पुरस्कार पाकर हर कोई खुश होता है. अपने
प्रयास और काम की सराहना तथा स्वीकृति भला किसे नापसंद होगी? लेकिन हाल में सुदूर जापान में
घोषित किये गए एक पुरस्कार ने हमें यह कहने को मज़बूर कर दिया है कि हर पुरस्कार के
बारे में यह बात कहना उचित नहीं है. कुछ पुरस्कार ऐसे भी हो सकते हैं जिन्हें पाकर
पाने वाला सम्मानित नहीं लज्जित महसूस करता है. पिछले दिनों जापान की एक प्रमुख
विज्ञापन एजेंसी देंत्सु
इंकॉर्पोरेटेड के साथ ऐसा ही हुआ है. जापान के पत्रकारों और नागरिक अधिकारों के
रक्षकों के एक समूह ने इस विज्ञापन एजेंसी को मोस्ट ईविल कॉर्पोरेशन ऑफ द ईयर
अवार्ड से नवाज़ा है. अब भला कौन कम्पनी होगी जो यह खिताब पाकर खुश हो!
अब यह भी जान लिया
जाए कि इस कम्पनी को यह खिताब क्यों दिया गया है? पुरस्कार देने वाले संगठन
की चयन समिति के एक सदस्य, जापान के जाने-माने फिल्म निदेशक
तोकाची सुचिया के कम्पनी नाम भेजे संदेश
से इस सवाल का आंशिक जवाब मिल जाता है. उन्होंने लिखा है: “डियर देंत्सु
इंकॉर्पोरेटेड, आपकी एक नई कर्मचारी, 24 वर्षीया मात्सुरी ताकाहाशी ने 25 दिसम्बर, 2015 को
आत्म हत्या कर ली. उसको 105 घण्टे ओवरटाइम करना पड़ा था, जो बहुत ज़्यादा था. इसके अलावा वो अपने बॉस
लोगों द्वारा सताए जाने से त्रस्त थी और मानसिक रूप से दबाव में भी थी.” ताकाहाशी
की इस आत्महत्या से पहले इस संस्थान का एक और कर्मचारी, वह भी
24 वर्षीय ही था, 1991
में अपनी जान गंवा चुका था. इनके अलावा, सन 2013 में हुई एक
तीस वर्षीय कर्मचारी की मृत्यु को भी उससे बहुत ज़्यादा काम करवाने का परिणाम माना
जा रहा है.
दुनिया के विभिन्न
देशों में जहां ज़्यादातर कामकाज निजी क्षेत्र में केंद्रित है, नियोक्ता
अपने कर्मचारियों से ज़्यादा से ज़्यादा काम लेने की कोशिश करते हैं, और ऐसा करते हुए वे उनकी सेहत और क्षमता की भी प्राय: अनदेखी कर जाते हैं.
कर्मचारी की यह विवशता होती है कि अपनी नौकरी बनाए रखने के लिए वो अपनी सेहत और
जान पर खेल कर भी नियोक्ता के आदेश का बढ़ चढ़
कर पालन करे. संस्थानों के लिए कोई नया कर्मचारी नियुक्त करने की बजाय पहले
से कार्यरत कर्मचारी को ओवरटाइम राशि का भुगतान कर काम लेना अधिक लाभप्रद होता है.
शायद यही सोच रहा होगा जब उक्त देंत्सु कम्पनी ने मात्सुरी ताकाहाशी पर काम का
इतना बोझ लाद दिया था कि वह हर रोज़ बमुश्क़िल दो घण्टे की नींद ले पाती थी.
ज़्यादा पड़ताल करने
पर यह बात भी सामने आई है कि यह कम्पनी अपने कर्मचारियों से आग्रह करती रही है कि वे ‘देंत्सु के
दस नियमों’की पालना करें. ये दस नियम किस तरह के होंगे यह
जानने के लिए मात्र एक नियम को देख लेना पर्याप्त होगा. इस नियम में कर्मचारियों
से कहा गया है कि “अपने काम को पूरा करने से पहले कभी भी, किसी भी हाल में छोड़ें नहीं. यहां
तक कि अगर आप मर जाएं तो भी उसे न छोड़ें.” स्वाभाविक ही है कि इस नियम पर लोगों की
तीखी प्रतिक्रियाएं हुई हैं और मात्सुरी ताकाहाशीके परिवार जन और उनके वकीलों के
अनुरोधों के बाद अब देंत्सु के प्रबंधन ने कहा है कि अब कर्मचारियों को जो निर्देश
पुस्तिकाएं दी जाएंगी, उनमें से इन नियमों को हटा दिया
जाएगा.
एक तरफ जहां अपने
मुनाफ़े के लिए कर्मचारियों का शारीरिक और मानसिक शोषण करने वाली अनगिनत और बेहद
ताकतवर कम्पनियां हैं वहीं ऐसे छोटे-छोटे संगठन भी हैं जो अपनी-अपनी तरह से इस तरह
के अमानवीय शोषण के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं. जापान में जिस संगठन ने यह ‘पुरस्कार’प्रदान किया है, वह भी कोई बहुत बड़ा संगठन नहीं है.
लेकिन इसके बावज़ूद यह उसके अस्तित्व का पांचवां बरस है. यह संगठन कुटिल और दुष्ट कम्पनियों द्वारा अपने कर्मचारियों से लिये जाने वाले
ज़्यादा काम, उनको सेक्सुअल एवम अन्य तरीकों से सताए जाने,
उन्हें परेशान करने, कम तनख्वाह देने, और अस्थायी कर्मचारियों के साथ भेदभाव बरतने जैसे विभिन्न अन्यायों की
पड़ताल करता है. अपने काम और प्रयासों की
जानकारी देते हुए इस संगठन के एक महत्वपूर्ण सदस्य, जो इसकी
चयन समिति के भी सदस्य हैं, ने एक बेहद महत्वपूर्ण बात कही
है. उनका कहना है कि “यह पुरस्कार किसी को बदनाम करने के
लिए नहीं दिया जाता है. इसका मकसद तो यह चेतना पैदा करना है कि हमारे समाज में इस
तरह की कम्पनियों के बने रहने का कोई औचित्य नहीं है.” वे अपने प्रयासों की
अपर्याप्तता से भली भांति परिचित हैं, तभी तो कहते हैं कि
“वक़्त बीतने के साथ इन कम्पनियों के बारे
में समाचारों को भी भुला दिया जाएगा.
लेकिन यह पुरस्कार देते हुए हम हरेक से यह उम्मीद करते हैं कि वो यह बात याद रखे
कि ऐसी खराब कम्पनियां अभी भी मौज़ूद हैं.”
जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 14 मार्च, 2017 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.