Tuesday, April 9, 2019

आइए पानी पर चर्चा कर लें!


इन दिनों हमारे ज्ञान  का सबसे बड़ा स्रोत वॉट्सएप बन गया है. हर विषय पर हर तरह का ज्ञान वहां मौज़ूद है और इस ज्ञान में लगातार इज़ाफा होता जा रहा है. हालत  यह हो गई है कि लोगों ने किताबों वगैरह का दामन  छोड़ इस वॉट्सएप विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया है. न केवल दाखिला ले लिया है, हममें से हरेक इसका प्रोफ़ेसर भी बन बैठा है और यहां प्राप्त ज्ञान को निस्वार्थ भाव से अपने तमाम जान पहचान वालों कों बांटने  के पुण्य कर्म में जुट गया है. आपके पास कोई संदेश आता है और आप उसे पूरा पढ़ने से पहले ही अपने जान पहचान वालों को फॉर्वर्ड  कर डालते हैं. जब आप उसे पूरा पढ़ने तक का धैर्य नहीं बरतते तो इस बात की तो कल्पना ही क्यों की जाए कि आप उस संदेश की प्रामाणिकता पर भी कोई  विचार करेंगे. इस नए माध्यम पर जो संदेश सबसे ज़्यादा इधर-उधर होते हैं उनमें स्वास्थ्य विषयक संदेश भी शामिल हैं. राजनीतिक संदेश तो ख़ैर होते ही हैं. स्वास्थ्य एक बहुत गम्भीर मसला है लेकिन इस माध्यम को बरतने वाले इतने भले हैं कि यहां प्राप्त हर संदेश को वे ब्रह्म वाक्य मान आगे ठेल देते हैं, चाहे वह कितना ही अतार्किक क्यों न हो!

इधर कुछ समय से हमारे देश में भी पानी पीने के फायदे बताने वाले संदेशों की बाढ़ आई हुई है. कितना पानी पिया जाए से लगाकर पानी पीने के तौर तरीकों और पानी पीने के फायदों को लेकर हर रोज़ नहीं तो हर दूसरे-तीसरे दिन कोई न कोई संदेश आ ही जाता है, और मज़े की बात यह कि उनमें से बहुत सारे संदेश परस्पर विरोधी भी होते हैं. लेकिन भेजने वालों को इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता है. वे खुद उन संदेशों को पूरा पढ़ते ही कहां हैं? वैसे, भारत में ही नहीं दुनिया के अन्य देशों में भी इधर पानी की महत्ता खूब स्वीकार की जाने लगी है. हमारा कवि तो बहुत पहले कह ही गया है – रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून. लेकिन अगर मैं यह कहूं कि उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक दुनिया के बहुत सारे देशों में प्यास बुझाने के लिए पानी एक असामान्य बात थी, तो आप चौंक जाएंगे.  हाइड्रोपैथी यानि जल चिकित्सा के संस्थापक विंसेण्ट प्रिज़नित्ज़ का कहना है कि केवल वे लोग जो गरीबी की अंतिम अवस्था तक पहुंच चुके होते थे, वे ही अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी पीते थे. बकौल विंसेण्ट, बहुत ही कम लोग ऐसे थे जो एक बार में आधा पिण्ट सादा पानी पी लेते हों. लेकिन अब समय बहुत बदल गया है. ब्रिटेन में लोग पहले से काफी ज़्यादा पानी पीने लगे हैं और अमरीका में तो बोतल बंद पानी  की बिक्री ने सोड़ा की बिक्री को पीछे छोड़ दिया है. हर जगह यह बताया जाता है कि ज़्यादा पानी पीना हमारी सेहत के लिए, हमारी त्वचा के लिए, हमारी ऊर्जा के लिए और हमारे कैंसर से बचाव के लिए फायदेमंद है.

आम तौर पर यह सलाह दी जाती है कि हर व्यक्ति को दिन में कम से कम आठ गिलास पानी ज़रूर पीना चाहिए. लेकिन मज़े की बात यह कि इस सलाह का कोई अभिलेखित वैज्ञानिक आधार नहीं है. ज़्यादा पड़ताल करने पर पता चला कि दशकों पहले की दो सलाहों को तोड़  मरोड़कर आठ गिलास पानी पीने की सलाह गढ़ दी गई है. 1945 में अमरीकी नेशनल रिसर्च कौंसिल के फूड एण्ड न्यूट्रीशन बोर्ड ने यह सलाह दी थी कि हर स्त्री पुरुष को हर रोज़ अपने भोजन में जितनी कैलोरी की ज़रूरत होती है उन्हें उस हर कैलोरी के बदले एक मिलिलीटर द्रव्य पदार्थ भी लेना चाहिए. अब क्योंकि स्त्रियों के लिए दो हज़ार और पुरुषों के लिए ढाई हज़ार कैलोरी ज़रूरी मानी गई, इसके अनुसार दो ढाई लिटर द्रव्य भी ज़रूरी समझा गया. यहां हम जान बूझकर द्रव्य शब्द का प्रयोग कर रहे हैं जिसमें फलों और सब्ज़ियों में शामिल द्रव्य भी आ जाता है, और जिसका अर्थ केवल पानी नहीं है. दूसरी सलाह दो पोषण वैज्ञानिकों मारग्रेट मैक विलियम्स और फ्रेडरिक् स्टेयर ने अपनी किताब न्यूट्रीशन फॉर गुड हेल्थ में दी थी कि एक सामान्य वयस्क को हर रोज़ छह से आठ गिलास पानी पीना चाहिए. लेकिन उनकी सलाह के अनुसार पानी का अर्थ फल सब्ज़ियां चाय कॉफी यहां तक कि बीयर भी था. लेकिन बात चल निकली और आठ गिलास ब्रहम वाक्य बन गई.

इसी तरह त्वचा के लिए पानी के फायदों की जो बात कही जाती है उसका भी कोई  अभिलेखित आधार नहीं है. सारी बात का लब्बेलुआब यह कि बहुत सारी बातें इतनी बार दुहराई गई हैं कि हमें उनकी प्रामाणिकता पर विचार करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती. फिर भी, यह तो समझा ही जाना चाहिए कि भले ही पानी हमारी सेहत के लिए अच्छा हो, उसकी अति का कोई औचित्य नहीं है.

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम  कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 09 अप्रेल 2019 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.