Tuesday, December 19, 2017

आभासी दुनिया में भी मनुष्य तो मनुष्य ही होता है!

आम चर्चाओं में अक्सर आभासी दुनिया की गतिविधियों  को यह कहकर नकारा जाता है कि इनका ज़मीनी हक़ीक़त से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता है लेकिन हाल में अमरीका के पूर्वी हार्लेम के 22 वर्षीय रैप गायक सह प्रोड्यूसर स्पेंसर स्लेयॉन और फ्लोरिडा की रिटायरमेण्ट कम्युनिटी में रहने वाली 81 वर्षीया रोज़ालिन गुटमैन की दोस्ती का किस्सा सामने आया तो इस नकार पर पुनर्विचार की ज़रूरत महसूस होने लगी. हुआ यह कि स्पेंसर को अपने मोबाइल पर वर्ड्स विथ फ्रैण्ड्स नामक एक खेल खेलने का चस्का लगा. स्क्रैबल से मिलते-जुलते इस खेल को किसी अजनबी लेकिन वास्तविक साथी के साथ खेलना होता है. अजनबी साथी का चयन खेल स्वत: कर देता है. खेल  के आनंद और रोमांच को और बढ़ाने के लिए दोनों खिलाड़ी परस्पर चैट भी कर सकते हैं. तो स्पेंसर को इस खेल के लिए साथी मिलीं रोज़ालिन और उन दोनों ने  सैंकड़ों गेम खेल डाले. लेकिन रहे वे खेल तक ही सीमित. कभी उन्होंने चैट नहीं की. खेल का चस्का दोनों को ऐसा लगा कि वे हर रोज़ खेलने लगे, और इसी क्रम में आहिस्ता-आहिस्ता चैट भी करने लगे. चैट की शुरुआत तो खेल विषयक मुद्दों से ही हुई लेकिन फिर वे अपने निजी जीवन को लेकर भी गपशप करने लगे, और इसी इलसिले में एक दिन स्पेंसर ने रोज़ालिन को यह भी बता दिया कि वो संगीत की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए न्यूयॉर्क चला जाना चाहता है. बात आगे बढ़ती इससे पहले कुछ ऐसी व्यस्तताएं आड़े आईं कि स्पेंसर ने खेल खेलना बंद कर दिया और अपने मोबाइल से इस खेल के एप को भी डिलीट करने का इरादा कर लिया. लेकिन तब तक उसकी दोस्ती रोज़ालिन से इतनी गहरी हो चुकी थी कि उसे यह ज़रूरी लगा कि यह करने से पहले वो उन्हें अलविदा कह दे.  चैट करते हुए उसने उनसे पूछा कि वे उसे क्या सलाह देना चाहेंगी? और रोज़ालिन का जवाब था, ‘तुम अपनी ज़िंदगी से जो भी चाहते हो, हाथ बढ़ाओ और उसे अपनी मुट्ठी में कर  लो!और वो न्यूयॉर्क चला गया.

वहां जाकर और अपने सपने को पूरा करने के लिए जद्दोज़हद करते हुए यकायक एक दिन उसे फिर इस खेल की याद आई और उसने इसे अपने मोबाइल में फिर से इंस्टॉल कर डाला. रोज़ालिन से भी उसका फिर सम्पर्क कायम हो गया. इसी बीच एक दिन जब वह किसी से गपशप कर रहा था तो उसने अपनी इस ऑनलाइन मित्र की सराहना भरी चर्चा की. संयोग से इस चर्चा को उसके एक स्थानीय मित्र की मां एमी बटलर ने सुन लिया. एमी वहां के एक चर्च में धर्मोपदेशक थीं और उन्हें लगा कि दो दोस्तों की यह कथा तो उन्हें अपने किसी प्रवचन में भी सुनानी चाहिए. लेकिन  कहानी में हक़ीक़त के और रंग भरने के लिए उन्हें रोज़ालिन से मिलना ज़रूरी लगा. उन्होंने फोन पर बात की तो यह महसूस किया कि अगर वे रोज़ालिन से प्रत्यक्ष मुलाकात करें तो और भी अच्छा रहेगा. और एमी बटलर स्पेंसर स्लेयॉन को साथ लेकर पहुंच गईं रोज़ालिन के पास उनके शहर फ्लोरिडा में. स्पेंसर और रोज़ालिन की पहली प्रत्यक्ष मुलाक़ात का अपना अनुभव साझा करते हुए एमी ने बाद में बताया कि उनका यह मिलन मेरी कल्पना से कहीं ज़्यादा खूबसूरत था. उनके हाव-भाव में तनिक भी असहजता नहीं थी और दोनों में एक दूसरे के प्रति चुम्बकीय आकर्षण था.

ज़्यादा वक़्त तीनों में से किसी के भी पास नहीं था. लेकिन एमी ने इस मुलाक़ात की जो तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं उनमें कुछ ऐसा जादू था कि उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा. बाद में स्पेंसर ने कहा कि उनके देश में जिस तरह का नस्लीय माहौल है उसके संदर्भ में एक अश्वेत पुरुष और श्वेत स्त्री की इस मैत्री का ऐसा स्वागत समय की एक बड़ी ज़रूरत को पूरा करने  वाली बात है. रोज़ालिन ने हालांकि पत्रकारों से कोई बात नहीं की, एमी से अपनी बातचीत में ज़रूर उन्होंने ताज़्ज़ुब किया कि इस मुलाकात में ऐसा विलक्षण क्या है? क्या तमाम लोगों को आपस में ऐसा ही व्यवहार नहीं करना चाहिए! रोज़ालिन का यह कथन अनायास ही हमें अपने समय के बड़े कथाकार स्वयंप्रकाश की कहानी  उस तरफ की याद दिला देता है जिसमें एक पत्रकार जैसलमेर के एक गांव में लगी भीषण आग में से बारह बच्चों को जीवित बचा ले आने वाले एक बेहद मामूली  आदमी नखतसिंह से इण्टरव्यू  करने जाता है और नखतसिंह उसी से सवाल करने लगता है कि जो कुछ उसने किया उसमें असाधारण क्या थ! स्पेंसर और रोज़ालिन की मैत्री कथा ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि मनुष्य तो मनुष्य ही होता है, चाहे वह यथार्थ दुनिया में हो या आभासी दुनिया में!


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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 19 दिसम्बर, 2017 को प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.