Tuesday, July 26, 2016

कितना उचित है हमारी निजी ज़िन्दगी में तुम्हारा झांकना!

लोकप्रिय अमरीकी अभिनेत्री जेनिफ़र एनिस्टन  ने एक बार फिर से ठहरे पानी में कंकड़ फेंकने का दुस्साहस किया है. फैशन, ग्लैमर और चकाचौंध की दुनिया के सितारों की निजी ज़िन्दगी में आम जन की स्वाभाविक दिलचस्पी को देखते हुए पत्रकारों की एक नई प्रजाति पिछले कुछ समय से अस्तित्व में है जिसे पापाराज़ी  नाम से जाना जाता है. इस प्रजाति का गुण धर्म है इन सितारों का हर जगह पीछा करना और इनके बारे में वो सारी जानकारियां अपने पाठकों को सुलभ करना, जिनमें से बहुत सारी को ये खुद सार्वजनिक न करना चाहते हों. इस तरह पापराज़ी नामक यह प्रजाति व्यक्ति की निजता का अतिक्रमण करते हुए अपना काम करने का प्रयास करती है. वैसे तो यहीं यह बात भी कह दी जानी चाहिए कि बहुत सारे मामलों में चकाचौंध की दुनिया के ये सितारे खुद पत्रकारों को बुलाकर उनके कान में अपनी या अपने सहगामियों अथवा प्रतिपक्षियों की ज़िन्दगी की न कही जा सकने वाली बातें उण्डेलते हैं, लेकिन बहुत बार यह भी होता है कि सितारे जो बातें नहीं ज़ाहिर करना चाहते हैं उन्हें भी ये सार्वजनिक कर डालते हैं. कभी-कभार ऐसा भी होता है कि महज़ अनुमान के आधार पर ये लोग ऐसा कुछ लिख और प्रकाशित कर देते हैं जो मिथ्या होता है, और यदा-कदा यह भी होता है कि ये लोग जो लिखते हैं वो होता तो सही है लेकिन सितारे अपने हितों की रक्षा करते हुए उसका खण्डन कर डालते हैं. जब तक सही बात सामने आती है, जिसका जो फायदा नुकसान होना होता है, हो चुका होता है. 

पिछले कुछ समय से इस आशय की ख़बरें और अफ़वाहें चलन में थीं कि यह 47 वर्षीया अभिनेत्री, निर्माता और निर्देशक गर्भवती हैं. वैसे तो छोटे और बड़े पर्दे की तारिकाओं को लेकर इस तरह की झूठी-सच्ची खबरों का फैलना कोई नई और चौंकाने वाली बात नहीं है. हमारे अपने देश में आए दिन किसी न किसी तारिका  को लेकर  इस तरह की ‘खबरें’ आम होती ही रहती हैं. एक दिन ख़बर आती है, दूसरे दिन उसका खण्डन आ जाता है और फिर कभी-कभार  यह भी होता है कि कुछ दिनों बाद हमें जानने को मिलता है कि जिस खबर का खण्डन किया गया था, असल में वह सच थी. जेनिफ़र एनिस्टन के गर्भवती होने वाली  इस  ख़बर का महत्व इस बात में नहीं है कि यह सच है या झूठ. यहां महत्व की बात  यह है कि जेनिफ़र एनिस्टन ने अपने एक सुलिखित और विचारोत्तेजक लेख में पापाराज़ी के इस काम और सार्वजनिक  जीवन में काम  करने  वाली स्त्रियों के अस्तित्व को लेकर  कुछ गम्भीर सवाल  उठाये हैं. हफ़िंगटन पोस्ट में ‘फॉर द रिकॉर्ड’ शीर्षक से प्रकाशित इस लेख में जेनिफ़र ने कहा है कि आम  तौर पर वे अफवाहों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करती हैं. लेकिन अब वे पत्रकारिता के नाम पर आए दिन की जा रही स्त्री देह की इस क्रूर पड़ताल से आजिज़ आकर यह प्रतिक्रिया दे रही हैं. उन्होंने कहा कि अब तक तो मैं मानती रही थी कि ये टैब्लॉइड कॉमिक बुक्स की तरह होते हैं, जिन्हें गम्भीरता से नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन अब मैं खुद को नहीं रोक पा रही हूं. इसलिए नहीं रोक पा रही हूं कि पत्रकारिता  के नाम दशकों से चल रहे स्त्री को एक वस्तु के रूप में सीमित कर डालने के इस क्रूर खेल का खुद मैंने अनुभव  किया है  और यह बहुत तेज़ सड़ांध मार रहा है. इससे यह भी  पता चलता है कि औरत के महत्व को हम कितना छोटा करके आंकते हैं.

