Thursday, March 28, 2019

यूनान में विरासत के लिए चुनौती बन रहा है पर्यटन


यूनान यानि ग्रीस की राजधानी एथेंस इन दिनों दुनिया भर  के पर्यटकों से गुलज़ार है. जिसे देखो वही इस प्राचीन सभ्यता वाले देश की सैर कर अतीत से रू-ब-रू  होने को लालायित है. अनुमान किया जा रहा है कि इस बरस कोई पचास लाख पर्यटक इस एक करोड़ की आबादी वाले देश में पहुंचेंगे. पिछले कुछ समय से आर्थिक संकटों से जूझ रहे देश के लिए यह बहुत अच्छी बात है. पर्यटन किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा सम्बल होता है. लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलू भी है. जब किसी भी पर्यटन स्थल पर भारी संख्या  में पर्यटक पहुंचते हैं तो उनके लिए बहुत सारी सुख सुविधाओं की भी ज़रूरत होती है. आज का पर्यटक सितारा सुविधाएं चाहता है और इसके लिए वह अकूत धनराशि खर्च करने में कोताही नहीं करता है. उसकी यह व्यय क्षमता स्थानीय व्यवसाइयों को नई सुविधाओं का सृजन करने के लिए प्रेरित करती है. पर्यटक आते हैं तो उनके लिए नए होटल बनाए जाते हैं, बिजली पानी का प्रबंध किया जाता है, सड़कें चौड़ी की जाती हैं, और जाने क्या-क्या होता है. अपने ही देश की बात कीजिए तो पर्यटकों की सुविधा के लिए  प्राचीन नगरी वाराणसी की बेहद संकड़ी विश्वनाथ परिक्रमा वीथि को चौड़ा किया जा रहा है. स्वाभाविक है कि पर्यटकों के लिए सुविधाएं जुटाने के प्रयासों में प्राचीन स्थलों का मूल स्वरूप बदलने लगता है. बदलाव जब बहुत ज़्यादा हो जाता है तो मूल स्वरूप लुप्त हो जाता है.

समझदार और संवेदनशील लोग एथेंस में आ रहे बदलावों को लेकर इसी कारण व्यथित हैं.  आहिस्ता-आहिस्ता उनकी व्यथा एक आंदोलन का रूप लेती जा रही है. वहां पर्यटकों की भारी आमद की वजह से अनेक नए और बहु मंज़िला होटल बनाए जा रहे हैं. एथेंस का विश्वप्रसिद्ध आकर्षण है एक्रोपोलिस. एक तरह से यह एक विशाल किले के अवशेष हैं. यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित कर रखा है. पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित यह स्थल अपनी भव्यता में अनुपम है. बहुत दूर से भी इसे देखा जा सकता है. लेकिन अब पर्यटकों की सुख सुविधाओं से जुड़ा लालच इसकी भव्यता के लिए चुनौती बनता जा रहा है. हाल में इसके नज़दीक एक दस मंज़िला होटल बना है जिसे इस इलाके की सबसे ऊंची इमारत माना जा रहा है. इस होटल की वजह से एक्रोपोलिस की दृश्यता बाधित होने लगी है. और यह एक शुरुआत है. पुरातत्व प्रेमियों को लग रहा है कि अगर इस प्रवृत्ति को नियंत्रित नहीं किया गया तो न केवल एथेंस का प्राचीन स्वरूप विलुप्त हो जाएगा, अंतत: यह अपना सारा आकर्षण ही खो बैठेगा.

