Tuesday, January 12, 2016

गोरे रंग पे न इतना गुमान कर......

यह दुनिया भी अजीब है. जहां भारत सहित अधिकांश एशियाई देशों में गोरी चमड़ी के प्रति अतिरिक्त आकर्षण देखने को मिलता है वहीं उन देशों में जहां चमड़ी प्राकृतिक रूप से गोरी होती है लोग धूप में बैठ बैठकर और विभिन्न प्रकार के  लोशनों आदि का प्रयोग कर उसे ताम्बई रंगत देते हैं.  एक मार्केट रिसर्च कम्पनी ग्लोबल इण्डस्ट्री एनालिस्ट इनकॉर्पोरेटेड ने अनुमान लगाया है कि पूरी दुनिया में वर्ष 2020 तक त्वचा के रंग को हल्का बनाने वाले उत्पादों का कारोबार 23 बिलियन डॉलर्स तक जा पहुंचेगा और उसमें सबसे बड़ी भागीदारी एशिया पैसिफिक क्षेत्र के देशों की होगी. अपने देश में हम आए दिन ऐसे विज्ञापनों से रू-बरू होते रहते हैं जो यह दावा करते हैं कि उनके इस्तेमाल से आपकी  त्वचा का रंग गोरा हो जाएगा.  ये विज्ञापन दाता अपनी बात को वज़न देने के लिए किसी न किसी तरह गोरे रंग की महत्ता को रेखांकित करना भी नहीं भूलते हैं.

लेकिन हाल ही में जब थाइलैण्ड  की एक सौन्दर्य प्रसाधन निर्माता कम्पनी सिओल सीक्रेट ने अपने एक ऑनलाइन विज्ञापन में वहीं की जानी-मानी एक्ट्रेस क्रिस होरवांग के चेहरे को अश्वेत रंग में दर्शाया और उसकी तुलना एक गोरी चमड़ी वाली स्त्री से करते हुए उसे कमतर बताया तो हंगामा खड़ा हो गया. थाई नागरिक इस बात से तो नाराज़ हुए ही कि उनकी प्रिय एक्ट्रेस के चेहरे को  अश्वेत बना दिया गया था,  उन्हें इस वीडियो के नारे “विजेता होने के लिए आपका गोरा होना ज़रूरी है”  पर भी गम्भीर आपत्ति थी. थाई जनता की ये आपत्तियां इतनी पुरज़ोर थीं कि इस कम्पनी को न सिर्फ अपना यह विज्ञापन वापस लेना  पड़ा, उन्हें एक बयान भी जारी करना पड़ा. वैसे बयान था बड़ा मज़ेदार. कम्पनी ने कहा, “भेदभावपूर्ण  या नस्लीय सन्देश देने का हमारी कपनी का कोई इरादा नहीं था. हम तो बस यह कहना चाह रहे थे कि व्यक्तित्व, अपीयरेंस, दक्षताओं और प्रोफेशनिलिटी के सन्दर्भ में आत्म सुधार की बहुत अधिक महत्ता है.” 

इस विज्ञापन से आहत लोगों को स्वभावत: इस स्पष्टीकरण से संतोष नहीं हुआ और उनमें से बहुतों ने सोशल मीडिया पर इस आशय की टिप्पणियां कीं  कि इस तरह के टूटे-फूटे बहानों से काम नहीं चलने  वाला है. जैसा इस तरह के सारे मुद्दों पर होता है, कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें यह सारी बहस बेमानी लग रही थी और उनका कहना था  कि भाई, अगर आपको त्वचा को गोरा करने वाले उत्पादों पर आपति है तो उन्हें मत खरीदिये. झगड़े की क्या बात है? ऐसे लोगों को कम्पनी के इस प्रचार वीडियो में  कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा.
अगर हम इस विवाद से बाहर निकलकर इसी देश यानि थाइलैण्ड में इस तरह के उत्पादों के विज्ञापनों का अतीत खंगालें तो पाएंगे कि यह अपनी तरह का पहला मामला नहीं है. वैसे तो बहुत बड़ी बहु राष्ट्रीय कम्पनियां अपने सौन्दर्य (यानि गोरा बनाने वाले) उत्पादों के विज्ञापन के लिए रेडिएंस और परफेक्ट जैसे शब्दों का चालाकीपूर्ण उपयोग करती ही रही हैं, खुद उस देश की अनेक कम्पनियां भी अपने उत्पादों को बेचने  के लिए पक्के रंग की चमड़ी  वाली युवतियों और स्त्रियों का उपहास करती रही हैं. दरअसल थाइलैण्ड में गहरे रंग की चमड़ी का रिश्ता किसानों और श्रमिकों से कायम किया जाता है. समाज के निचले तबके के इन लोगों को तेज़ धूप में अनथक श्रम करना होता है जिससे इनकी चमड़ी झुलस कर पक्के रंग की हो जाती  है. समाज के ऊंचे तबके के लोग सुरक्षित माहौल में रहते हैं और इस वजह से उनकी चमड़ी का रंग उजला बना रहता है. विज्ञापनों आदि के द्वारा सारा माहौल गोरी चमड़ी के पक्ष में तैयार कर दिया गया है और लोग तथा खास तौर पर स्त्रियां अप्रामाणिक, अवैध और चमड़ी को गोरा बनाने के मिथ्या दावे करने वाले उत्पादों के प्रयोग का खतरा उठाते रहते हैं.  सन 2012  में वहां एक कम्पनी ने तो उस वक़्त हद्द ही कर दी थी जब उसने अपने एक उत्पाद के विज्ञापन में यह दावा किया था कि उसके इस्तेमाल से स्त्री देह के अंतरंग हिस्सों की त्वचा चमकदार और पारभासी (ट्रांसलुसेण्ट) हो जाएगी.   

अभी  दो बरस पहले ही वहां की एक कम्पनी के पेय पदार्थ के एक विज्ञापन चेहरे मोहरे और बोलने के लहज़े से एक व्यक्ति को अफ्रीकी मूल का दर्शाते हुए उसकी बेटी को इस पेय पदार्थ के पीने से काली से गोरी होते हुए दर्शाया गया था. इसी तरह जब वहां की एक कम्पनी ने उन विद्यार्थियों को नकद धनराशि देने का वादा किया जो उसके उत्पादों के प्रयोग से अपनी चमड़ी को गोरा बना लेंगे तो इसका भी पुरज़ोर विरोध किया गया था.


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अयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 12 जनवरी, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.