अपने इस लेख में जेनिफ़र ने एक  बहुत महत्वपूर्ण बात यह कही है कि मेरी प्रजनन क्षमता में मीडिया की दिलचस्पी उस बड़ी यंत्रणा की तरफ इंगित करती है जो समाज में संतान रहित स्त्रियों को झेलनी पड़ती है. अपनी बात  को और साफ़ करते हुए उन्होंने लिखा है कि मीडिया अपनी जितनी ताकत यह बात उजागर करने पर खर्च कर रहा है कि मैं प्रैग्नेंट हूं या नहीं वह इस सोच की परिणति है कि कोई भी स्त्री, अगर वह विवाहिता है लेकिन उसके बच्चे  नहीं हैं तो फिर वह नाकामयाब, नाखुश और अधूरी है. एनिस्टन ने बलपूर्वक कहा है कि अपनी पूर्णता के लिए हमारा शादी शुदा या मां होना क़तई ज़रूरी नहीं है. यह तै करने का अधिकार पूरी तरह हमारा है कि हम किसमें और किस तरह खुश हैं.

एनिस्टन के इस लेख का जहां अधिकांश  सितारों ने समर्थन  किया है, पापाराज़ी की दुनिया के कुछ सक्रिय सदस्यों ने इससे अपनी असहमति भी व्यक्त की है. लेकिन इससे शायद ही कोई असहमत हो कि अपने इस लेख के माध्यम से एनिस्टन ने हमारे समय के कुछ बेहद ज़रूरी सवाल उठाए हैं. 

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 26 जुलाई, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ. 

Tuesday, July 19, 2016

फ्रांस के राष्ट्रपति का महंगा केश-प्रेम

शायद पूरी दुनिया में ऐसा ही होता है. चुने जाने से पहले नेता सादगी की बातें करते हैं, अगर प्रतिपक्ष में होते हैं तो जो सत्ता में हैं उनकी फिज़ूलखर्ची की जी खोल कर आलोचना करते हैं, लेकिन जब वे खुद सत्तासीन हो जाते हैं तो जैसे कोई जादू की छड़ी घूमती है और पिछली बातें उन्हें याद ही नहीं रहतीं हैं. भारत में तो हम इस प्रवृत्ति के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि अब ऐसा होना हमें न तो चौंकाता है और न व्यथित करता है. हममें से बहुत सारे  लोग यह भी मानते हैं कि कथनी और करनी का यह भेद औरों की तुलना में हम भारतीयों में अधिक है. लेकिन अब  सुदूर फ्रांस से जो ख़बर आई है उसने हमारे इस सोच को डगमगा दिया है. फ्रांस में सन 2012 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में फ्रांस्वां ओलांद विजयी रहे थे. उनसे पहले 2007 से 2012 तक वहां के राष्ट्रपति थे निकोलस सार्कोजी, जो अपनी खासी महंगी और विलासितापूर्ण जीवन शैली के लिए लगातार चर्चाओं में रहे थे. इनके खिलाफ़ अपने चुनाव अभियान में फ्रांस्वां ओलांद ने अपने सादे  जीवन का भरपूर यशोगान  किया था और खुद को मिस्टर नॉर्मल के रूप में जनता के सामने पेश किया था. जीत जाने के बाद उन्हें समाजवादी राष्ट्रपति ही कहा  भी गया. लेकिन अब उन्हीं के अंत:पुर से जो ख़बरें बाहर आई हैं उनसे उनकी कौशल पूर्वक निर्मित यह सादगीपूर्ण छवि पूरी तरह नष्ट हो गई है. 

