कनाडा के क्यूबेक प्रांत के सैंकड़ों
डॉक्टरों
और चिकित्सा कर्मियों ने अपनी सरकार को एक ज्ञापन देकर अपने बढ़े हुए वेतन का विरोध
किया है और सरकार से अनुरोध किया है कि वह इस राशि का इस्तेमाल नर्सों के लिए तथा
मरीज़ों को बेहतर चिकित्सा सुविधा देने के लिए करे. यह बात सर्वविदित है कि कनाडा
में सरकार सभी नागरिकों को निशुल्क चिकित्सा सेवा प्रदान करती है. यह सुविधा मरीज़
की ज़रूरत पर आधारित होती है न कि उसकी खर्च करने की क्षमता पर. इसी फरवरी माह में
वहां की सरकार ने अपने इस इलाके के मेडिकल स्पेशलिस्ट्स की तनख़्वाह में 1.4
प्रतिशत की वृद्धि करने की घोषणा की थी.
ऐसा माना जाता है कि
क्यूबेक इलाके में डॉक्टरों को देश के अन्य इलाकों की तुलना में पहले ही ज़्यादा
वेतन मिलता है. लेकिन इसी इलाके में नर्सों और अन्य चिकित्सा सेवकों की हालत बहुत
बुरी है. इसी जनवरी में वहां की एक नर्स एमिली रिकार्ड की एक फेसबुक पोस्ट वायरल
हुई थी जिसमें उसने अपनी नम आंखों की एक तस्वीर लगाते हुए बताया था कि उसे पूरी
रात जागकर सत्तर मरीज़ों की देखभाल करनी पड़ी है और अब उसके पांव इतना दर्द कर रहे
हैं कि वह सो भी नहीं पा रही है. उसने लिखा था कि वह अपने काम के बोझ से टूट चुकी
है और उसे इस बात से शर्मिंदगी महसूस हो रही है कि वो अपने मरीज़ों को कितनी कम
सेवा दे पाती है. “हमारा स्वास्थ्य तंत्र बीमार और मरणासन्न है.” कल्पना की जा
सकती है कि कितनी पीड़ा के साथ उसने यह लिखा होगा. कनाडा के नर्सिंग संघ ने भी
सरकार पर ज़ोर डाला है कि वो यह सुनिश्चित करे कि एक नर्स को अधिकतम कितने मरीज़ों
की देखभाल करनी है. क्यूबेक की नर्स यूनियन की अध्यक्ष नैंसी बेडार्ड का कहना था
कि डॉक्टरों के लिए तो पैसों की कोई कमी नहीं होती है लेकिन मरीज़ों की देखभाल करने
वाले औरों की कोई परवाह नहीं की जाती
है.
नर्सों की इस व्यथा-कथा ने
क्यूबेक के डॉक्टरों की अंतरात्मा को इस कदर झकझोरा कि उन्होंने एक ज्ञापन देकर
अपनी सरकार से यह अनुरोध कर दिया कि
वह उनके बढ़ाये हुए वेतन को निरस्त कर दे
और इस तरह जो राशि बचे उसे बगैर स्वास्थ्य कर्मियों के कार्यभार को असह्य बनाए, क्यूबेक क्षेत्र
के लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने में खर्च कर दे. अपने पत्र में
उन्होंने लिखा है कि हमारी तनख़्वाहों में यह वृद्धि इसलिए और भी ज़्यादा आहत करने
वाली है कि हमारी नर्सों, क्लर्कों और अन्य पेशेवरों को बहुत कठिन हालात में
काम करना पड़ रहा है और हमारे मरीज़ों को हाल के वर्षों में की गई भीषण कटौतियों और
सारी सत्ता के स्वास्थ्य मंत्रालय में केंद्रीकृत हो जाने की वजह से ज़रूरी
सुविधाओं तक से वंचित रहना पड़ रहा है. इन तमाम कटौतियों का जिस एक बात पर कोई असर
नहीं पड़ा है वो है हमारी तनख़्वाहें. और इसलिए इस वृद्धि को ‘अभद्र’ बताते हुए उन्होंने
लिखा,
“हम
क्यूबेक डॉक्टर यह अनुरोध कर रहे हैं कि चिकित्सकों को दी गई वेतन वृद्धि वापस ले
ली जाए और इस तंत्र के संसाधनों का बेहतर
वितरण स्वास्थ्य कर्मियों की बेहतरी के लिए और क्यूबेक के नागरिकों को स्वास्थ्य
सेवाएं सुलभ कराने के लिए किया जाए.”
यह प्रकरण हमारी आंखें खोल
देने वाला है. इससे पता चलता है कि एक ज़िम्मेदार और सभ्य समाज का चेहरा कैसा होता
है. क्यूबेक के डॉक्टर चाहते तो बिना कोई ना-नुकर किये अपनी बढ़ी हुई तनख़्वाहें
स्वीकार कर सकते थे. लेकिन उनके इंसान होने के एहसास ने उन्हें यह न करने दिया.
अपने से ज़्यादा फिक्र उन्हें अपने सहकर्मियों की थी कि उन्हें कम तनख़्वाह में
ज़्यादा समय खटना पड़ता है. उन्होंने इस बात की भी फिक्र की कि उनके प्रांत के
नागरिकों को सरकारी कटौती की वजह से उस ज़रूरी स्वास्थ्य सेवा से वंचित रहना पड़ रहा
है जिसके वे हक़दार हैं.
लेकिन सब जगह सब कुछ अच्छा
ही नहीं होता है. डॉक्टरों की इस
संवेदनशीलता पर झाड़ू फेरते हुए कनाडा के
चिकित्सा मंत्री ने अपने बयान में कहा कि अगर डॉक्टरों को लगता है कि उन्हें
ज़्यादा तनख़्वाहें दी जा रही हैं तो वे उसे टेबल पर ही छोड़ जाएं. मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूं कि हम उस रकम का
बेहतर इस्तेमाल कर लेंगे. डॉक्टरों की इस व्यथा पर टिप्पणी करते हुए कि नर्सों को
बहुत कम वेतन मिल रहा है और रोगियों पर होने वाले खर्च में कटौतियां की जा रही हैं, मंत्री जी ने
फरमाया कि हमारे पास तमाम ज़रूरतों के लिए पैसा है और हम समय पर सारी समस्याएं हल
कर लेंगे.
यानि मंत्री तो कनाडा में
भी वैसे ही हैं जैसे अपने देश में हैं!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ डुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 13 मार्च, 2018 को 'कनाडा के डॉक्टरों ने लौटाया बढ़ा हुआ वेतन' शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.