Sunday, November 11, 2007

ऐसे थे हमारे पिता

एन बी सी न्यूज़ के वाशिंगटन ब्यूरो चीफ़ और मीट द प्रेस के मॉडरेटर और मैनेजिंग एडीटर टिम रुस्सेर्ट की एक किताब ‘बिग रुस्स एण्ड मी’ 2004 में आई थी जिसमें उन्होंने अपने पिता के साथ अपने रिश्तों का बेबाक किन्तु मार्मिक अंकन किया था। यह किताब कितनी लोकप्रिय हुई इसका एक अनुमान तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि रुस्सेर्ट को इसके बाद कोई साठ हज़ार खत और ई मेल मिले जिनमें पाठकों ने अपने-अपने पिताओं से अपने रिश्तों का वर्णन किया था। इन्हीं पत्रों के अंशों का उपयोग करते हुए रुस्सेर्ट ने अब एक किताब और लिखी है ‘विज़डम ऑफ़ अवर फ़ादर्स : लेसन्स एण्ड लेटर्स फ़्रॉम डॉटर्स एण्ड सन्स’। 320 पन्नों की यह किताब इन दिनों खूब लोकप्रिय हो रही है।
किताब का ज़्यादा बडा हिस्सा साधारण अमरीकी बेटे-बेटियों की उनके पिताओं की स्मृति से रचा गया है और उसके बीच बीच में लेखक टिम रुस्सेर्ट अपने पिता की स्मृतियों को बुनते चलते हैं। ज़्यादातर पत्र लेखकों ने उस दौर का स्मरण किया है जब पीढियों का अन्तर अधिक था और पिता लोग अपने वात्सल्य का प्रदर्शन करने में संकोची व कृपण हुआ करते थे। अनेक पत्र लेखकों ने अपने ऐसे पिताओं को याद किया है जो अपने बच्चों को साफ़-साफ़ तो यह कभी नहीं कह पाए कि वे उन्हें कितना प्यार करते हैं, लेकिन अनेकानेक अप्रत्यक्ष तरीकों से इस बात को अभिव्यक्त कर गए। कईयों ने यह बताया है कि कैसे उन्होंने अपने पिताओं से जीवन के महत्वपूर्ण सबक सीखे। एक व्यक्ति ने लिखा है कि वह अपने पिता के साथ एक महत्वपू्र्ण मैच देखने गया। पिता के पास दो अतिरिक्त टिकिट थे जिन्हें ज़्यादा कीमत पर खरीदने वाले अनेक थे, लेकिन पिता ने उन टिकिटों को एक ऐसे पिता को लागत मूल्य पर दे दिया जो अपने पुत्र के साथ वह मैच देखने आये थे। कई बेटियों ने यह बताया है कि कैसे उनके पिताओं ने अपने व्यवहार से उनके परवर्ती जीवन में पुरुष से रिश्तों का स्वर निर्धारित कर डाला।
किताब दिल से लिखी गई है, मनोरंजक और बेहद पठनीय है। आप चाहें तो भी इसे पूरा पढे बगैर नहीं रह सकते। जब आप इसके पन्नों से गुज़रते हैं तो आपके मन के चित्रपट पर अपने पिता की स्मृतियां उभरने लगती हैं। किताब बिना किसी बडबोलेपन के यह बताती है कि अच्छे पिता होने का क्या अर्थ है, और इसी सिलसिले को आगे बढाती हुई पाठक को अच्छा पिता बनने के लिए प्रेरित भी करती है। किताब अनेक प्रसंगों के हवाले से यह बताती है कि आपका कोई बहुत छोटा-सा कृत्य भी आपके बच्चे के लिए बहुत प्रभावी सिद्ध हो जाता है। खुद रुस्सेर्ट अपने पिता का ऐसा ही एक प्रसंग हमसे शेयर करते हैं। वे कहते हैं कि मैं अपने कॉलेज के अवकाश के दिनों में घर आया हुआ था। एक दिन जब मैं देर रात तक चली पार्टी के बाद घर लौटा और अगली सुबह बहुत देर तक सोया रहा तो उसी बीच पिता मेरी कार को अन्दर-बाहर से पूरी तरह साफ़ कर चुके थे। इतना ही नहीं, उन्होंने उसमें पैट्रोल भी भरवा दिया। अचानक रुस्सेर्ट को ध्यान आया कि गाडी में तो रात की हंगामेदार पार्टी के एकाधिक अवशेष या प्रमाण भी थे। पिता ने उनका कोई ज़िक्र तक नहीं किया।
देखा आपने! पिता अगर कोई धूम-धडाका करते तो रुस्सेर्ट उसे कभी का भूल चुके होते। अविस्मरणीय बना उनका मौन रह जाना।
इसी तरह एक रिटायर्ड अध्यापिका मेराबेथ ल्यूरी ने अपने पिता को एक अलग तरह के प्रसंग के माध्यम से याद किया है। वे लिखती हैं कि उनके पिता को अपने घर के बेसमेण्ट में बने वर्कशॉप में नई- नई चीज़ें बनाने का शौक था। मेराबेथ का छोटा भाई जिम भी अपने पिता के पीछे-पीछे इस वर्कशॉप में जाता, और जैसा आम तौर पर छोटे बच्चे करते हैं, उनके औज़ारों को छेडता, उलट-पलट करता। पिता ने उसे अनेक बार समझाया लेकिन बच्चा तो आखिर बच्चा ही ठहरा। आखिर पिता ने तै किया कि वह अपने महत्वपूर्ण औज़ारों के लिए एक तालाबंद पेटी बना लेंगे। वे पेटी बनाने में जुट गए, नन्हा जिम उन्हें दिलचस्पी से काम करते देखता और अपनी तरह से उनकी ‘मदद’ करने की चेष्टा करता। पेटी बन गई और पिता उस पर ताला लगाने लगे तो जिम ने पूछा कि यह क्या है? पिता ने उसे बताया कि यह ताला है और इसे खोलकर ही औज़ार बाहर निकाले जा सकेंगे। जिम के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे, बोला : ‘डैड, इसकी चाबी किसके पास रहेगी?’
डैड एक क्षण को रुके। बेटे के चेहरे को देखा, और बोले : ‘बेटा, इसकी सिर्फ़ दो चाबियां होंगी। एक तुम्हारे पास रहेगी, दूसरी मेरे पास!’
कहना अनावश्यक है कि ऐसे अनगिनत प्रसंगों से भरी यह किताब बेहतर पिता (और बेहतर संतान भी) बनने में मदद करती है।

इसी किताब से :
नॉत्रे देम विश्वविद्यालय के एक पूर्व दीर्घकालीन अध्यक्ष ने कहा था: कोई भी पिता अपनी सन्तान के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम यह कर सकता है कि वह उनकी मां से प्यार करे।