फ्रांस के एक व्यंग्यात्मक साप्ताहिक अख़बार ले-कानार-एंशेने में यह बात उजागर हुई है कि राष्ट्रपति महोदय ने अपने थोड़े-से बचे बालों की साज-संवार  के लिए अनुबंध पर एक हेयर ड्रेसर रखा है. इस हेयर ड्रेसर का नाम ओलिवर बी. बताया गया है. इस हेयर ड्रेसर को प्रतिमाह दस हज़ार यूरो (भारतीय मुद्रा में करीब 7.15 लाख रुपये) के अनुबंध  पर पूरे पांच साल के लिए रखा गया है. यानि इसे  पांच बरस में छह लाख यूरो का  भुगतान होगा. इन ओलिवर  महाशय को इस नियमित वेतन के अलावा मकान, वितीय सहायताएं  और अन्य परिवार विषयक सुख सुविधाएं भी देय हैं. दस हज़ार यूरो प्रतिमाह की यह राशि कितनी बड़ी है इसे समझने के लिए यह जान लेना काफी होगा कि इन राष्ट्रपति महोदय के काबिना सदस्यों को 9,940 यूरो का वेतन देय होता है और खुद राष्ट्रपति महोदय को 14,910 यूरो प्रतिमाह वेतन के रूप में मिलते हैं. अनुबंध के अनुसार ओलिवर को चौबीसों घण्टे राष्ट्रपति महोदय की सेवा में हाज़िर रहना होता है.  वे राष्ट्रपति जी की विदेश यात्राओं में भी उनके साथ जाते हैं. हर सुबह, हर भाषण से पहले और जब भी राष्ट्रपति जी चाहें ओलिवर को उनकी सेवा में उपस्थित होना होता है. अनुबंध में यह भी उल्लिखित है कि वे अपने काम आदि के बारे में और उस दौरान प्राप्त सूचनाओं को लेकर  पूरी गोपनीयता बरतेंगे. ओलिवर की सेवा शर्तें  इतनी कड़ी है कि उन्हें अपनी संतान के जन्म के अवसर पर भी छुट्टी नहीं मिल सकी.

कोई व्यक्ति, भले ही वह किसी देश का  राष्ट्रपति ही क्यों न हो, अपनी साज सज्जा कैसे करे, यह उसका निजी मामला है और इस पर कोई बहस होनी नहीं चाहिए. लेकिन फ्रांस्वां ओलांद का अपने बालों से यह मोह चर्चा का विषय इसलिए बन गया कि ओलिवर बी. की यह  नियुक्ति सरकारी खर्चे पर की गई है. और जब खुद सरकार ने इस बात का पुष्टि कर दी है तो इस बात को सनसनीखेज पत्रकारिता या विरोधियों की दुर्भावना का नाम भी नहीं दिया जा सकता.

इधर फ्रांस्वां ओलांद के नेतृत्व वाली सरकार अर्थव्यवस्था में तथाकथित सुधार के लिए उठाए गए बहुत सारे कदमों के लिए न केवल निन्दा वरन हिंसक प्रदर्शनों तक का सामना कर रही है, और  इनकी  वजह से उनकी लोकप्रियता का ग्राफ इतना नीचे गिर चुका है कि उन्हें फ्रांस का अब  तक का सबसे अलोकप्रिय राष्ट्रपति कहा जाने लगा है. अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए वे कम्पनियों के लिए अपने कर्मचारियों को दी जाने वाली  सुविधाओं में कटौती और उन्हें नौकरी से निकालने की राह सुगम करते जा रहे हैं. ऐसे में स्वाभाविक ही है कि अपने  धन  का ऐसा दुरुपयोग  जनता को अप्रिय लगा है. सोशल मीडिया पर चटखारे लेकर इसकी चर्चाएं हो रही हैं.  लोग यह भी नहीं भूल सके हैं कि पूर्व  राष्ट्रपति निकोलस सार्कोजी ने अपनी सेवा में एक मेकअप आर्टिस्ट तैनात कर रखा था जिसे हर माह आठ हज़ार यूरो का भुगतान  किया जाता था. जनता पूछ रही है कि दोनों में क्या अंतर है?

इस तरह की ख़बरों से लगता है कि जनता की  गाढ़ी कमाई के पैसों को पानी की तरह बहाने के काम में किसी भी देश के नेता पीछे नहीं रहना चाहते हैं.
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जयपुर  से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 19 जुलाई, 2016 को चर्चा में फ्रांस के राष्ट्रपति का महंगा केश-प्रेम शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ. 


