Thursday, May 8, 2008

ये मेरा प्रेम पत्र पढकर.....

लाइफ पत्रिका के पूर्व सम्पादक बिल शापिरो को एक पुराना खत मिला. यह खत उस महिला का था, जिससे कभी वे डेटिंग किया करते थे. खत उस महिला को किसी ने तब लिखा था जब शापिरो उसकी ज़िन्दगी में नहीं आए थे. इस खत ने शापिरो को यह सोचने को प्रेरित किया कि किसी के लिए ऐसे खतों की क्या अहमियत हो सकती है, और क्यों ऐसा होता है कि कुछ लोग तो ताज़िन्दगी खतों को सीने से लगाए रहते हैं और कुछ उन्हें बिल्कुल भी महत्व नहीं देते! सोच का सिलसिला आगे बढा तो वे अपने मित्रों-परिचितों से उनके प्रेम-पत्र प्राप्त करने में जुट गए. अपनी तलाश को और भी विस्तार देते हुए उन्होंने लोगों के घरों की टाण्डों, अलमारियों, यहां तक कि उनके सिगार और शू बॉक्सेज़ तक़ को टटोल लिया. इस तरह उनके हाथ लगा विविध वर्णी, असल प्रेम पत्रों का एक बडा खज़ाना. इन खतों में थी सम्वेदनाओं की नाज़ुकी, रिश्तों की कमनीयता, अभिव्यक्ति की बेबाकी, मन का अपराध बोध, बेपनाह गुस्सा और भी न जाने क्या-क्या. लेकिन जो भी था, था बेहद ईमानदार क्योंकि ये खत केवल और केवल प्रेम करने वाले के लिए लिखे गए थे. इन सारे खतों में से चुनिन्दा खतों का खूबसूरत संकलन बिल शापिरो ने “अदर पीपुल्स लव लैटर्स: 150 लैटर यू वर नेवर मेण्ट टू सी” शीर्षक से प्रस्तुत किया है. ये खत एक बात तो यह साफ करते हैं कि आज का प्रेम केवल वरदान नहीं है. इन खतों के माध्यम से हम रिश्तों के एक ऐसे बडे कैनवस से रू-ब-रू होते हैं जिसमें उल्लास से लेकर अवसाद तक सब कुछ है. इन पत्रों को पढते हुए यह भी एहसास होता है कि हमारा समाज देह के पीछे किस हद तक पागल है, और यह भी कि इसका उसे अफसोस भी है.
किताब में जो सामग्री है, उसे खत कहने में थोडी उदारता बरतनी पड रही है, क्योंकि जो कुछ यहां प्रस्तुत किया गया है वह सब पारम्परिक अर्थ में खत नहीं है. कहीं किसी पोस्टकार्ड पर कुछ घसीट दिया गया है, तो कहीं किसी पोस्ट-इट नोट पर ही कुछ लिख दिया गया है. कहीं किसी कॉकटेल नैपकिन पर कुछ लिख दिया गया है तो कहीं वह भी न मिलने पर माचिस की डिबिया का ही इस्तेमाल कर लिया गया है. ये पत्र क्योंकि अत्यंत साधारण लोगों के हैं, इनमें से कई की लिखावट ऐसी है कि उसे पढने में खासा प्रयत्न करना पडता है. वर्तनी और व्याकरण की भूलों की कोई कमी नहीं है. लेकिन यही सहजता इन पत्रों को उन पत्रों से अलग करके आत्मीय बनाती है जो पेशेवर लोगों की किताबों में मिलते हैं. इन पत्रों का दर्द और पश्चाताप इतना असल और हृदयस्पर्शी है कि आपको लगता है, जैसे आपने ही इन्हें जिया और लिखा है.

इन पत्रों की कालावधि खासी लम्बी है. पुलिस चीफ पीटर जे डोर्टी का 22 दिसम्बर 1911 को ‘डियरेस्ट लिज़ी’ को लिखा पत्र हमें पीछे ले जाता है तो ई मेल, टेक्स्ट मैसेज और यहां तक कि ब्लॉग्ज़ भी, हमें आज के समय में ले आते हैं. इन अलग-अलग काल खण्डों के पत्र यह भी साफ करते हैं कि ई मेल जैसी नई तकनीक लिखने की कला पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है. शब्दों के सधे और कलात्मक प्रयोग का स्थान अब दो-टूक और सपाट अभिव्यक्ति ले रही है. एक मेल का यह अंश देखें : ‘आज मेरे मन में फिर से दुष्ट विचार आ रहे हैं. क्या तुम उनके बारे में जानना चाहोगी?’ किताब प्रेम के बदलते स्वरूप का परिचय देने के साथ-साथ इस बात से भी आह्लादित करती है कि प्रेम के आरम्भिक दिनों का माधुर्य अगर बाद तक भी बना रहता है तो कितना प्रीतिकर हो जाता है. किताब में लम्बे समय से विवाहित कुछ युगलों के पत्र इस बात का एहसास कराते हैं. इसी तरह 1969 में वियतनाम से लिखा गया एक सैनिक का पत्र अपनी मार्मिकता में विलक्षण है.

शापिरो खतों को जस-का तस प्रस्तुत करके ही नहीं रुक गए हैं, उन्होंने इन पत्र लेखकों में से अनेक से बात करके यह भी जाना और बताया है कि बाद में उनके सम्बन्धों की परिणति क्या हुई. किताब का एक बडा आकर्षण इस बात में है कि इन सारे पत्रों को यहां उनके मूल रूप में, छाया के रूप में, प्रस्तुत किया गया है. इसलिए इन्हें पढने के साथ देखने का भी अनुभव जुड जाता है. हम सलवटों से भरे कागज़, मुडे-तुडे नैपकिंस, कीडे-मकोडों जैसी हस्त लिपि, फैली स्याही – इन सबसे बावस्ता होते हुए, यह जानते हुए भी कि दूसरों की निजी ज़िन्दगी में झांकना शालीनता के खिलाफ हैं, ऐसा करके स्वयं को समृद्ध करते हैं.

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Discussed book:
Other People’s Love Letters: 150 Letters You Were Never Meant to See
By Bill Shapiro (Editor)
Published by: Crown Publishing Group
192 Pages, Hardcover
2007.


राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट जस्ट जयपुर में मेरे साप्ताहिक कॉलम वर्ल्ड ऑफ बुक्स के अंतर्गत 08 मई 2008 को प्रकाशित.








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