पिछले कुछ बरसों से नव वर्ष की पूर्व सन्ध्या से पहले शहर में कई जगह
बैनर नज़र आने लगे हैं – नए साल का स्वागत दारु से नहीं दूध से कीजिए! बहुत सारे
होटल और टैक्सी वाले इस आशय के विज्ञापन जारी करते हैं कि नए साल की पार्टी से
लौटते हुए खुद ड्राइव न करें और उनकी सेवाओं का लाभ उठाएं. नए साल के पहले दिन के
अखबारों में और कोई ख़बर हो न हो, यह खबर
ज़रूर होती है कि पुलिस ने नशे में ड्राइव करते हुए इतने वाहन चालकों को पकड़ा. ये
सारी बातें मुझे याद इस ख़बर को पढ़ते हुए आईं कि अमरीका में शराब के कारण होने वाली मौतों में पिछले 35 बरसों में सबसे
ज़्यादा इज़ाफा पाया गया है. वहां की सरकार द्वारा ज़ारी आंकड़ों के अनुसार पिछले बरस
तीस हज़ार सात सौ अमरीकियों ने शराब के
कारण अपनी जान गंवाई. शराब के कारण, यानि
जहरीली शराब के कारण या शराब से होने वाली बीमारियों जैसे सिरोसिस के कारण. इसका
मतलब यह कि इस संख्या में वे अभागे शामिल नहीं हैं जिनकी जानें नशे में वाहन चलाने
के कारण हुई दुर्घटनाओं, अन्य दुर्घटनाओं या शराब जन्य अन्य अपराधों में गई. अगर
उन सबको भी शुमार कर लें तो यह संख्या बढ़कर नब्बे हज़ार तक पहुंच जाती है.
आंकड़े बताते हैं कि कम से कम तीस प्रतिशत अमरीकी ऐसे हैं जो शराब को
हाथ तक नहीं लगाते हैं. और लगभग इतने ही अमरीकी ऐसे हैं जिन्होंने इस पदार्थ से
एकदम तो तौबा नहीं कर रखी है लेकिन औसतन एक ड्रिंक प्रति सप्ताह की सीमा रेखा को
वे पार नहीं करते हैं. और ऐसे लोगों के पक्ष में यह बात भी याद कर ली जानी चाहिए
कि चिकित्सा विशेषज्ञों का मत है कि अगर कोई व्यक्ति हर रोज़ एक से दो तक ड्रिंक ले
ले तो उसकी मृत्यु की सम्भावना में काफी
कमी आ जाती है, यानि इतनी मदिरा तो सेहत
के लिए मुफीद होती है.
लेकिन इस कम्बख़्त शराब के साथ एक बड़ी मुश्क़िल तो यह है कि इसके सेवन
की मात्रा कब सुरक्षित से असुरक्षित के पाले में जाकर प्रणघातक के घेरे में आ जाएगी,
नहीं कहा जा सकता. प्रति सप्ताह एक ड्रिंक से घटकर प्रति दिन एक ड्रिंक और फिर दो
और फिर तीन...होते होते कब कोई उन मात्र दस प्रतिशत सबसे ज्यादा पियक्कड़ अमरीकियों
की जमात में आ जाता है जो औसतन दस ड्रिंक प्रति सप्ताह तक गटक जाते हैं और
आहिस्ता-आहिस्ता नहीं, बड़ी तेज़ी से परलोक
की तरफ भागने लगते हैं. अमरीका के आंकड़ों पर विश्वास करें तो वहां प्रति व्यक्ति शराब
के सेवन में लगातार वृद्धि हुई है. न केवल
प्रति व्यक्ति, बल्कि उसकी आवृत्ति में भी यही प्रवृत्ति दिखाई दी है. रोचक बात यह
कि कम मात्रा में या बड़े अंतराल से पीने वालों की संख्या और उनके द्वारा पी गई
मदिरा की मात्रा में जहां बहुत मामूली वृद्धि लक्षित की गई वहीं, अधिक मात्रा में
या कम अंतराल पर पीने वालों में यह वृद्धि भी अधिक पाई गई.
अमरीका में इस प्रवृत्ति का अध्ययन करने वालों का ध्यान एक और बात की तरफ गया है और वह यह कि वहां महिलाओं में भी
मदिरापान की आदत बढ़ती जा रही है. सन 2002 में जहां माह में एक बार मदिरापान करने
वाली महिलाओं का प्रतिशत 47.9 था वहीं
2014 में यह बढ़कर 51.5 तक जा पहुंचा था. लेकिन इस आंकड़े से भी ज़्यादा चिंताजनक
आंकड़ा यह था कि इसी काल खण्ड में ताबड़तोड़
(यानि एक दफा में पाँच या अधिक ड्रिंक्स) पीने वाली महिलाओं की संख्या 15.7
प्रतिशत से बढ़कर 17.4 प्रतिशत तक जा पहुंची है.
इस सारे प्रसंग में जो सबसे अधिक खतरनाक बात सामने आई है वो यह है कि
अमरीका में शराब हेरोइन या कोकेन जैसे नशीले पदार्थों से भी अधिक घातक साबित हो
रही है. और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि शराब के मामले में लाभप्रद, सुरक्षित और
घातक के बीच की सीमा रेखा बहुत बारीक होती
है और उसकी अनदेखी बहुत आसान है. और यही वजह है कि वहां के ज़िम्मेदार लोग अब बहुत
ज़ोर-शोर से यह आवाज़ उठाने लगे हैं कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के अधिकारियों को
मारिजुआना और एल एस डी जैसी ड्रग्स की अपेक्षा शराब के खतरों पर अधिक ध्यान
केन्द्रित करना चाहिए. वहां यह आवाज़ भी
उठने लगी है कि मदिरापान को नियंत्रित करने के लिए उन संघीय करों में इज़ाफा किया
जाए जो ऐतिहासिक लिहाज़ से अभी निम्नतम स्तर पर हैं.
तो आइये, हम तो नए साल का
स्वागत दूध से करें!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 30 दिसम्बर, 1015 को प्रकाशित इसी शीर्षक के आलेख का मूल पाठ.