति अरबपति (बिलिनेयर) हैं. यह एक ऐसा महानगर है जहां अकूत वैभव है. टैक्स दर बहुत कम है, कॉर्पोरेट टैक्स लगभग नगण्य़ है और नागरिकों को कोई जीएसटी नहीं चुकाना पड़ता है. गगनचुम्बी अट्टालिकाओं की भरमार है और अपराध न्यूनतम हैं.  हांग कांग में अगर कोई एक बहुत सामान्य तीन बेडरूम वाला अपार्टमेण्ट भी खरीदना चाहे तो उसे कम से कम दस मिलियन डॉलर खर्च करने के लिए तैयार रहना होगा. यह राशि भारतीय मुद्रा में सत्तर करोड़ के आसपास बैठती है. 

लेकिन जहां इतनी अमीरी है वहीं इस चकाचौंध कर देने वाली चमचमाहट  तले गहरा काला घना अन्धेरा भी है जो इस चौंध को अश्लील और असहनीय बनाता है. हांग कांग के खूब चकाचक घरों और दुनिया भर के महंगे से महंगे साजो-सामान से लबालब भरे शॉपिंग डिस्ट्रिक्ट्स से सटा हुआ ही है वह उपनगर जिसकी  संकड़ी गलियां अवैध निर्मित मकानों और टुकड़ा टुकड़ा बंटे फ्लैट्स से भरी पड़ी हैं. इसी वैभवपूर्ण हांग कांग के हर पांच में से एक बच्चा आज भी उस शिक्षा का मोहताज़ है जो उसके लिए बेहतर ज़िन्दगी के दरवाज़े खोल सकती है. हांग कांग सरकार की सदा ही इस बात के लिए आलोचना की जाती है कि उसकी नीतियां अमीरों की तरफ बहुत ज़्यादा झुकी हुई हैं और हालांकि उसके पास साधनों की कोई कमी नहीं है वह ग़रीबों की तरफ देखती भी  नहीं है. 

हालत यह है कि हांग कांग की तीस फीसदी आबादी सार्वजनिक रिहायश में रहती है और जितने लोग वहां रह पा रहे हैं उनसे कई गुना ज़्यादा वहां रहने का सपना ही देखते रह जाते हैं. हर नाम की एक 75 वर्षीया विधवा आण्टी का मामला ही लीजिए. उनका नाम  सार्वजनिक रिहायश के लिए प्रतीक्षा सूची  में है और आठ बरसों से वे बहुत छोटे और अवैध रूप से निर्मित एक उपविभाजित फ्लैट  में आठ अन्य परिवारों के साथ गुज़ारा कर रही हैं. इस सीलन भरे फ्लैट की छतें टपकती रहती हैं और चूहे  धमाचौकड़ी मचाते रहते हैं. फिर भी इसके लिए उन्हें तीन सौ डॉलर प्रतिमाह देना पड़ता है जो उनको मिलने वाली सरकारी पेंशन का एक तिहाई है. आण्टी हर भी चाहती हैं कि इस बोसीदा फ्लैट से बाहर निकल कर गरिमापूर्ण जीवन जी सकें, लेकिन उन्हें इसकी कोई उम्मीद नज़र नहीं आती है. कहना अनावश्यक है कि हांग कांग में ऐसी अनगिनत आण्टियां और अंकल हैं जो वैभव नहीं सिर्फ सामान्य सुखी और गरिमापूर्ण जीवन  जीना चाहते हैं. लेकिन वे किसी की भी प्राथमिकता सूची में नहीं हैं. और ऐसा भी नहीं है कि ऐसी स्थिति बुज़ुर्गों की ही है. इस चमचमाते शहर की युवा पीढ़ी भी आवास समस्या से बुरी तरह पीड़ित है. अगर उनका सम्बन्ध  किसी अमीर परिवार से नहीं है तो उनके लिए  भी अपना मकान एक कभी साकार  न होने वाला सपना है. हांग कांग की आवास समस्या के मूल में यह बात भी है कि उसमें ज़्यादा पूंजी चीन की लगी हुई है और चीन की दिलचस्पी हांग कांग के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की बजाय मुनाफ़ा कमाने में है.   

हांग कांग के बारे में किसी ने बहुत उपयुक्त  टिप्पणी की है कि इस शहर की फितरत ऐसी है कि यह केवल अमीरों का साथी है. अगर आप अमीर हैं तो यह हर पल आपका साथ देता है, जनता से कमाया हुआ सारा टैक्स आप पर खर्च कर देना चाहता है. लेकिन अगर आप अमीर नहीं हैं तो फिर यह समझ लीजिए कि खुद इस शहर को मालूम नहीं कि आपके साथ क्या और कैसा सुलूक किया जाए. असल बात तो यह कि अगर आप अमीर नहीं हैं तो इस शहर के लिए आपका कोई वुज़ूद है ही नहीं.   
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै  में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर  के अंतर्गत  इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.