Tuesday, May 22, 2018

यह गिरावट भी स्वागत योग्य है!


कैसी अजब दुनिया है यह! इधर हम अपने देश में बढ़ती जा रही जनसंख्या से त्रस्त हैं, और उधर अमरीका में सन 2008 की कुख्यात महा मंदी के बाद उर्वरता दर (फर्टिलिटी रेट) घटने का जो सिलसिला शुरु हुआ वह अब तक नहीं रुका  है. इस बार तो लगातार दूसरे बरस इस दर में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज़ की गई है. वैसे निकट अतीत में 1958 से 1968 के बीच भी अमरीका में ऐसा ही हो चुका है. उर्वरता दर को किसी भी देश के जनसंख्या संतुलन को मापने का प्रामाणिक पैमाना माना जाता है. अगर दर बढ़ जाती है तो देश के ज़रूरी संसाधनों मसलन शिक्षा, मकान वगैरह की आपूर्ति प्रतिकूलत: प्रभावित होती  है, और घट जाती है तो काम करने वाली जन शक्ति घटने और काम न कर सकने वाली वृद्ध जनशक्ति बढ़ने लगती है. रूस और जापान में ऐसा ही हो रहा है. यहीं यह भी जान लीजिए कि उर्वरता दर की गणना इस आधार पर की  जाती है कि 15 से 44 वर्ष के बीच आयु वाली एक हज़ार स्त्रियां  कितने बच्चों को जन्म देती हैं. लेकिन बावज़ूद उर्वरता दर में हो रही सतत कमी के, फिलहाल अमरीका के सामने ऐसी कोई चुनौती नहीं है और इसके मूल में है सारी दुनिया के युवाओं का अमरीका  की तरफ आकर्षित होना. आप्रवासन की वजह से अमरीका उर्वरता दर की कमी के दुष्प्रभावों से बचा हुआ है.

सामान्यत: ऐसा माना जाता है कि जब कोई देश आर्थिक संकटों में घिर जाता है तो वहां उर्वरता दर इस वजह से कम होने लगती है कि लोग अच्छे दिनों के लौटने  तक संतानोत्पत्ति को स्थगित किये रहते हैं. जब आर्थिक संकट दूर हो जाता है तो उर्वरता दर भी पूर्ववत हो जाती है. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि अमरीका के मामले में यह सिद्धांत भी ग़लत साबित हुआ है. आर्थिक हालात सुधरने के बावज़ूद, एक 2014 के अपवाद को छोड़कर वहां उर्वरता दर घटती ही जा रही है. सम्बद्ध विशेषज्ञ इसे हमारे समय के  बहुत बड़े जनसंख्या  रहस्यों में से एक मानते हैं. यह रहस्य इस तरह और गहरा जाता है कि सन 2007 की तुलना में 2017 में वहां पांच लाख बच्चे कम पैदा हुए, बावज़ूद इस यथार्थ के कि इन दस बरसों में गर्भधारण करने के लिए  सर्वाधिक उपयुक्त उम्र वाली स्त्रियों की संख्या में सात प्रतिशत की वृद्धि हुई.

बावज़ूद इस बात के कि इसे एक रहस्य कहा गया है, इसे समझने के प्रयास भी कम नहीं हुए हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि सामाजिक संरचना तेज़ी से बदल रही है. स्त्रियां ज़्यादा पढ़ लिख रही हैं, शादी करना स्थगित कर रही हैं और परिवार का आर्थिक दायित्व वहन करने की प्रमुख भूमिका निबाहने के लिए तत्पर होने लगी हैं. इस बात को आंकड़ों से भी प्रमाणित किया गया है. जहां पिछले दस बरस में कम उम्र की युवतियों के मां बनने में बहुत कमी आई है वहीं उम्र के चौथे दशक के मध्य तक जा पहुंची स्त्रियों के मां बनने की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है. अब हालत यह है हर पांच में से एक संतान पैंतीस बरस या इससे अधिक वय की स्त्री के यहां जन्म ले रही है. ज़ाहिर है कि ऐसा इस कारण हो रहा है कि आज की स्त्री यह मानने-समझने लगी है कि उससे पहले वाली पीढ़ी की  स्त्री जिस उम्र में मां बना करती थी वही उम्र उसके कैरियर के विकास के लिए सबसे ज़्यादा अहम है. आज उसका सारा ध्यान अपने कैरियर पर केंद्रित है और इस कारण वह मातृत्व  को अगले कुछ बरसों के लिए स्थगित करने लगी है.

उर्वरता दर में गिरावट के इस मामले में कुछ बातें ख़ास तौर पर ग़ौर  तलब हैं. एक तो यह कि यह गिरावट अल्पसंख्यक स्त्रियों के मामले में अन्यों की तुलना में बहुत ज़्यादा है. मसलन लातिन अमरीकी स्त्रियों में यह गिरावट सत्ताइस प्रतिशत तक दर्ज़ की गई है. इसी तरह अश्वेतों में जहां यह गिरावट ग्यारह प्रतिशत  दर्ज़ की गई वहीं श्वेतों में मात्र चार प्रतिशत की गिरावट लक्ष्य की गई. दूसरी बात यह कि उर्वरता दर में सर्वाधिक कमी सामान्यत: युवा स्त्रियों में देखी गई लेकिन पिछले बरस यह कमी तीस पार की स्त्रियों में भी देखी गई. इस पूरे प्रसंग का सर्वाधिक उजला पहलू यह है कि किशोरियों के मां बनने की दर में लगातार और तेज़ी से कमी हो रही है. यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है कि सन 2007 से अब तक इसमें पचपन प्रतिशत की कमी आ चुकी है. इतनी ही नहीं, 1991 में जब किशोरियों के मां बनने की दर सर्वाधिक  थी तब से अब तक अगर इस गिरावट को आंकें तो यह आंकड़ा सत्तर फीसदी तक जा पहुंचता है. तमाम दूसरी बातें, अपनी जगह, इस गिरावट का तो हम सबको खुले मन से स्वागत करना ही चाहिए.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 22 मई, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.