Tuesday, July 3, 2018

वहां के हालात देखते हैं तो ख़ुद पर बहुत गर्व होता है!


भले ही हाल में ज़ारी हुई थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के एक सर्वे के अनुसार  भारत को महिलाओं के लिए सबसे असुक्षित देशों की सूची में पहले स्थान पर रखा गया है, इस बात को तो स्वीकार करना ही होगा कि भारत में स्वाधीनता प्राप्ति के साथ ही स्त्रियों को वे तमाम अधिकार प्रदान कर दिये गए थे जो किसी भी सभ्य समाज में एक मनुष्य को मिलने चाहिएं. लेकिन हम इन अधिकारों के महत्व को तब तक नहीं समझ सकते जब तक कि हम दुनिया के और देशों में स्त्रियों पर ज़ारी प्रतिबंधों के बारे में न जान लें. इसीलिए  हाल  में जब यह ख़बर आई कि कई दशकों के प्रतिबंध के बाद सऊदी अरब की स्त्रियों को भी ड्राइव करने का हक़ मिल गया है तो अपने देश के हालात पर गर्व हुआ. यह गर्व तब और कई गुना बढ़ गया जब यह जाना कि बावज़ूद इस नव अर्जित आज़ादी के, अभी भी सऊदी अरब की स्त्रियां ऐसे अनेक प्रतिबंधों की जंज़ीरों में कैद हैं, जो हमारे लिए कल्पनातीत हैं. सऊदी अरब में स्त्रियों की आज़ादी की यह बयार वहां के शक्तिशाली क्राउन प्रिंस बत्तीस वर्षीय मोहम्मद बिन सलमान के उदारवादी नज़रिये और देश को आधुनिक बनाने की मुहिम की वजह से बहने लगी है, हालांकि वहां की रूढ़िवादी धार्मिक ताकतें अभी भी इन बदलावों को सहजता से नहीं ले पा रही हैं.

यह जानकर आश्चर्य होता है कि इक्कीसवीं सदी में भी सऊदी अरब की स्त्रियों को किसी पुरुष, जिसे वली कहा जाता है, की छत्र-छाया में ही रहना होता है. भले ही उस देश के लिखित कानून में इस बात का उल्लेख नहीं है, व्यवहार में सर्वत्र यह लागू है और इस कारण वहां की स्त्री बग़ैर अपने पुरुष गार्जियन की अनुमति के जीवन का कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं कर सकती है. न वह यात्रा कर सकती है, न पासपोर्ट ले सकती है, न बैंक खाता खोल सकती है, न शादी कर सकती है न तलाक ले सकती है और न किसी अनुबंध पर हस्ताक्षर कर सकती हैं. वहाबी पंथ के इस अलिखित प्रावधान के चलते वहां की स्त्रियां घरेलू हिंसा के खिलाफ भी कोई प्रभावी कदम नहीं उठा सकती हैं. राहत की बात बस इतनी है कि मई 2017 में मोहम्मद बिन  सलमान ने थोड़ी-सी राहत देते हुए स्त्रियों को यह हक़ दिया है कि वे बग़ैर गार्जियन की  अनुमति के किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश  ले सकती हैं, नौकरी कर सकती हैं और शल्य चिकित्सा करवा सकती हैं.

सऊदी अरब की स्त्रियों को अपनी वेशभूषा के चयन में अभी भी इस्लामी कानून-कायदों का ही पालन करना होता है. अधिकांश स्त्रियों को चोगे जैसा एक ढीले-ढाले किंतु पूरे शरीर को ढक लेने वाले वस्त्र जिसे अबाया कहा जाता है, को पहनना  होता है और अपना सर ढकना होता है. हां, अब उनके लिए मुंह को ढकना ज़रूरी नहीं रह गया है, लेकिन वहां की धार्मिक पुलिस प्राय: अंग प्रदर्शन या ज़्यादा बनाव शृंगार किये होने का आरोप लगाकर औरतों को तंग करती रहती है. पिछले बरस तो वहां के एक प्रमुख धार्मिक नेता ने यह आदेश भी ज़ारी कर दिया था कि स्त्रियां जो अबाया पहनें वह किसी भी तरह से सज्जित न हो. वैसे, वहां ड्रेस कोड को लेकर  ग़ैर  सऊदी अरब महिलाओं के कानून कुछ लचीला है.  

सऊदी अरब में इस बात का  भी ध्यान रखा जाता है कि स्त्रियां ऐसे पुरुषों के साथ जिनसे उनका कोई रिश्ता न हो, कितना समय बिता सकती हैं. वहां की ज़्यादातर सार्वजनिक इमारतों, जैसे कार्यालयों, बैंकों, शिक्षण संस्थाओं वगैरह में स्त्रियों और पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार होते हैं और सार्वजनिक यातायात के साधनों, पार्कों, समुद्र तटों वगैरह पर प्राय:  स्त्रियों और पुरुषों के अलग-अलग स्थान सुनिश्चित होते हैं, अगर कोई स्त्री-पुरुष इन प्रावधानों का उल्लंघन  करते हैं तो उसे आपराधिक कृत्य  मान  कानूनी कार्यवाही की जाती है और विशेष रूप से स्त्रियों को अधिक प्रताड़ित होना पड़ता है. सऊदी अरब में  एक अजीब प्रतिबंध  यह भी है कि स्त्रियां न तो किसी कब्रस्तान में जा सकती हैं और न वे कोई ऐसी फैशन पत्रिका पढ़ सकती हैं जिसे सेंसर न किया गया हो. लेकिन यहीं यह बात भी कह देना ज़रूरी है कि जैसा भारत में और दुनिया में अन्यत्र भी कई जगह होता है, सऊदी अरब में भी प्रतिबंधो की कठोरता इस बात पर निर्भर करती है कि आप कौन हैं और आपके ताल्लुकात किन-किन से हैं!

सऊदी अरब के ये हालात निश्चय ही हमें अपने देश की स्त्रियों को मिले अधिकारों पर गर्व करने का मौका देते हैं. क्या ही अच्छा हो कि हमारा समाज व्यवहार में भी स्त्रियों के प्रति अधिक संवेदनशील बने और उन्हें गरिमापूर्वक जीने का मौका दे. अगर ऐसा हो जाए तो निश्चय ही हम सारी दुनिया के सामने अपना सर उठा कर जी सकेंगे.

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 03 जुलाई, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.