समय बदलने के साथ चुनाव के तौर तरीकों में
भी बदलाव आया है और आता जा रहा है. कहा जाता है कि प्रेम और युद्ध में सब कुछ ज़ायज़
होता है. चुनाव भी एक तरह का युद्ध ही तो है, उसे भी लड़ा ही जाता है, और इसलिए यहां भी
जायज़-नाजायज़ के बीच की सीमा रेखा बहुत पतली होती है. उसे लांघने का आकर्षण जितना
दुर्निवार होता है, लांघ जाना भी उतना ही
आसान होता है. सुरक्षा के नित नए प्रबंध किये जाते हैं और उसी तेज़ी के साथ उनके
तोड़ भी निकाल लिये जाते हैं. तू डाल-डाल मैं पात-पात का खेल चलता रहता है. यह समय
इण्टरनेट और सोशल मीडिया का है और आजकल
चुनाव जितने ज़मीन पर लड़े जाते हैं उतने ही इन माध्यमों पर भी लड़े जाते हैं. अमरीका
के राष्ट्रपति चुनाव में ही नहीं हमारे अपने देश में होने वाले बड़े और छोटे चुनावों
में भी हमने इन माध्यमों का उपयोग-दुरुपयोग होते खूब देखा है. अभी हाल में सम्पन्न हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति के चुनाव
में एक बार फिर यह मुद्दा ज़ोर-शोर से उठा है कि फ़ेसबुक का प्रयोग चुनाव परिणामों
को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है. बात केवल प्रभावित करने की होती तो भी
ठीक था. पीड़ा की बात यह रही कि इस माध्यम पर मिथ्या एवम दुष्प्रचार के लिए
इस्तेमाल हो जाने के आरोप लगे. वैसे 2016 के अमरीकी चुनावों के अनुभवों से सबक
लेते हुए फ़ेसबुक ने अपनी सुरक्षा व्यस्था को और ज़्यादा चाक चौबंद कर डालने के
प्रयास और दावे किये. जनवरी में इसने एक सौ पचास फर्ज़ी खातों को बंद कर दिया और
फिर कुछ समय बाद रूस से सम्बद्धता रखने
वाले ऐसे करीब दो हज़ार पृष्ठों, समूहों और खातों को प्रतिबंधित कर दिया जो यूक्रेन
के बारे में मिथ्या सामग्री पोस्ट कर रहे थे. याद दिलाता चलूं कि यूक्रेन के मामले
में रूस गहरी दिलचस्पी रखता है और उस पर प्राय: यूक्रेन की राजनीति को प्रभावित करने के प्रयासों के
आरोप लगते रहते हैं. लेकिन अंतत: यही
साबित हुआ कि ताले तो साहूकारों के लिए होते हैं, चोरों के लिए नहीं.
यूक्रेन की घरेलू गुप्तचर सेवा एसबीयू की पड़ताल से पता चला कि फ़ेसबुक की
नई सुरक्षा व्यवस्था को धता बनाने के लिए यूक्रेनी नागरिकों का ही इस्तेमाल किया
गया. ऐसे यूक्रेनी नागरिकों को तलाश किया गया जो कुछ धन लेकर कुछ समय के लिए या
हमेशा के लिए अपने फ़ेसबुक खातों का प्रयोग अन्यों को करने की छूट दे दें. यह एक
तरह से अपने खाते को किराये पर देने की बात हुई. और इस तरह यूक्रेनी नागरिकों के
फ़ेसबुक खातों से अन्य निहित स्वार्थ वाले लोग वह सामग्री पोस्ट करने लगे जिससे
यूक्रेन के चुनावों पर असर पड़े. इस सामग्री में राजनीतिक विज्ञापन और दलों व
प्रत्याशियों के बारे में दुष्प्रचार वाली सामग्री शामिल थी. यूक्रेन की गुप्तचर
सेवा ने पता लगा लिया कि इस तरह की ज़्यादा सामग्री रूस से पोस्ट की गई, भले ही जिन खातों
वह पोस्ट की गई वे यूक्रेनी नागरिकों के नाम पर थे. फ़ेसबुक की सुरक्षा में सेंध
लगाने वालों ने यूक्रेन के राष्ट्रपति पद
के एक अग्रणी प्रत्याशी ज़ेलेंस्की तक को
नहीं बख़्शा. उनके असल फेसबुक खाते से मिलते-जुलते बेहिसाब फर्ज़ी खाते बना डाले गए
और उन पर तमाम तरह की मिथ्या और दुर्भावनापूर्ण सामग्री पोस्ट कर दी गई. लोगों के
लिए यह जानना मुश्क़िल था कि ज़ेलेंस्की का असली खाता कौन-सा है और फर्ज़ी खाता
कौन-सा. शिकायत की जाने पर फ़ेसबुक ने ऐसे बहुत सारे फर्ज़ी खातों को निष्क्रिय किया और खुद ज़ेलेंस्की की अपनी टीम
ने भी इस तरह के फर्ज़ी खातों के खिलाफ एक
ज़ोरदार अभियान चलाकर इन्हें बेअसर करने का
प्रयास किया.
इस मामले पर फ़ेसबुक
प्रशासन का कहना है कि जैसे जैसे हम अपनी सुरक्षा को कड़ी करते जाएंगे इसमें सेंध
लगाने वाले भी नए नए तरीके इज़ाद करते जाएंगे. लेकिन इसके बावज़ूद यह सच है कि हमारा
हर प्रयास इन ताकतों के इरादों को एक हद तक तो नाकामयाब करता ही है. इस संदर्भ में उनका यह कहना भी
तर्क संगत लगता है कि राजनीतिक दल भी अपने प्रतिपक्षियों के खिलाफ झूठी बातें
फैलाने के लिए पेशेवर कम्पनियों वगैरह का इस्तेमाल करने से बाज़ नहीं आते हैं.
फ़ेसबुक के इन कथनों की पुष्टि खुद यूक्रेन
के कुछ अधिकारियों और राजनीतिज्ञों ने भी की है और कहा है कि खुद उम्मीदवार
भी अपने प्रतिपक्षियों के खिलाफ मिथ्या जानकारियां प्रसारित करने में संकोच नहीं
करते हैं. इस संदर्भ में यूएनओ में रूस के प्रथम उप स्थायी प्रतिनिधि द्मित्री
पोलियांस्की का यह कथन भी अर्थपूर्ण है कि सोशल मीडिया तो एक खुला मंच है और यह बहुत स्वाभाविक है कि लोग अपने अपने
हितों को साधने के लिए इसका इस्तेमाल
करें.
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