स्विटज़रलैण्ड में प्रशिक्षित एक वास्तुविद और नगर नियोजक फ्रेज़ाडू ने वहां एक अभियान शुरु किया है और बहुत कम समय में उन्होंने अपने अभियान के लिए पच्चीस  हज़ार लोगों के दस्तख़त जुटा लिये हैं. फ्रेज़ाडू का कहना है कि उनका संगठन यह चाहता है कि नए भवनों के निर्माण और शहरी आयोजन के लिए फौरन व्यावहारिक नियम बनाए जाएं. उनके संगठन ने यूनान की सर्वोच्च प्रशासनिक अदालत के दरवाज़े भी खटखटाए हैं और यह अनुरोध किया है अभी निर्माण कार्यों को जो खुली छूट मिली हुई है उसे रोका जाए. यह अभियान चलाने वाले संगठन के वकील ने एक बहुत तर्क संगत बात कही है: “हम बेहूदगी पसंद लोग नहीं हैं. हम भी यह बात महसूस करते हैं कि एथेंस को बेहतर होटलों की सख़्त ज़रूरत है. लेकिन उन होटलों का निर्माण हमारे महानतम स्मारकों की कीमत पर नहीं होना चाहिए. हमारी मांग यह नहीं है कि महान स्मारक के पास जो इमारत बना दी गई है, उसे ध्वस्त कर दिया जाए. हम तो बस इतना चाहते हैं कि उसकी ऊंचाई को नियंत्रित किया जाए.” इसी तरह के अभियान में जुटे एक और संगठन के प्रतिनिधि  का कहना है कि “जब हमने यह जाना कि कुछ इमारतें एक्रोपोलिस की दृश्यता को बाधित कर रही हैं तो हमें यह बात राष्ट्रीय आपातकाल जैसी लगी. एक्रोपोलिस प्रजातंत्र का प्रतीक है और दुनिया में बहुत कम स्मारक ऐसे हैं जो देश विशेष के पर्याय हैं. उन्हें हर कीमत पर बचाया जाना ज़रूरी है.” 

इन अभियानों का सकारात्मक परिणाम भी नज़र आया है. पिछले ही सप्ताह एथेंस की सरकार ने यह घोषणा की है कि एक्रोपोलिस के आसपास के पुरातात्विक बफ़र ज़ोन में निर्माण कार्य की अनुमतियां फिलहाल स्थगित की जा रही हैं. यही नहीं, सरकार ने यह भी घोषणा की है कि साढ़े  सत्रह मीटर से ऊंची इमारतों का निर्माण अगले वर्ष भी प्रतिबंधित रहेगा. यूनान के सांस्कृतिक मंत्री ने भी कहा है कि “इन स्मारकों को देख पाना एक सांस्कृतिक पुण्य है और इसे हम किसी भी  अवस्था में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित नहीं कर सकते. हमें सिविल सोसाइटी के प्रतिरोध पर ध्यान देना ही होगा ताकि न्याय और कानून की रक्षा हो सके.” यह बात तो भविष्य ही बताएगा कि ये प्रयास विरासत  को बचाए रखने में किस हद तक कामयाब होते हैं!

वैसे यह संकट अकेले यूनान का नहीं है.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 26 मार्च, 2019 को इसी शीर्षक से प्रकशित आलेख का मूल पाठ. 

Tuesday, March 5, 2019

यह अध्यापिका नामुमकिन को मुमकिन बना रही है!


कहा जाता है कि वर्तमान पीढ़ी के बच्चों में किताबें पढ़ने का शौक ढलान पर है. इसकी एक वजह यह बताई  जाती है कि आज उनके पास अपना वक़्त बिताने के अनेक और विशेष रूप से इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के विकल्प मौज़ूद हैं. यह यथार्थ हमारा ही नहीं सारी दुनिया का है. लेकिन इसी यथार्थ के साथ एक यथार्थ और भी है और वह यह कि लोग अपनी-अपनी तरह से अपने बाद वाली पीढ़ी को किताबों की तरफ आकर्षित करने के लिए प्रयत्नरत हैं. आज मैं ऐसे ही प्रयास में जुटी एक महिला की प्रेरक गाथा आपके साथ साझा कर रहा हूं.

अमरीका के दक्षिणी पूर्वी टेक्सास के होमर ड्राइव एलीमेण्ट्री स्कूल की बयालीस वर्षीया प्रिंसिपल डॉ बेलिण्डा जॉर्ज पिछले कुछ समय से अपने स्कूल के बच्चों को किताबों की तरफ खींचने के लिए एक अनूठा तरीका आज़मा रही हैं. वे करती यह है कि हर मंगलवार शाम को अपने लिंविंग रूम में अपने मोबाइल फोन के कैमरे के सामने बैठकर बच्चों की किसी किताब का वाचन करती हैं और इस वाचन का  वे फ़ेसबुक लाइव पर सजीव प्रसारण करती हैं. उनके स्कूल के फेसबुक पेज पर जाकर कोई भी उनके इस वाचन को देख-सुन सकता है. किताब या उसके अंश को पढ़ते हुए वे अपनी आवाज़ को पात्रानुसार बदलती रहती हैं और ज़रूरत पड़ने पर अपनी तरफ से मनोरंजक टिप्पणियां भी करती चलती हैं. अगर मुमकिन होता है तो वे वाचन वाले अंश से सम्बद्ध वस्तुएं भी अपने प्रसारण में शामिल कर लेती हैं, मसलन अगर वे अंतरिक्ष यात्री से सम्बद्ध कोई अंश सुनाती हैं तो अंतरिक्ष यात्री की आकृति वाला कोई खिलौना भी दिखा देती हैं.   उनका यह प्रयोग इतना लोकप्रिय हो गया है कि उनके स्कूल के बच्चे न केवल बेसब्री से मंगलवार  की शाम का इंतज़ार करते हैं, उनमें से बहुत सारे अगले दिन स्कूल में आकर उनके इस वाचन पर अपनी प्रतिक्रिया भी देते हैं और यह भी कहते हैं कि भविष्य में वे उनसे किस किताब  का वाचन सुनना चाहेंगे. उनके वाचन से प्रभावित बच्चे यह भी पूछते हैं कि क्या वह किताब स्कूल की लाइब्रेरी में उपलब्ध है, और अगर नहीं है तो वो उन्हें कहां मिल सकती है.

