Tuesday, July 24, 2018

आभासी दुनिया से बाहर निकल कर ज़िंदगी बिताएं!


हम एक ऐसे विचित्र समय में जी रहे हैं जब सोशल मीडिया  पर तो सैंकड़ों, और किसी-किसी के तो हज़ारों दोस्त होते हैं लेकिन असल ज़िंदगी  में वे निहायत अकेले होते हैं, उनके घर के ठीक बगल में रहने वाले से भी उनकी कोई दुआ-सलाम नहीं होती है. इस बात को लेकर अनेक लतीफे भी प्रचलन में आ चुके हैं. लेकिन इधर विशेषज्ञों का ध्यान भी इस विडम्बना की तरफ गया है और उनके अध्ययनों के परिणामों को देखने पर हम पाते हैं कि अपनी असल ज़िंदगी में भी सक्रिय लोगों की स्थिति उनसे बेहतर है जो मात्र आभासी दुनिया के रिश्तों से संतुष्ट हैं. द टाइम्सकी पुरस्कृत उपभोक्ता स्वास्थ्य साइट वेलकी संस्थापक सम्पादक तारा पार्कर पोप ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया है कि जब वे टाइम्स जर्नीज़ की ओर से प्रायोजित एक वेलनेस क्रूज़ से लौटीं तो न केवल बेहतर महसूस कर रही थीं, उनका यह इरादा भी और मज़बूत हुआ था कि अब उन्हें खुश मिजाज़ लोगों की सोहबत में और अधिक समय बिताना है. इस क्रूज़ में सत्रह से अस्सी बरस की आयु समूह के लोग शामिल थे. इसी क्रूज़ में उनकी दोस्ती एक ऐसी पचास वर्षीय महिला से हुई जो खुद फेफड़ों के कैंसर से उबरी थीं और इस महिला ने तारा पार्कर को एक ख़ास लेकिन मुश्क़िल व्यायाम करने के लिए प्रोत्साहित किया. इसी क्रूज़ में उन्हें एक और स्त्री मिली जिसने अपने अनुभव साझा करते हुए उन्हें बताया कि किस तरह उनके सकारात्मक दोस्तों ने उन्हें बहुत कम समय में एक के बाद एक – दो पतियों के बिछोह को सहने की ताकत दी. इसी स्त्री ने उन्हें यह अनमोल मंत्र भी दिया कि “नकारात्मक लोगों पर नष्ट करने के लिए यह जीवन बहुत छोटा है. मैं तो अपने इर्द गिर्द  ऐसे लोग चाहती हूं जो मेरी परवाह करे, मेरी सराहना करें और जो ज़िंदगी को आधे भरे  हुए गिलास वाले नज़रिये से देखें, न कि आधे खाली वाले नज़रिये से.”   

तारा पार्कर जिन नतीज़ों पर पहुंची उन्हीं को नेशनल ज्योग्राफिक के फैलो और लेखक डैन बट्टनर ने अपने अध्ययन से भी पुष्ट किया है. डैन ने सारी दुनिया के उन तथाकथित  ब्लू जोन्स में रहने वाले लोगों की स्वास्थ्य आदतों का अध्ययन किया है जिनके बारे में यह मान्यता प्रचलित है कि वहां रहने वालों की औसत उम्र अन्यों से कहीं अधिक होती है. डैन ने यह पाया कि इन जोन्स में रहने वालों में एक बात साझी है और वह यह कि ये सब सकारात्मक मैत्री में विश्वास करते हैं. डैन ने बताया कि उन्होंने जापान की एक जगह ओकिनावा का अध्ययन करते हुए यह पाया कि वहां की औरतों की औसत उम्र नब्बे के आसपास है और यह दुनिया में सर्वाधिक है. जब उन्होंने इसकी वजह की पड़ताल की तो उन्हें पता लगा कि वहां के लोग एक सामाजिक तंत्र बना लेते हैं जिसमें पांच नज़दीकी दोस्त होते हैं. ये दोस्त आजीवन एक दूसरे को सामाजिक, व्यवस्थागत, भावनात्मक और अगर ज़रूरत हो तो आर्थिक भी, सम्बल प्रदान करते हैं. इस तंत्र को मोआई कहा जाता है. डैन ने बताया कि वहां जैसे ही किसी शिशु का जन्म होता है, उसके मां-बाप उसे किसी मोआई का सदस्य बना देते हैं और फिर आजीवन इस सम्बंध का निर्वाह किया जाता है. जैसे-जैसे उस सदस्य का  परिवार बनता जाता है पूरा का पूरा परिवार उस मोआई से जुड़ता चला जाता है.

अपने इस अध्ययन से डैन बट्टनर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसे अपने देश अर्थात अमरीका में भी चलन में लाने का इरादा किया और अब वे अमरीका के पूर्व सर्जन जनरल विवेक मूर्ति के साथ मिलकर वहां के लगभग दो दर्जन शहरों में मोआई स्थापित करने में जुटे हुए हैं. हाल में उन्होंने टैक्सास  के एक शहर में वहां के कई नागरिकों को लेकर एक चलते फिरते मोआई की स्थापना भी की है जिसमें लोग नियमित रूप से मिलकर साथ में चहल कदमी करते हैं. डैन का कहना है कि किसी कामयाब मोआई की शुरुआत के लिए यह ज़रूरी है कि उसके लिए ऐसे लोगों का चयन किया जाए जिनकी रुचियां और मूल्य बोध एक जैसे हों. डैन ज़ोर देकर यह बात कहते हैं कि अगर आप अपनी आयु के कुछ साल बढ़ाना चाहते हैं तो पहला और सबसे ज़रूरी काम यही करें कि अपने इर्द गिर्द एक सामाजिक तंत्र निर्मित करें. वे सलाह देते हैं कि दूर की आभासी दुनिया में सैंकड़ों दोस्त बनाने से कहीं बेहतर है अपनी असल ज़िंदगी में महज़ पांच ही दोस्त बना लेना. ये दोस्त ऐसे हों जिनसे आप सार्थक संवाद कर सकें. ज़रूरत के समय जिन्हें इस भरोसे के साथ पुकार सकें कि वे दौड़े चले आएंगे और आपकी मदद करेंगे. डैन कहते हैं कि आपके इस तरह के दोस्त किसी भी औषधि या बुढ़ापा रोकने वाली दवा से कहीं ज़्यादा कारगर साबित होंगे.
●●●
जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 24 जुलाई, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.