Friday, March 23, 2018

चाहे जो हो जाए हम सुप्रभात संदेश भेज कर ही मानेंगे!


अब तो यह बात प्रमाणित भी हो गई है कि जब बात गुड मैनर्स की हो रही हो तो इस गाने को याद कर लिया जाना चाहिए: “सबसे आगे होंगे हम हिंदुस्तानी!”  शादाब लाहौरी साहब ने क्या खूब लिखा था  कि “हज़ूर आपका भी एहतराम  करता चलूँ/ इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूँ” लेकिन हम तो उनके सोच से भी काफी आगे निकल आए हैं. अब हम किसी के नज़दीक से गुज़रने पर ही उसे सलाम नहीं करते हैं, खुद बड़े  सबेरे जाग कर लोगों के घर-घर जाकर अपना सलाम पेश  करने लगे हैं. बेशक यह करने के लिए हम अपने मोबाइल फोन और इण्टरनेट का इस्तेमाल करते हैं. हममें से बहुत सारे लोग हर सुबह उठकर पहला काम अपने परिवार जन, दोस्तों और सामान्य जान पहचान वालों तक को भगवान, फूल पत्ती, उगते हुए सूर्य, किसी मासूम शिशु के प्यारे चेहरे या ऐसी ही किसी और तस्वीर के साथ सुप्रभात कहकर करते हैं. सुप्रभात कहने का यह उत्साह हममें इतना ज़्यादा है कि उन समूहों में घुसकर भी हम अभिवादन करने से बाज़ नहीं आते हैं जिनके एडमिन कई बार यह प्रार्थना कर चुके होते हैं कि कृपया यहां गुड मॉर्निंग के संदेश पोस्ट न करें! अगर मौका लग जाए तो हम ऐसे अशिष्ट एडमिन से जूझने में और उन्हें दो-चार सदाचारी उपदेश पिलाने में भी कोई संकोच नहीं करते हैं. आखिर शिष्टाचार भी कोई चीज़ होती है, साहब!

शिष्टाचार के प्रति हमारे इस लगाव पर प्रमाणीकरण की मुहर लगाई है गूगल ने. असल में हुआ यह कि जब गूगल वालों को यह बात पता चली कि इधर दुनिया भर में लोगों के स्मार्टफोन जल्दी-जल्दी फ्रीज़ होने लगे हैं, तो उन्होंने अपने शोधकर्ताओं को इसके कारण की पड़ताल करने का ज़िम्मा सौंपा. इन शोधकर्ताओं ने पाया कि इस समस्या के मूल में है भारतीयों का सुप्रभात  प्रेम! उन्होंने पाया कि इन शुभ कामना संदेशों की वजह से भारत में हर तीन में से एक स्मार्टफोन प्रयोगकर्ता के फोन की मेमोरी इतनी भर जाती है कि उसके बोझ तले वह फोन चीं बोल जाता है! अब ज़रा भारतीयों की इस संस्कारशीलता की तुलना संस्कारविहीन अमरीकियों से भी कर लीजिए. वहां हर दस में से एक फोन के साथ ही यह हादसा होता है! सुप्रभात को सलीके से, यानि किसी न किसी तस्वीर के साथ जोड़कर  कहने का भारतीयों का शौक इतना प्रबल है कि एक अमरीकी अखबार की पड़ताल के अनुसार पिछले पांच बरसों में गूगल पर गुड मॉर्निंग के साथ प्रयुक्त  की जा सकने वाली छवि की तलाश में दस गुना वृद्धि हुई है. ज़ाहिर है कि आपको या हमको सुबह-सुबह जो तस्वीरें मिलती हैं उनमें से ज़्यादातर  गूगल के भण्डार से ही निकाली गई होती हैं. वैसे इस मामले में पिंटरेस्ट नामक एक अन्य साइट भी पीछे नहीं रही है और वहां से भी सुप्रभात की तस्वीरें डाउनलोड करने वाले हिंदुस्तानियों की संख्या पिछले एक बरस में नौ गुना बढ़ी है.

सद्भावना या शिष्ट आचरण के प्रति हमारा यह अनुराग हर सुबह शाम अभिवादन करने तक ही सीमित नहीं है. हाल में वॉट्सएप वालों ने बताया है कि 2018 के पहले दिन हम भारतीयों ने 2000 करोड़ से भी ज़्यादा नव वर्ष शुभ कामना संदेशों का आदान-प्रदान किया.  यह संख्या दुनिया के किसी भी देश के निवासियों द्वारा उस दिन भेजे गए संदेशों से ज़्यादा थी. यहीं यह भी जान लें कि भारत में अकेले वॉट्सएप के 20 करोड़ सक्रिय प्रयोगकर्ता  हैं. वॉट्सएप के लिए यह संख्या इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण है कि इसी वजह से वे लोग भारतीयों की पसंद का विशेष ध्यान रखने लगे हैं और पिछले साल से तो उन्होंने ख़ास हमारे लिए एक ऐसा स्टेटस मैसेज जोड़ा है जिसके माध्यम से हम एक साथ अपने सभी सम्पर्कों को सुप्रभात कह सकते हैं! हम भारतीयों के शिष्टाचार निर्वहन के इस पुण्य कर्म में कम कीमत वाले स्मार्ट फोन्स और डेटा दरों में गलाकाट प्रतिस्पर्धा के कारण आई ज़बर्दस्त कमी की बहुत बड़ी भूमिका है.

शिष्टाचार के निर्वहन का यह उत्साह कुछ लोगों में इतना ज़्यादा है कि अगर दो-चार दिन आप उनके संदेशों का जवाब न दें तो वे फोन कर पूछ भी लेते हैं क्या आपको उनके संदेश नहीं मिल रहे हैं? जो आपसे ज़्यादा नज़दीकी महसूस करते हैं वे आपकी बेरुखी पर मुंह फुला लेने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करने में भी संकोच नहीं करते हैं. यहां यह बात भी याद आए बग़ैर नहीं रहेगी कि देश के एक शीर्षस्थ व्यक्तित्व ने पिछले दिनों सार्वजनिक  रूप से इस बात पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की थी कि जिन्हें वे हर सुबह सुप्रभात संदेश भेजते हैं उनमें से बहुत सारे उनके अभिवादन का जवाब तक देने की शालीनता नहीं बरतते हैं!

हमारे अपनों के फोन की मेमोरी चाहे जितनी जल्दी फुल और उनका फोन ठस्स हो जाए, हम गुड मॉर्निंग-गुड ईवनिंग कहना कैसे छोड़ सकते हैं?

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत शुक्रवार, 23 मार्च, 2018 को इसी शीर्षक सेे प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.