Tuesday, July 12, 2016

सिटी ऑफ कल्चर का जश्न एक अनूठे अन्दाज़ में

हाल में इंग्लैण्ड के पूर्वी यॉर्कशायर के किंग्स्टन शहर  में एक अनूठा आयोजन हुआ. अमरीका के एक जाने-माने छायाकार स्पेंसर ट्यूनिक ने इस किंग्स्टन शहर की  फेरेन्स आर्ट गैलेरी के बुलावे पर करीब बत्तीस सौ लोगों का एक इंस्टॉलेशन निर्मित करवाया. फेरेन्स गैलेरी वालों ने यह आयोजन अगले बरस हल शहर को यूके सिटी ऑफ कल्चर के रूप में  नामित किये जाने के उत्सव के एक अंग के रूप में किया था. न्यूयॉर्क के मिडलटाउन के एक यहूदी परिवार में जन्मे फोटोग्राफर स्पेंसर ट्यूनिक की ख्याति ऐसे ही विशालकाय इंस्टॉलेशन को शूट करने के लिए है. वे पिछले बीस बरसों में सिडनी के ऑपेरा हाउस, मॉण्ट्रियल के प्लेस डेस आर्ट्स, मेक्सिको सिटी, विएना के एरनेस्ट हैप्पल स्टेडियम और जर्मनी के म्यूनिख शहर जैसे अनेक बड़े सांस्कृतिक केन्द्रों पर ऐसे नब्बे से ज़्यादा आर्ट इंस्टॉलेशन बनवा और उन्हें शूट कर  चुके हैं.

स्पेंसर ट्यूनिक के इस इंस्टॉलेशन  के लिए काफी पहले से तैयारियां शुरु कर दी गई थीं और नागरिकों से अनुरोध किया गया था कि वे इसके लिए पंजीकरण करा लें. इस इंस्टॉलेशन के लिए स्पेंसर को ढाई से तीन हज़ार के बीच लोगों  की ज़रूरत थी लेकिन नागरिकों का  उत्साह इतना सघन था कि बत्तीस सौ नागरिक निर्धारित स्थल पर पहुंच गए. हल के सिटी सेण्टर को जाने वाले सारे रास्ते आधी रात से अगली सुबह दस बजे तक के लिए बन्द कर दिये गए थे. नागरिक गण बताए गए स्थान पर सुबह तीन बजे से एकत्रित होने लगे थे. उनमें युवा भी थे और वृद्ध भी. सशक्त भी और अशक्त भी. तेज़-तेज़ चल कर आने वाले भी तो बैसाखियों के सहारे बमुश्क़िल आने वाले या व्हील चेयर्स पर बिठा कर लाये जाने वाले भी. और अब इस इंस्टॉलेशन की खास बात बता दूं. इस इंस्टॉलेशन में सारे नागरिकों को निर्वस्त्र होकर हिस्सा लेना था. उनकी सहायता के लिए बहुत सारे अवैतनिक स्वयंसेवक भी मौज़ूद थे जिन्होंने उन्हें निर्वस्त्र होने में और फिर उनकी देहों को रंगने में मदद की. इन स्वयंसेवकों को ‘न्यूड रेंगलर्स’  अर्थात निर्वस्त्र लड़ाकों का नाम दिया गया था. करीब तीन घण्टे चले इस फोटो शूट के लिए इन तीन हज़ार दो सौ लोगों को अपने तमाम वस्त्रादि उतार कर अपनी देह को चार अलग-अलग शेड्स वाले नीले रंग से रँगना था. इन चार शेड्स का चयन फेरेन्स की आर्ट गैलेरी के संग्रहालय की  कृतियों के आधार पर किया गया था.

जहां तक भाग लेने वालों की देह को रंगने का सवाल है, आयोजकों ने इसके पीछे दो मक़सद बताए. एक तो यह कि नीला रंग समुद्र का प्रतीक है और यह आयोजन वहां के समुद्रीय इतिहास की स्मृति में है और  इसीलिए ये  इंस्टॉलेशन किंग्स्टन शहर के समुद्रीय  इतिहास के लिहाज़ से महत्वपूर्ण एकाधिक स्थलों पर किए गए थे,  और दूसरी बात यह कि भाग लेने वालों को यह एहसास होगा कि उनके शरीर पर कोई आवरण तो है, भले ही वह रंग का ही क्यों न हो. यानि इस तरह उन्हें अपने संकोच से निज़ात मिल सकेगी. लेकिन जिन लोगों ने इस इंस्टॉलेशन में भाग लिया, उनमें से अधिकांश की प्रतिक्रियाओं से लगा कि उनके मन में संकोच जैसा कोई भाव आया ही नहीं. उदाहरण के लिए इस समूह में शामिल अस्सी वर्षीय कला संग्राहक स्टीफेन जानसेन को लीजिए जो चौंसठ बरस की उम्र से इस तरह के आयोजनों का हिस्सा बन रहे हैं और अब तक बीस बार उनमें शिरकत कर चुके हैं. उन्हें नग्नता की अपेक्षा शीत का भय था, लेकिन फिर उन्हें यह भी  याद आया कि 2008 में डब्लिन में तो मौसम बहुत ज़्यादा सर्द था.   

