Tuesday, March 5, 2019

यह अध्यापिका नामुमकिन को मुमकिन बना रही है!


कहा जाता है कि वर्तमान पीढ़ी के बच्चों में किताबें पढ़ने का शौक ढलान पर है. इसकी एक वजह यह बताई  जाती है कि आज उनके पास अपना वक़्त बिताने के अनेक और विशेष रूप से इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के विकल्प मौज़ूद हैं. यह यथार्थ हमारा ही नहीं सारी दुनिया का है. लेकिन इसी यथार्थ के साथ एक यथार्थ और भी है और वह यह कि लोग अपनी-अपनी तरह से अपने बाद वाली पीढ़ी को किताबों की तरफ आकर्षित करने के लिए प्रयत्नरत हैं. आज मैं ऐसे ही प्रयास में जुटी एक महिला की प्रेरक गाथा आपके साथ साझा कर रहा हूं.

अमरीका के दक्षिणी पूर्वी टेक्सास के होमर ड्राइव एलीमेण्ट्री स्कूल की बयालीस वर्षीया प्रिंसिपल डॉ बेलिण्डा जॉर्ज पिछले कुछ समय से अपने स्कूल के बच्चों को किताबों की तरफ खींचने के लिए एक अनूठा तरीका आज़मा रही हैं. वे करती यह है कि हर मंगलवार शाम को अपने लिंविंग रूम में अपने मोबाइल फोन के कैमरे के सामने बैठकर बच्चों की किसी किताब का वाचन करती हैं और इस वाचन का  वे फ़ेसबुक लाइव पर सजीव प्रसारण करती हैं. उनके स्कूल के फेसबुक पेज पर जाकर कोई भी उनके इस वाचन को देख-सुन सकता है. किताब या उसके अंश को पढ़ते हुए वे अपनी आवाज़ को पात्रानुसार बदलती रहती हैं और ज़रूरत पड़ने पर अपनी तरफ से मनोरंजक टिप्पणियां भी करती चलती हैं. अगर मुमकिन होता है तो वे वाचन वाले अंश से सम्बद्ध वस्तुएं भी अपने प्रसारण में शामिल कर लेती हैं, मसलन अगर वे अंतरिक्ष यात्री से सम्बद्ध कोई अंश सुनाती हैं तो अंतरिक्ष यात्री की आकृति वाला कोई खिलौना भी दिखा देती हैं.   उनका यह प्रयोग इतना लोकप्रिय हो गया है कि उनके स्कूल के बच्चे न केवल बेसब्री से मंगलवार  की शाम का इंतज़ार करते हैं, उनमें से बहुत सारे अगले दिन स्कूल में आकर उनके इस वाचन पर अपनी प्रतिक्रिया भी देते हैं और यह भी कहते हैं कि भविष्य में वे उनसे किस किताब  का वाचन सुनना चाहेंगे. उनके वाचन से प्रभावित बच्चे यह भी पूछते हैं कि क्या वह किताब स्कूल की लाइब्रेरी में उपलब्ध है, और अगर नहीं है तो वो उन्हें कहां मिल सकती है.

डॉ बेलिण्डा  जॉर्ज का यह प्रयोग बमुश्क़िल एक बरस पुराना है. इसकी शुरुआत उन्होंने अपने स्कूल के 680 विद्यार्थियों के लिए की थी. लेकिन उनके कुछ वीडियो तो दो हज़ार से भी ज़्यादा लोगों ने देखे हैं. ऐसा इस कारण सम्भव हुआ है कि स्कूल के बच्चों  और उनके अभिभावकों से इसकी प्रशंसा सुन कर मीडिया वालों ने भी इस  पर ध्यान दिया है और उनके कारण अमरीका के अनेक शहरों के बच्चे और उनके अभिभावक न केवल इस लाइव प्रसारण को देखने-सुनने लगे हैं, वे अपनी प्रतिक्रियाएं भी पोस्ट करने लगे हैं. बेलिण्डा का कहना है कि उन्हें अपने विद्यार्थियों से बहुत प्यार है और वे घर और स्कूल के बीच रिश्ते मज़बूत करने की आकांक्षा  से यह काम करती हैं. वे एक बहुत महत्वपूर्ण बात कहती हैं: “मैं जानती हूं कि अगर मैं उनसे स्कूल के बाहर नहीं जुड़ सकी तो फिर स्कूल के भीतर भी उनके नज़दीक  नहीं आ सकूंगी.” मुझे लगता है कि यह ऐसी बात है जिसे हर शिक्षक को गांठ में बांध लेना चाहिए.  

एक दिलचस्प  बात यह है कि बेलिण्डा प्राय: पाजामा पहन कर ये वाचन करती हैं. जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अपने वाचन के आखिर में वे बच्चों को शुभ रात्रि भी कहती है, “और मैं चाहती हूं कि जो मैं कहती हूं वो करती हुई भी दिखाई दूं.” अपने वाचन के प्रारम्भ में वे उन बच्चों की हाज़िरी भी लेती हैं जिन्होंने उनके इस इस फ़ेसबुक पेज  के लिए साइन अप कर रखा है.  वे इस बात का पूरा ध्यान रखती हैं कि किसी भी बच्चे के नाम का उच्चारण ग़लत न हो जाए. सबसे ख़ास बात तो बेलिण्डा यह बताती हैं कि उनके 94 प्रतिशत विद्यार्थी समाज के निचले तबके से हैं और उनके इस प्रयोग का परिणाम यह हुआ है कि उनकी पढ़ने और समझने की क्षमता का बहुत तेज़ी से विकास हुआ है. अपने विद्यार्थियों के प्रति वे सदैव सकारात्मक रुख अपनाती हैं. वे इस कड़वी सच्चाई से भली भांति परिचित हैं कि उनके बहुत सारे विद्यार्थी बहुत समय तक अपनी पढ़ाई ज़ारी नहीं रख सकेंगे. कॉलेज तक तो शायद बहुत ही कम पहुंच पाएं. लेकिन वे कोशिश करती हैं कि इस बात को लेकर उनके विद्यार्थियों के मन में कोई  हताशा या कुण्ठा न पनपे. वे उन्हें एक ही सीख देती हैं: तुम जो भी करो, उसे सर्वोत्तम तरीके से करना. अगर तुम्हें गड्ढा भी खोदना हो तो ऐसे खोदना कि देखने वालों  के मुंह से बरबस ‘वाह’ निकल पड़े. बेलिण्डा जॉर्ज के इस प्रयास को जान मुझे बेसाख़्ता अपने दुष्यंत कुमार का यह शे’र याद आ गया है: कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता/ एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारों.   
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 05 मार्च, 2019 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.