डॉ बेलिण्डा  जॉर्ज का यह प्रयोग बमुश्क़िल एक बरस पुराना है. इसकी शुरुआत उन्होंने अपने स्कूल के 680 विद्यार्थियों के लिए की थी. लेकिन उनके कुछ वीडियो तो दो हज़ार से भी ज़्यादा लोगों ने देखे हैं. ऐसा इस कारण सम्भव हुआ है कि स्कूल के बच्चों  और उनके अभिभावकों से इसकी प्रशंसा सुन कर मीडिया वालों ने भी इस  पर ध्यान दिया है और उनके कारण अमरीका के अनेक शहरों के बच्चे और उनके अभिभावक न केवल इस लाइव प्रसारण को देखने-सुनने लगे हैं, वे अपनी प्रतिक्रियाएं भी पोस्ट करने लगे हैं. बेलिण्डा का कहना है कि उन्हें अपने विद्यार्थियों से बहुत प्यार है और वे घर और स्कूल के बीच रिश्ते मज़बूत करने की आकांक्षा  से यह काम करती हैं. वे एक बहुत महत्वपूर्ण बात कहती हैं: “मैं जानती हूं कि अगर मैं उनसे स्कूल के बाहर नहीं जुड़ सकी तो फिर स्कूल के भीतर भी उनके नज़दीक  नहीं आ सकूंगी.” मुझे लगता है कि यह ऐसी बात है जिसे हर शिक्षक को गांठ में बांध लेना चाहिए.  

एक दिलचस्प  बात यह है कि बेलिण्डा प्राय: पाजामा पहन कर ये वाचन करती हैं. जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अपने वाचन के आखिर में वे बच्चों को शुभ रात्रि भी कहती है, “और मैं चाहती हूं कि जो मैं कहती हूं वो करती हुई भी दिखाई दूं.” अपने वाचन के प्रारम्भ में वे उन बच्चों की हाज़िरी भी लेती हैं जिन्होंने उनके इस इस फ़ेसबुक पेज  के लिए साइन अप कर रखा है.  वे इस बात का पूरा ध्यान रखती हैं कि किसी भी बच्चे के नाम का उच्चारण ग़लत न हो जाए. सबसे ख़ास बात तो बेलिण्डा यह बताती हैं कि उनके 94 प्रतिशत विद्यार्थी समाज के निचले तबके से हैं और उनके इस प्रयोग का परिणाम यह हुआ है कि उनकी पढ़ने और समझने की क्षमता का बहुत तेज़ी से विकास हुआ है. अपने विद्यार्थियों के प्रति वे सदैव सकारात्मक रुख अपनाती हैं. वे इस कड़वी सच्चाई से भली भांति परिचित हैं कि उनके बहुत सारे विद्यार्थी बहुत समय तक अपनी पढ़ाई ज़ारी नहीं रख सकेंगे. कॉलेज तक तो शायद बहुत ही कम पहुंच पाएं. लेकिन वे कोशिश करती हैं कि इस बात को लेकर उनके विद्यार्थियों के मन में कोई  हताशा या कुण्ठा न पनपे. वे उन्हें एक ही सीख देती हैं: तुम जो भी करो, उसे सर्वोत्तम तरीके से करना. अगर तुम्हें गड्ढा भी खोदना हो तो ऐसे खोदना कि देखने वालों  के मुंह से बरबस ‘वाह’ निकल पड़े. बेलिण्डा जॉर्ज के इस प्रयास को जान मुझे बेसाख़्ता अपने दुष्यंत कुमार का यह शे’र याद आ गया है: कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता/ एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारों.   
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 05 मार्च, 2019 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.