एनिमेशन
फिल्मों की दुनिया में डिज़्नी एक बड़ा नाम है और इस लेबल से जब भी कोई फिल्म आती है
उसे खूब देखा और सराहा जाता है. लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है. हाल में जब यह खबर आई कि डिज़्नी
वाले द प्रिंसेस ऑफ नॉर्थ सूडान नाम से एक एनिमेशन फिल्म बनाने जा रहे हैं
जो कि एक सत्य वृतांत पर आधारित होगी, तो
माहौल ख़ासा गरमा गया. इसकी वजह जानने से पहले उस वृत्तांत को जान लिया जाए जिस पर यह फिल्म आधारित होगी.
अमरीका के
वर्जीनिया इलाके के एक प्रेमिल पिता जेरेमिया हीटन से एक रात उनकी छह साला लाड़ली
बेटी ने एक मासूमियत भरा सवाल किया कि क्या वो भी कभी वास्तविक प्रिंसेस बन पाएगी?
और बस, इस सवाल ने पिता के मन में गहरी हलचल पैदा कर दी. वे अपनी बेटी का नाज़ुक
दिल नहीं तोड़ना चाहते थे, इसलिए उन्होंने खुद एक झण्डा डिज़ाइन किया और निकल पड़े
दुनिया में कोई ऐसी जगह तलाश करने जहां की प्रिंसेस वे अपनी प्यारी बेटी को बना
सकें. काफी खोज बीन और पूरे चौदह घण्टों की तलाश के बाद उन्हें सूडान और मिश्र के
बीच आठ सौ वर्गमील की बिर तविल नामक एक ऐसी लगभग जन शून्य और बंजर ज़मीन मिली जिसे
वे अपना साम्राज्य कह सकते थे. जेरेमिया हीटन को यह बात भी याद आती है कि इसी तरह
तो दुनिया के बहुत सारे देशों, जिनमें संयुक्त राज्य अमरीका भी शामिल है, की खोज
हुई थी. जून 2014 में अपनी बेटी के सातवें जन्म दिन पर ये जेरेमिया हीटन वहां जाते
हैं और उस ज़मीन पर एक नया झण्डा गाड़ कर उसे उत्तरी सूडान नामक देश घोषित करते हैं,
जिसकी प्रिंसेस उनकी बेटी होगी.
डिज़्नी की इस
प्रस्तावित फिल्म में ये हीटन महोदय अपनी लाड़ली बिटिया के नव स्थापित राष्ट्र को
जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से अचाने के लिए उन्नत और नवीनतम वैज्ञानिक
तकनीकों कोई प्रयोगभूमि भी बनाना चाहते
हैं. अपनी वेबसाइट पर उन्होंने इस ‘क्रांतिकारी बदलाव’ के लिए ‘सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक शोध’ को मुमकिन बनाने के लिए आर्थिक
सहयोग की मांग भी की है.
डिज़्नी वालों
ने इस फिल्म की पटकथा लिखने का दायित्व ब्लैक लिस्ट के लिए सुविख्यात स्टेफ़नी
फॉल्सॉम को सौंप दिया.
लेकिन जैसे ही
इस फिल्म के निर्माण की योजना की चर्चाएं
सामने आईं संवेदनशील और डिज़्नी के अतीत से परिचित लोगों में गुस्से की एक लहर सी
दौड़ गई. लोगों को लगा कि यह मात्र एक बेटी के प्यार में उसकी मासूम इच्छा पूरी
करने को प्रयत्नशील पिता की कथा नहीं है. इस कथा का एक अन्य और अधिक ख़तरनाक पाठ भी है. इन संवेदनशील लोगों को लगा कि इस
मासूम कहानी के पीछे असल में अश्वेत दुनिया पर गोरों के वर्चस्व और साम्राज़्यवाद
तथा उपनिवेशवाद की क्रूर गाथा छिपी है. और
यह भी क्या बात हुई कि एक गोरा बाप अपनी प्यारी बेटी की एक बालसुलभ आकांक्षा को पूरा करने के लिए फौरन एक अभियान पर निकल पड़े
और एक ऐसे देश और ऐसी धरती पर जाकर अपने स्वामित्व का झण्डा गाड़ दे जिसपर उसका कोई
प्राकृतिक और स्वाभाविक अधिकार नहीं है. क्या इस मासूम-सी लगने वाली कथा में
उपनिवेशवाद की और गोरे लोगों के बेशर्म स्वार्थ और वीभत्स लालच की चावियां नहीं
कौंधती हैं?
सवाल यह भी
उठाया गया कि आखिर क्यों हर राजकुमारी गोरी ही होती है? क्या अफ्रीकी देश की कोई
बच्ची राजकुमारी होने का सपना देखती हुई नहीं दिखाई जा सकती थी? और इस सवाल के पीछे थी डिज़्नी फिल्मों के अतीत
की अप्रिय स्मृतियां. जिन्होंने उनकी जंगल बुक या अलादीन जैसी
फिल्में देखी हैं उन्हें याद होगा कि डिज़्नी का रवैया सदा ही गोरी चमड़ी के
महिमामण्डन का रहता है. अपनी बहुत कम फिल्मों में उन्होंने अश्वेतों को उजली छवि
के साथ चित्रित किया है. लोगों ने इस बात को भी याद करना ज़रूरी समझा कि खुद डिज़्नी
नाज़ियों के प्रति सहानुभूति रखते थे. और
इसीलिए आलोचकों को यह बात आपत्तिजनक लगी कि डिज़्नी वाले अपनी पहली अफ्रीकी
प्रिंसेस भी एक गोरी लड़की को ही बनाने जा रहे हैं. उनका सवाल था कि क्या इस तरह वे लोग एक बार फिर
श्वेत श्रेष्ठता और अमरीकी साम्राज्यवाद
का झण्डा बुलन्द नहीं करने जा रहे हैं?
हालांकि फिल्म
की पटकथा लेखिका ने अपने बयानों आदि में आलोचकों को जवाब देने का और उनकी आशंकाओं
को निर्मूल साबित करने का प्रयास किया है, और इस बात से पूरी दुनिया के समझदार
लोगों को खुशी भी होगी अगर वे अपने कहे को पूरा कर सकीं, लेकिन अपने तमाम आशावाद
के बावज़ूद डिज़्नी का वो अतीत जिसका ज़िक्र हमने ऊपर किया है, हमें इस बात पर
विश्वास नहीं करने दे रहा है. ऐसे में फिल्म का इंतज़ार तो करना ही होगा.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 13 अक्टोबर, 2015 को द प्रिंसेस ऑफ नॉर्थ सूडान: तुम्हारी ज़मीन हमारा झण्डा शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.