इधर दुनिया भर में बुढ़ापे को लेकर अनगिनत अध्ययन और शोध किये जा रहे हैं. भावी आर्थिक नीतियों के निर्धारण के लिए यह बेहद ज़रूरी है. इन्हीं शोधों और अध्ययनों से अनेक दिलचस्प बातें छन छन कर सामने आ रही हैं. उनमें से कुछ की चर्चा करने बैठा हूं तो अनायास मुझे सन 2001 में बनी अमिताभ बच्चन की एक लोकप्रिय फिल्म का शीर्षक याद आ रहा है – ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप!’ शीर्षक से ही यह स्पष्ट है कि बुड्ढा कहलाना किसी को पसन्द नहीं आता है. सच तो यह है कि लोग बुढापे में भी ‘अभी तो मैं जवान हूं’ ही गुनगुनाना पसन्द करते हैं. लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि उम्र के लिहाज़ से बुढ़ापा कब शुरु होता है?
आपको यह बात तो मालूम ही है कि अतीत में ब्रिटेन में फ्रेण्डली सोसाइटीज़ एक्ट (1875) के आधार पर पचास की उम्र से बुढ़ापे की शुरुआत मानी जाती थी. लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो नई शोध की है उसके अनुसार पैंसठ पार की उम्र से बुढ़ापे की शुरुआत मानना प्रस्तावित है. इस शोध में हमारी आयु के विभिन्न पड़ावों को इस तरह से पहचाना गया है: शून्य से सत्रह बरस तक: अल्पायु या अण्डर एज, अठारह से पैंसठ बरस तक: युवावस्था, छियासठ से उनासी बरस तक: मध्य वय, अस्सी से निन्यानवे बरस तक: वरिष्ठ या बुज़ुर्ग, सौ बरस से अधिक वाले: दीर्घजीवी वरिष्ठ. सत्तर के दशक में जो नृवंशशास्त्रीय अध्ययन हुए उनमें मुख्यत: तीन आधारों पर यह वर्गीकरण किया गया था. आधार थे: पहला- वर्ष की गणना, दूसरा– सामाजिक भूमिका में आया बदलाव (जैसे सेवा निवृत्ति, बच्चों का बड़ा हो जाना और रजोनिवृत्ति वगैरह), और तीसरा- क्षमताओं में आया बदलाव (जैसे शारीरिक अक्षमता, बुढापा, शारीरिक दक्षताओं में आया बदलाव). इनमें से भी दूसरे आधार को अधिक महत्वपूर्ण माना गया.
भारत में हम यह मान लेते हैं कि सरकारी सेवा निवृत्ति की उम्र से बुढ़ापा आ जाता है. सामान्यत: अभी यह उम्र साठ बरस है. कनाडा में सेवा निवृत्ति की आयु पैंसठ तो अमरीका में छियासठ बरस है और आशा की जा रही है कि दोनों ही देश शीघ्र ही इसे बढ़ाकर सड़सठ बरस कर देंगे. लेकिन सेवा निवृत्ति की उम्र को बुढ़ापे के आगमन की बात मानना भी सबको स्वीकार्य नहीं है. वियना, ऑस्ट्रिया की एक शोध संस्था के विशेषज्ञों का मत है कि बुढ़ापे का फैसला वर्तमान आयु के आधार पर नहीं बल्कि इस आधार पर किया जाना चाहिए कि किसी के पास ज़िन्दगी के और कितने बरस बचे हैं. उनका मानना है कि जब किसी के पास जीने के लिए पन्द्रह या इससे कम बरस बचे हों तो उसे बूढ़ा कहा-माना जाना चाहिए. अब इस लिहाज़ से देखें तो पचास के दशक में एक सामान्य अंग्रेज़ के पन्द्रह बरस और जीने की उम्मीद की जाती थी, लेकिन आज पश्चिमी देशों में यह माना जा रहा है कि एक औसत सेवा निवृत्त व्यक्ति कम से कम चौबीस बरस और पेंशन का लाभ उठा लेगा. यानि मौज़ूदा हालात में चौहत्तर वर्षीय व्यक्ति को बूढ़ा माना जा सकता है.
लेकिन सोचने की बात यह भी है कि क्या केवल यह चौहत्तर का अंक ही बुढ़ापे के आगमन का निर्धारक हो सकता है ? चौहत्तर बरस की उम्र के हर व्यक्ति की स्थिति एक जैसी नहीं हो सकती है. ग़रीब और अमीर की, ग्रामीण और शहरी की, अनपढ़ और पढ़े लिखे की, अनुकूल और प्रतिकूल जीवन स्थितियों वाले समान उम्र के व्यक्ति की दशा में बहुत बड़ा फर्क़ हो सकता है. स्त्री पुरुष के मामले में तो यह अंतर प्रमाण पुष्ट भी है. इसके अलावा अपवाद तो होते ही हैं. यह भी अनुमान लगाया गया है कि अभी हाल में रिटायर हुए बारह में से एक पुरुष और सात में से एक स्त्री कम से कम सौ बरस तक जीवित रहेंगे. तो क्या उन्हें अधिक उम्र से से बूढ़ा माना जाए? अगर आप अपने घर में भी कोई पुरानी तस्वीर देखें तो पाएंगे कि पिछली पीढ़ी के लोग साठ बरस की उम्र में ही खासे जर्जर दिखाई देते थे जबकि आज उसी उम्र के लोग उनकी तुलना में बहुत सेहमतमन्द और ऊर्जावान दिखाई देते हैं और उन्हें कोई भी बूढ़ा नहीं कहना चाहेगा. सही बात तो यह है कि आज के सत्तर बरस अतीत के पचास बरस के बराबर हो गए हैं. कहना अनावश्यक है कि बेहतर जीवन स्थितियों और अपनी सेहत के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण यह बदलाव आया है.
तो, कुल मिलाकर मामला बहुत जटिल है और इस बात का कोई सर्वमान्य और सार्वकालिक उत्तर नहीं हो सकता कि किस उम्र के व्यक्ति को बूढ़ा माना जाए. वैसे, एक उत्तर हो सकता है जिससे शायद ही कोई असहमत हो, और वह यह कि बुढ़ापे का उम्र से अनिवार्य सम्बन्ध नहीं है. यह तो एक मानसिक अवस्था है जो हरेक की भिन्न भिन्न होती है.
आप क्या सोचते हैं?
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 07 मई, 2019 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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