Tuesday, April 19, 2016

शेक्सपीयर कुछ भी कहें, नाम की अहमियत कम नहीं है

महान अंग्रेज़ी लेखक विलियम शेक्सपीयर का यह कथन आपने ज़रूर सुना होगा-  व्हाट्स इन अ नेम, यानि नाम में क्या रखा है? उनके अमर नाटक रोमियो एण्ड जूलियट में यह बात जूलियट से कहलाई गई  है. शेक्सपियर ने भले ही अपने एक किरदार  से यह कहला दिया हो, दुनिया में नाम  की अहमियत जस की तस है. और मज़े की बात तो यह कि बाकी दुनिया की बात तो छोड़िये, खुद शेक्सपीयर के देश यानि ब्रिटेन में हाल की एक घटना ने एक बार फिर उनके इस बहु उद्धृत कथन पर  सवालिया निशान लगा दिया है.

वहां के वेल्स की पॉविस काउण्टी की एक महिला ने जब अपनी हाल में जन्मी  बेटी का नाम सायनाइड  (एक घातक ज़हर) और उसके भाई का नाम प्रीचर (धर्मोपदेशक) रखना चाहा  तो वहां की एक अदालत के जज  ने उन्हें इस बात की अनुमति नहीं दी. आप पूछेंगे  कि कोई अपनी संतान का नामकरण क्या करना चाहता है इसमें अदालत कहां बीच में आती है? तो,  मैं बता ही देता हूं. हुआ यह कि इस पॉविस काउण्टी काउंसिल के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को जब यह बात पता चली कि उनके इलाके की एक महिला अपने हाल में जन्मे दो जुड़वां बच्चों का अजीबोगरीब नामकरण करना चाह रही है तो उन्हें बीच में कूद पड़ना ज़रूरी लगा. इस पर एक जज ने उस महिला द्वारा अपने नवजात बच्चों के ये असामान्य नाम रखने पर निषेधाज्ञा जारी कर दी.

लेकिन उस महिला ने भी इस  निषेधाज्ञा को सहज रूप से स्वीकार करने की बजाय इसके खिलाफ अपने वकीलों के माध्यम से अपील करना उचित समझा. उसके वकीलों का तर्क था कि वो अपने बच्चों का क्या नामकरण करे यह उसका सहज स्वाभाविक मानवीय अधिकार है और इस पर लगाई गई कोई भी रोक उसके अपने पारिवारिक जीवन के प्रति सम्मान के उसके अधिकार का उल्लंघन होगी.  तीन जजों ने उनकी इस अपील को सहानुभूतिपूर्वक सुना और फिर यह निर्णय सुनाया कि किसी बच्ची  का  नामकरण एक घातक ज़हर के नाम पर करना क़तई स्वीकार्य नहीं है. इन जजों  ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि रुचियों और  फैशन में आने वाले बदलावों और तेज़ी से विकसित होती हुई निजता की अवधारणाओं को स्वीकार करने के बावज़ूद वे मानते हैं कि किसी बच्ची के लिए सायनाइड नाम बहुत अजीब है. इससे पहले उस बच्ची की मां ने अपने पक्ष में दलीलें देते हुए कहा था कि उनका मानना है कि सायनाइड एक प्यारा और खूबसूरत नाम है, इसका सम्बन्ध तो फूलों और पौधों से है  और यह सकारात्मक संकेत भी देता है. अपनी बात को उन्होंने इस तर्क के साथ स्पष्ट  किया कि हिटलर और गोयबल्स जैसों की जान लेना तो उनके खयाल से एक उम्दा  काम था और  इसलिए वे मानती हैं कि यह नाम एक सकारात्मक संदेश देता है.  उस महिला ने प्रीचर नाम का  भी यह कहते  हुए समर्थन किया  कि यह नाम बहुत कूल है और इससे एक सशक्त आध्यात्मिक संदेश मिलता है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस नाम से मिलने वाला सन्देश भविष्य में भी उनके बेटे को सम्बल प्रदान करेगा. लेकिन जज उनके वकीलों और उनकी दलीलों से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने कहा कि यह मामला उन दुर्लभतम मामलों में से एक है जिनमें अदालत को किसी बच्ची को उसके सायनाइड नाम की वजह से  भविष्य में निश्चित रूप से होने वाली मानसिक क्षति से बचाने के लिए हस्तक्षेप करने को मज़बूर होना पड़ रहा है. उनका कहना था कि इस तरह का नाम भविष्य में उस बच्ची के लिए उस बर्ताव की आशंका पैदा करता है जिसे तंग करने की सामान्य सीमाओं से काफी आगे  का माना जा सकता है. इन जजों ने स्वीकार किया कि प्रीचर नाम अजीब होते हुए भी उतना बुरा नहीं है. लेकिन कुल मिलाकर उनका फैसला यह रहा कि इन जुड़वां शिशुओं के हक़ में यही बात उपयुक्त रहेगी कि उनके नाम उनके सौतेले भाई बहनों द्वारा चुन लिये जाएं.     


जजों के इस फैसले के पीछे नाम की व्याख्या और उससे निकलने वाली ध्वनियां तो थी हीं, उस महिला का त्रासद अतीत भी था. उन जजों के संज्ञान में यह बात भी थी कि उस महिला की ये जुड़वां संतानें किसी बलात्कार का परिणाम  थीं. यही नहीं, वह मानसिक रुग्णता से भी ग्रस्त रह चुकी थी, ड्रग्स और मदिरापान की लत की शिकार थी और  ग़लत बर्ताव करने वाले पुरुषों की संगत में रह चुकी थी. शायद इन्हीं सब वजहों  से उसकी पहले की तीन संतानें भी उसकी छत्र छाया से दूर अन्य पोषणकर्ता अभिभावकों के पास पल रही थीं.
 

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 19 अप्रैल, 2016 को इसी शीर्षक से प्रकाशित  आलेख का मूल पाठ.