Friday, February 15, 2008

दर्द के पीछे की खूबसूरती

सारी दुनिया में अनगिनत लोग ऐसे रोगों से पीडित हैं जिनका कोई इलाज़ नहीं है. अकेले अमरीका में हर दिन 9 करोड लोग ऐसी बीमारियों से जूझते हैं.. ऐसी बीमारियों के बारे में जब भी कोई बात होती है, हम रोग के लक्षणों के बारे में चर्चा करके रह जाते हैं. शायद ही कभी ऐसा होता हो कि हम उन इन्सानों की ज़िन्दगी में भी झांक पाते हों जो रोज़-रोज़ इन रोगों की असहनीय वेदनाओं से आहत होते हैं और फिर भी जीते रहते हैं. एक ऐसी दुनिया में जहां सामान्यता का उत्सव मनाया जाता है, व्हील चेयर पर या छडी के सहारे ज़िन्दगी गुज़ारना कैसा होता है? 2003 में प्रकाशित बेस्ट सेलर पुस्तक ब्लाइण्डसाइडेड के लेखक रिचार्ड एम कोहेन ने अपनी सद्य प्रकाशित किताब स्ट्रोंग एट द ब्रोकन प्लेसेस: वॉइसेस ऑफ इलनेस, अ कोरस ऑफ होप में पांच ऐसे लोगों की ज़िन्दगी की परतें खोली हैं जो हालांकि उम्र, लिंग, नस्ल और आर्थिक स्तर के लिहाज़ से एक दूसरे से नितांत भिन्न हैं, साहस, मज़बूत इरादों और जिजीविषा के लिहाज़ से समान हैं. वैसे, लेखक खुद भी एक गम्भीर स्नायविक रोग मल्टीपल स्क्लेरोसिस से ग्रस्त है.
आइए, इन पांच महानायकों से हम भी मिलें!
डेनिस ग्लास एक असाध्य न्यूरो डीजेनेरेटिव रोग ए एल एस से ग्रस्त है. उसके लिए बोल पाना तक सुगम नहीं रह गया है. वह अपनी गर्दन भी ठीक से नहीं उठा पाता है. लेकिन, बिना आत्मदया का शिकार हुए, अपने परिवार से अलग रह कर वह इस रोग से लडा रहा है. किताब का दूसरा महानायक 46 बरस का बज़ बे अपेक्षाकृत अधिक प्राणघातक नॉन हॉजकिंस लिम्फोमा (कैंसर) से पीडित है और सामने खडी मौत को देख कर भी उम्मीद का दामन छोडने को तैयार नहीं है. वह मानता है कि अपने सकारात्मक सोच से 98% लडाई जीती जा सकती है. अपनी इस अति गम्भीर बीमारी के बावज़ूद वह एक होसपाइस वालण्टियर के रूप में अपनी सेवाएं देता है.
किताब के तीसरे महानायक 18 साल के बेन कम्बो के लिए व्हील चेयर उसकी बेडी भी है, मुक्तिदात्री भी. जब वह तीन साल का था तभी पता चला कि उसे मस्क्यूलर डायस्ट्रोफी नाम का रोग है जिससे मांसपेशियां बहुत कमज़ोर हो जाती हैं. इस रोग का कोई इलाज़ नहीं है. लेकिन, बावज़ूद इस सचाई के, बेन रोग के साथ लडते हुए अपनी पढाई जारी रखे हुए है. किताब की चौथी चरित्र 28 साल की सारा लेविन पाचन नली की क्रोहन्स डिसीस से बुरी तरह ग्रस्त है. लेकिन फिर भी वह बच्चों के एक प्रयोगात्मक स्कूल में अपनी सेवाएं देने में कोई कोताही नहीं बरततीं. उनकी बडी आंत निकाली जा चुकी है और शेष बची ऊपरी पाचन नली बुरी तरह क्षत विक्षत है. पेट में लगातार रक्त-स्राव होता रहता है. कुछ भी ठीक नहीं है, सिवा उनके साहस के, जो एकदम अडिग और अविचल है. यह सारा की जिजीविषा ही है कि उसने 2007 में विवाह भी कर लिया. बाइपोलर डिस ऑर्डर से ग्रस्त लारी फ्रिक्स ने 80 के दशक का काफी वक़्त मनोरोग चिकित्सालय में गुज़ारा और अपने उन्माद के दौरों पर काबू पाने के लिए शराब का सहारा तक लिया. उन पर मनोरोगी होने का ठप्पा लग चुका है, लेकिन वे हैं कि इस कलंक को झुठलाते हुए एक मानसिक स्वास्थ्य कर्मी के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान करने को अपनी ज़िन्दगी की सबसे बडी सार्थकता मानते हैं.
लेखक कोहेन ने इन पांच असाधारण लोगों की ज़िन्दगी को नज़दीक से देखने-परखने में तीन साल खर्च किए. कोहेन के शब्दों में, ये ‘रोगों के नागरिक’ हैं. उसका कहना है कि अलग-अलग पृष्टभूमि के बावज़ूद दर्द के साथ इनका रिश्ता समान है और इन सबका सन्देश भी एक ही है. इनका सन्देश है आत्मिक दृढता का, विषम स्थितियों में भी हौंसला बनाए रखने का, कठिनतम परिस्थितियों में शांत बने रहने का और अपने शेष बचे जीवन को दूसरों के लिए काम में लेने का. कोहेन का कहना है, हम जहां टूटते हैं, वहीं सबसे ज़्यादा मज़बूत भी होते हैं. अपनी उम्मीद से भी ज़्यादा! बीमारियों की आवाज़ों के बीच से आशा का समूहगान सुनवाने वाले कोहेन को यह उम्मीद है कि इस किताब को पढने के बाद वे लोग जो ऐसे ही असाध्य रोगों से जूझ रहे हैं, या उनके शुभाकांक्षी, महसूस करेंगे कि अपने संघर्ष में वे अकेले नहीं हैं.
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Discussed book:
Strong at the Broken Places: Voices of Illness, a Chorus of Hope
By Richard M. Cohen
Published by Harper
Pages 352, Hardcover
US $ 24.95