इतने बड़े जन समूह को देख स्पेंसर स्वाभाविक रूप से आह्लादित थे. उन्हें लगा जैसे एक विशालकाय किंतु नाज़ुक-लचीली  नीली देह और कंक्रीट की दुनिया आमने-सामने है और इसमें वे एक दिलचस्प गति देख रहे थे. इस मंज़र की एक और व्याख्या उन्होंने इस तरह की कि नीले जन समूह में उन्हें मौसम के बदलाव के कारण आया समुद्री ज्वार समुद्र दिखाई दिया. उन्हें लगा जैसे इन देहों के माध्यम से पूरी मानवता ही शहर की गलियों में प्रवाहित हो रही है.  
    
इन इस्टॉलेशंस पर आधारित स्पेंसर ट्यूनिक के छायाचित्रों की प्रदर्शनी सन 2017 में उस वक़्त आयोजित की जाएगी जब इस हल शहर को यूके सिटी ऑफ कल्चर घोषित करने के उत्सव आयोजित होंगे. यूके में हर चौथे साल किसी शहर को सिटी ऑफ कल्चर घोषित किया जाता है. आयोजकों का खयाल है कि इस इंस्टॉलेशन  के माध्यम से वे अपने शहर के हज़ारों लोगों को कलाकृति का हिस्सा बनने का भी अवसर दे रहे हैं. इंस्टॉलेशन में भाग लेने वले नागरिकों को हालांकि कोई पारिश्रमिक देय नहीं है, उनमें से जिनकी वय 18 से अधिक है उन्हें इस कृति का एक सीमित संस्करण वाला छायाचित्र प्रदान किया जाएगा.

इस इंस्टॉलेशन की जो छवियां अभी सामने आई हैं वे निस्संदेह स्पेंसर के काम के प्रति गहरी उत्कंठा जगाती हैं.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 12 जुलाई, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.     

Tuesday, July 5, 2016

साथ बैठने वाला प्रभावित करता है आपकी ड्राइविंग

शायद इस बात से थोड़ा सुकून मिले कि युवाओं द्वारा बेहद तेज़ गति से वाहन चलाकर दुर्घटनाएं  करने की समस्या से अकेले हम भारतवासी ही त्रस्त नहीं हैं. अगर अमरीका के एक अन्वेषण  केन्द्र की रपट पर भरोसा करें तो वहां युवा  लोगों की  मृत्यु का सबसे बड़ा कारण ट्रैफिक दुर्घटनाएं ही हैं, और अकेले एक बरस (2014) में वहां इन दुर्घटनाओं ने 2600 किशोरों को मौत के घाट उतार दिया. जहां इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि सतत प्रयासों से 2005 से 2014 तक आते-आते इन प्राणघातक दुर्घटनाओं की संख्या में पचास प्रतिशत की कमी लाई जा सकी है, वहीं इस बात पर चिंता  होना भी स्वाभाविक है कि 2014 से 2015 तक आते-आते इनमें दस प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.

