Tuesday, October 27, 2015

हनीमून फोटोग्राफी: दो के साथ तीसरा क्यूं?

पिछले पचास-साठ बरसों में भारतीय वैवाहिक व्यवस्थाओं में जो बड़े बदलाव आए हैं उनमें वैवाहिक फोटोग्राफ़ी में आए बदलाव खास तौर पर ग़ौर तलब हैं. अगर आप आज पिछली या उससे पिछली पीढ़ी के प्रोपोज़ल फोटोग्राफ़ और शादी के एलबम देखें तो शायद  हंसे बग़ैर न रहें. किसी स्टूडियो में एक कृत्रिम गमले के पास खड़ी सकुचाई सिमटी युवती या थ्री पीस सूट में अकड़े और असहज खड़े युवा की तस्वीर हो या वो भारी भरकम एलबम हो जिसमें श्वेत श्याम तस्वीरें पहले कॉर्नर्स के सहारे अटकाई जाती थी और बाद में रंगीन तस्वीरें सीधे ही शीट पर प्रिण्ट की जाने लगीं, इन सबमें लोग जिन मुद्राओं में दिखाई देते हैं वे आज के दर्शक के मुंह पर एक वक्र मुस्कान लाने के लिए पर्याप्त हैं.   स्टिल तस्वीरों के बाद आया वीडियो का ज़माना जब हममें से ज़्यादा वीडियो के लिए भी वैसे ही पोज़ दिया करते थे जैसे स्टिल फोटो के लिए देते थे. पहले वीडियो फोटोग्राफी होती और फिर हमारा स्टूडियो उसमें स्पेशल इफेक्ट डाल कर और उसे चालू  फिल्मी संगीत  से सज़ा कर वीडियो कैसेट बना कर हमें देता जिसे थोड़े समय बाद हम वीसीडी में भी कन्वर्ट  करवाने लगे. अब शादियों में ड्रोन से फोटोग्राफी का चलन लोकप्रिय होता जा रहा  है.

बात सिर्फ तकनीक की ही नहीं है. अगर आप इन तस्वीरों और वीडियोज़ में दुल्हा दुल्हन और उनके परिजनों की मुद्राओं को देखें तो बदलाव को बहुत आसानी से लक्ष्य कर सकते हैं. पहले की तस्वीरों में दुल्हा-दुल्हन के बीच एक सम्मानजनक दूरी साफ देखी जा सकती है जो लगातार कम होती गई है. पहले की तस्वीरों में जैसे वे प्रयत्न करते हैं कि कहीं एक दूसरे को छू न लें, और यह प्रयत्न लुप्त होते-होते हालत यह हो गई कि दुल्हा दुल्हन एक दूसरे का हाथ थामे, आलिंगन बद्ध हो या चुम्बन करते हुए फोटो खिंचवाना भी ज़रूरी समझने लगे. इस बदलाव के मूल में समाज और जीवन शैली में आए बदलाव का भी कम योगदान नहीं है. हम सिल्वर स्क्रीन पर भी तो यह बदलाव देख रहे हैं. कह सकते हैं कि जो सिल्वर स्क्रीन पर कुछ समय पहले घटित हुआ वह हमारे शादी के एलबमों में अब घटित हो रहा है.

जी हां. अब शादी से पहले दुल्हा दुल्हन बाकायदा रोमांस करते हुए फिल्म बनवाते हैं और वह फिल्म शादी के वक़्त सबको दिखाई जाती है. निश्चय ही शादी से पहले का यह रोमांस काफी सात्विक होता है और अगर फिल्म बनवाने वालों का आर्थिक और मानसिक स्तर उच्च होता है तो यह फिल्म काफी आकर्षक और सुरुचिपूर्ण भी होती है. लेकिन इसके बाद जो नए बदलाव आ रहे हैं वे काफी कुछ सोचने को विवश करते हैं. इधर एक नया चलन यह हुआ है कि आर्थिक रूप से समर्थ नव विवाहित युगल अपने हनीमून के लिए भी वीडियोग्राफर की सेवाएं लेने लगे हैं और वे सब कुछ को कैमरे में कैद करवा लेना चाहते हैं. इस सब कुछ को आप ख़ास तौर पर ग़ौर से पढ़ें. असल में यह सब कुछ को कैमरे में कैद करवाने का चलन हनीमून के वक़्त निर्वसन तस्वीरें खिंचवाने के चलन की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है. कुछ हाई फाई लोगों में दुल्हन की अनौपचारिक अन्तरंग  तस्वीरें खिंचवाने का चलन तो कुछ समय से था ही, जब फोटोग्राफर्स से यह आग्रह किया जाने लगा कि वे हनीमून के दौरान दुल्हन की निर्वसन छवियां भी कैमरे में कैद करें तो फोटोग्राफी की दुनिया में भी थोड़ी हलचल हुई. बहुत सारे जाने-माने  वैवाहिक छायाकारों ने ऑन रिकॉर्ड यह बात कही है कि उन्हें इस तरह के अनुरोध प्राप्त हुए हैं और इन अनुरोधों को पाकर वे असहज हुए या हुई हैं. एक फोटोग्राफर ने कहा है कि उन्हें ऐसा अनुरोध वर की तरफ से प्राप्त हुआ, जिस पर उसने पलटकर यह पूछा कि क्या इस बात के लिए वधू की इच्छा भी जान ली गई है, और जब इस सवाल का जवाब नकारात्मक मिला तो उसने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया. एक और फोटोग्राफर ने बताया कि किसी बहुत बड़े क्लाएंट के यहां से यह प्रस्ताव आया था और उसे सीधे इंकार करने में संकोच हुआ इसलिए उसने यह सोच कर भारी राशि की मांग कर ली कि प्रस्ताव करने वाला खुद ही पीछे हट जाएगा, लेकिन जब उसका यह दांव भी कारगर साबित नहीं हुआ तो उसे सीधे ही मना करना पड़ा.

लेकिन हनीमून के अंतरंग क्रियाकलाप को व्यावसायिक फोटोग्राफर की मदद से कैमरे में कैद करवाने की नई तमन्ना हमें बहुत कुछ सोचने को विवश करती है. क्या यह मात्र अपने अन्तरंग पलों की सुखद स्मृतियों को भविष्य के लिए संजो कर रखने की भावुकतापूर्ण तमन्ना है या इसे किसी मानसिक विकृति की कोटि में शुमार किया जाना चाहिए! आप क्या सोचते हैं?

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत इसी शीर्षक से आज प्रकाशित  आलेख का मूल पाठ.