Tuesday, September 20, 2016

करे कोई भरे कोई: वहां भी और यहां भी


सात समुद्र पार अमरीका से आई यह ख़बर पढ़ते हुए मुझे अनायास यह बात ध्यान आ गई कि सरकार हमारे देश के बहुत सारे शहरों  को स्मार्ट बनाने का ख़ाब देख और दिखा रही है. शहरों  को स्मार्ट बनाने में इण्टरनेट की भूमिका  बहुत बड़ी होने वाली है. जो शहर स्मार्ट होने से रह जाएंगे वहां भी वाई-फाई  हॉटस्पॉट बनाकर आंशिक स्मार्टनेस तो प्रदान कर  ही दी जाएगी. अपने देश में चुनावों के दौरान मुफ्त वाई-फाई का वादा काफी प्रभावशाली माना जाता रहा है. दुनिया के बहुत सारे देशों में यह सुविधा सुलभ है कि आप बिना अपनी जेब ढीली किए एक निश्चित समय तक या कहीं-कहीं तो अनिश्चित समय तक भी इण्टरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं. असल में आज की दुनिया में इण्टरनेट भी हवा-पानी की तरह ज़रूरी बन गया है इसलिए स्वाभाविक ही है कि सरकारें अपनी प्रजा को  जिस हद तक भी सम्भव हो पाता है इसकी सुविधा देने की कोशिशें करती हैं.

अमरीका से खबर यह आई है कि न्यूयॉर्क शहर में गूगल की पैरेण्ट कम्पनी अल्फाबेट के आर्थिक सहयोग से तकनीकी और मीडिया विशेषज्ञों आदि के सिटी ब्रिज नामक एक समूह ने सन 2014 में चार सौ कियोस्क जनता को समर्पित किए. सिटी ब्रिज वालों के इरादे बहुत नेक थे. वे शहर की डिजिटल खाई को पाटने के लिए प्रयत्नशील थे. याद दिलाता चलूं कि पूरी दुनिया में ‘हैव्ज़ एण्ड हैव नॉट्स’ यानि अमीरों और ग़रीबों के बीच गहरी खाई है और इसी बात का विस्तार ऐसे हुआ है कि आज की दुनिया में जिनको तकनीक सुलभ है वे हैव्ज़ हो गए हैं और जिनको सुलभ नहीं है वे हैव  नॉट्स रह गए हैं. इसी बात को लक्ष्य करते हुए न्यूयॉर्क के मेयर बिल डे ब्लाज़ियो ने भी कहा कि सिटी ब्रिज का यह प्रयास जिसे लिंकएनवाईसी कहा गया है, सभी के लिए समतल दुनिया बनाने के हमारे सपने को पूरा करने की दिशा में बढ़ा हुआ एक कदम है और इस कदम के द्वारा हम हर न्यूयॉर्क वासी को इक्कीसवीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण यानि इण्टरनेट सुलभ कराने जा रहे हैं.  इस लिंकएनवाईसी योजना के तहत बनाए गए कियोस्क्स में न केवल मुफ्त वाई फाई सुविधा सुलभ कराई गई, मोबाइल चार्जिंग पॉइण्ट्स दिये गए, इण्टरनेट युक्त टेबलेट्स भी  रखे गए ताकि ज़रूरतमन्द लोग उनका प्रयोग कर अपने ज़रूरी काम कर सकें.  कहना अनावश्यक है कि इरादे  नेक थे और योजना जन कल्याणकारी थी. सच तो यह है कि हम सब इस तरह का सपना देखते हैं.

लेकिन सपने के टूटने में क्या देर लगती है! अब इन कियोस्क्स में सुलभ कराई जाने वाली टेबलेट्स पर वाई फाई सुविधा फिलहाल वापस ले ली गई है. असल में हुआ यह था कि  इसी जून माह में न्यूयॉर्क पोस्ट में इस आशय की खबरें छपी थीं कि कुछ लोग इन टेबलेट्स पर पोर्न फिल्में देखते हैं और कुछ वहां खुले आम अश्लील व्यवहार करते पाए गए. एक शख़्स को तो इस कारण गिरफ़्तार भी किया गया. इन कियोस्क्स के आस-पास रहने वालों ने यह भी शिकायत की थी कि एक टेबलेट  के इर्द गिर्द कई लोग इकट्ठे  होकर बहुत तेज़ आवाज़ में संगीत बजाते हैं. वे लोग कैसा अभद्र संगीत बजाते हैं इसको लेकर भी गम्भीर शिकायतें आने लगी थीं. कुल मिलाकर कुछ लोग इन कियोस्क्स का इस्तेमाल इस तरह से करने लगे थे जैसे यह कोई सार्वजनिक सुविधा न होकर उनकी वैयक्तिक सम्पत्ति हो.

लेकिन जैसे ही टेबलेट्स पर दी जा रही वाई फाई सुविधा बन्द की गई, यह बात भी सामने आई कि अनेक साधन  विहीन लोगों को अब तक जो सुविधा मिल रही थी उससे वे वंचित हो गए हैं. मसलन बहुत सारे घर-बार विहीन लोग इसी सुविधा का इस्तेमाल कर नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे थे और अब उनकी चिंता यह थी कि वे अपने भावी नियोक्ताओं के सम्पर्क में कैसे रहेंगे. कुछ बेघरबार लोग ऐसे भी थे जो पहले अपना फालतू समय आवारागर्दी करके बिताते थे लेकिन अब वे इण्टरनेट पर उपयोगी जानकारियां पाने में इस समय का सदुपयोग करने लगे थे. कुछ स्त्रियां थीं जो इन टेबलेट्स पर नई पाक विधियां सीख रही थीं, और कुछ लोग थे जो इन पर गाने सुनकर निष्पाप मनोरंजन करने लगे थे. इन सबको इस सुविधा के छिन जाने का इतना अफसोस था कि इनमें से एक ने तो बहुत व्यथित होकर यह तक कह दिया कि आपने पहले हमें जो सुविधा दी उसे इस तरह वापस ले लेना उचित नहीं है. यह तो हमें सताने जैसी बात हो गई.

इस पूरे प्रकरण से दो बातें फिर से पुष्ट हुई हैं. एक यह कि पूरब हो या पश्चिम, गैर ज़िम्मेदार बर्ताव करने वाले सब जगह पाये जाते हैं, और दूसरी यह कि करे कोई भरे कोई वाली कहावत एकदम  सही है.

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 20 सितम्बर, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.