लेकिन जैसी अमरीका की रिवायत है वहां इंसान  की जान को वाकई कीमती समझा जाता है और उसे बचाने के हर मुमकिन प्रयास किये जाते हैं. अमरीका में, बावज़ूद इस बात के कि हर राज्य के अपने नियम-कानून हैं, सामान्यत: ड्राइविंग लाइसेंस मिलना बहुत आसान नहीं माना जाता है. लेकिन अब इन नियमों को और कठोर बनाने के लिए सोचा जाने लगा है. इसी के साथ वहां के विश्वविद्यालय और शोध संस्थान लगातार शोध करते हुए दुर्घटनाओं के कारणों और उनसे बचाव के तौर-तरीकों पर गहन और प्रामाणिक शोध करते रहते हैं और इस तरह की शोधों के परिणामों को नई नीतियों के निर्माण के वक़्त समुचित अहमियत भी दी जाती है. अब इसी बात को लीजिए कि वहां की एक काउण्टी में 2004 में हुई एक सड़क दुर्घटना में एक हाईस्कूल की फुटबॉल टीम के तीन खिलाड़ियों की मृत्यु के बाद से शुरु हुआ शोध का सिलसिला अब तक ज़ारी है. तब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने लेज़र उपकरणों  और वीडियो कैमरों से लैस शोधकर्ताओं की कई टीमों  को भेजकर यह पड़ताल शुरु की थी कि किसी युवा के साथ अगर गाड़ी में कोई अन्य व्यक्ति भी हो तो उसकी ड्राइविंग पर उसकी उपस्थित का क्या प्रभाव होता है. तब शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर गाड़ी में युवा लोग सवार हों तो दुर्घटना की आशंकाएं अधिक होती हैं.

और अब उसी शोध को आगे बढ़ाते हुए इसमें ड्राइविंग सिम्यलेशंस और ब्रेन स्कैन्स  को भी  शामिल कर लिया गया है. इस शोध में एक प्रयोग यह किया गया कि सोलह से अठारह बरस के आयु समूह के ऐसे कुछ युवाओं से जिन्हें हाल ही में डाइविंग लाइसेंस मिला था, कहा गया कि उनमें से हरेक के साथ एक और युवा को बिठाकर ड्राइविंग सिम्यलेशन किया जाएगा. और यहीं एक छल किया गया. उनके साथ जिस युवा को बिठाया गया वो खास तौर पर इस काम के लिए प्रशिक्षित था और एक स्क्रिप्ट के तहत बर्ताव कर रहा था. ऐसे दो तरह के युवाओं को इन नए ड्राइवर युवाओं के साथ बिठाया गया. एक वर्ग का युवा कुछ देर से पहुंचता है और आते ही कहता है कि मुझे देर हो जाने की वजह यह है कि मैं धीमे ड्राइव करता हूं, और फिर रास्ते में हर पीली बत्ती पर भी गति धीमी करता रहा. दूसरे वर्ग का  युवा भी इसी तरह देर से आया, लेकिन आते ही बोला कि देरी के लिए माफी चाहता हूं. आम तौर पर तो मैं काफी तेज़ ड्राइव करता हूं लेकिन आज मुझे बहुत सारी लाल बत्तियों पर रुकना पड़ा. इसके बाद ये लोग अपने-अपने साथियों के साथ सिम्युलेटर्स  पर बैठते हैं. नया आया युवा ड्राइव करता है और जो पहले वाला और वास्तविक युवा ड्राइवर  है वह उसके साथी के रूप बैठ जाता है. बाद में आए दोनों युवा अपनी-अपनी भूमिकाओं के अनुरूप यानि एक संयत तरह से और दूसरा आक्रामक तरह से ड्राइव करते हैं. और इसके बाद असल युवा ड्राइवरों  को ड्राइव करने को कहा जाता है.


जो परिणाम सामने आते हैं वे बहुत अहम हैं. आक्रामक युवा के साथ जो युवक बैठा था, जब वो वाहन चलाता है तो खुद भी आक्रामक और ग़ैर ज़िम्मेदार हो जाता है. इसके विपरीत, संयत युवा के साथ जो युवक बैठा था जब उसे खुद गाड़ी चलानी होती है तो उसका बर्ताव संयत ही रहता है. इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि ड्राइव करने वाले के साथ जो व्यक्ति बैठता  है उसका असर ड्राइव करने वाले पर ज़रूर पड़ता है. और इससे संग़ति को लेकर हमारे यहां प्रचलित बहुत सारे कथनों को भी बल मिलता है. अमरीका में इस तरह के अनेक प्रयोग किये गए हैं और उन सभी के नतीजे करीब-करीब एक जैसे हैं. इन नतीज़ों के आधार पर अब वहां ड्राइविंग को और अधिक सुरक्षित और ज़िम्मेदारीपूर्ण बनाने के लिए विभिन्न कार्ययोजनाएं तैयार की जा रही हैं.

आशा की जानी चाहिए कि हमारे यहां भी वक्तव्यों और घोषणाओं के पार जाकर कुछ ठोस और सकारात्मक किया जाएगा.

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 05 जुलाई, 2016 को इसी शीर्षक से प्र्काशित आलेख का मूल पाठ.