यूनान यानि ग्रीस की
राजधानी एथेंस इन दिनों दुनिया भर के पर्यटकों से गुलज़ार है. जिसे देखो वही इस
प्राचीन सभ्यता वाले देश की सैर कर अतीत से रू-ब-रू होने को लालायित है. अनुमान किया जा रहा है कि
इस बरस कोई पचास लाख पर्यटक इस एक करोड़ की आबादी वाले देश में पहुंचेंगे. पिछले
कुछ समय से आर्थिक संकटों से जूझ रहे देश के लिए यह बहुत अच्छी बात है. पर्यटन
किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा सम्बल होता है. लेकिन इस सिक्के का
दूसरा पहलू भी है. जब किसी भी पर्यटन स्थल पर भारी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं तो उनके लिए बहुत सारी
सुख सुविधाओं की भी ज़रूरत होती है. आज का पर्यटक सितारा सुविधाएं चाहता है और इसके
लिए वह अकूत धनराशि खर्च करने में कोताही नहीं करता है. उसकी यह व्यय क्षमता
स्थानीय व्यवसाइयों को नई सुविधाओं का सृजन करने के लिए प्रेरित करती है. पर्यटक
आते हैं तो उनके लिए नए होटल बनाए जाते हैं, बिजली पानी का प्रबंध किया
जाता है,
सड़कें
चौड़ी की जाती हैं, और जाने क्या-क्या होता है. अपने ही देश की बात कीजिए तो
पर्यटकों की सुविधा के लिए प्राचीन नगरी
वाराणसी की बेहद संकड़ी विश्वनाथ परिक्रमा वीथि को चौड़ा किया जा रहा है. स्वाभाविक
है कि पर्यटकों के लिए सुविधाएं जुटाने के प्रयासों में प्राचीन स्थलों का मूल
स्वरूप बदलने लगता है. बदलाव जब बहुत ज़्यादा हो जाता है तो मूल स्वरूप लुप्त हो
जाता है.
समझदार और संवेदनशील लोग
एथेंस में आ रहे बदलावों को लेकर इसी कारण व्यथित हैं. आहिस्ता-आहिस्ता उनकी व्यथा एक आंदोलन का रूप
लेती जा रही है. वहां पर्यटकों की भारी आमद की वजह से अनेक नए और बहु मंज़िला होटल
बनाए जा रहे हैं. एथेंस का विश्वप्रसिद्ध आकर्षण है एक्रोपोलिस. एक तरह से यह एक
विशाल किले के अवशेष हैं. यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित कर रखा है.
पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित यह स्थल अपनी भव्यता में अनुपम है. बहुत
दूर से भी इसे देखा जा सकता है. लेकिन अब पर्यटकों की सुख सुविधाओं से जुड़ा लालच
इसकी भव्यता के लिए चुनौती बनता जा रहा है. हाल में इसके नज़दीक एक दस मंज़िला होटल
बना है जिसे इस इलाके की सबसे ऊंची इमारत माना जा रहा है. इस होटल की वजह से
एक्रोपोलिस की दृश्यता बाधित होने लगी है. और यह एक शुरुआत है. पुरातत्व प्रेमियों
को लग रहा है कि अगर इस प्रवृत्ति को नियंत्रित नहीं किया गया तो न केवल एथेंस का
प्राचीन स्वरूप विलुप्त हो जाएगा, अंतत: यह अपना सारा आकर्षण ही खो बैठेगा.
स्विटज़रलैण्ड में
प्रशिक्षित एक वास्तुविद और नगर नियोजक फ्रेज़ाडू ने वहां एक अभियान शुरु किया है
और बहुत कम समय में उन्होंने अपने अभियान के लिए पच्चीस हज़ार लोगों के दस्तख़त जुटा लिये हैं. फ्रेज़ाडू
का कहना है कि उनका संगठन यह चाहता है कि नए भवनों के निर्माण और शहरी आयोजन के
लिए फौरन व्यावहारिक नियम बनाए जाएं. उनके संगठन ने यूनान की सर्वोच्च प्रशासनिक अदालत
के दरवाज़े भी खटखटाए हैं और यह अनुरोध किया है अभी निर्माण कार्यों को जो खुली छूट
मिली हुई है उसे रोका जाए. यह अभियान चलाने वाले संगठन के वकील ने एक बहुत तर्क
संगत बात कही है: “हम बेहूदगी पसंद लोग नहीं हैं. हम भी यह बात महसूस करते हैं कि
एथेंस को बेहतर होटलों की सख़्त ज़रूरत है. लेकिन उन होटलों का निर्माण हमारे महानतम
स्मारकों की कीमत पर नहीं होना चाहिए. हमारी मांग यह नहीं है कि महान स्मारक के
पास जो इमारत बना दी गई है, उसे ध्वस्त कर दिया जाए. हम तो बस इतना चाहते हैं
कि उसकी ऊंचाई को नियंत्रित किया जाए.” इसी तरह के अभियान में जुटे एक और संगठन के
प्रतिनिधि का कहना है कि “जब हमने यह जाना
कि कुछ इमारतें एक्रोपोलिस की दृश्यता को बाधित कर रही हैं तो हमें यह बात
राष्ट्रीय आपातकाल जैसी लगी. एक्रोपोलिस प्रजातंत्र का प्रतीक है और दुनिया में
बहुत कम स्मारक ऐसे हैं जो देश विशेष के पर्याय हैं. उन्हें हर कीमत पर बचाया जाना
ज़रूरी है.”
इन अभियानों का सकारात्मक
परिणाम भी नज़र आया है. पिछले ही सप्ताह एथेंस की सरकार ने यह घोषणा की है कि
एक्रोपोलिस के आसपास के पुरातात्विक बफ़र ज़ोन में निर्माण कार्य की अनुमतियां फिलहाल
स्थगित की जा रही हैं. यही नहीं, सरकार ने यह भी घोषणा की है कि साढ़े सत्रह मीटर से ऊंची इमारतों का निर्माण अगले
वर्ष भी प्रतिबंधित रहेगा. यूनान के सांस्कृतिक मंत्री ने भी कहा है कि “इन
स्मारकों को देख पाना एक सांस्कृतिक पुण्य है और इसे हम किसी भी अवस्था में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक
सीमित नहीं कर सकते. हमें सिविल सोसाइटी के प्रतिरोध पर ध्यान देना ही होगा ताकि
न्याय और कानून की रक्षा हो सके.” यह बात तो भविष्य ही बताएगा कि ये प्रयास
विरासत को बचाए रखने में किस हद तक कामयाब
होते हैं!
वैसे यह संकट अकेले यूनान
का नहीं है.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 26 मार्च, 2019 को इसी शीर्षक से प्रकशित आलेख का मूल पाठ.
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