अमरीकी राष्ट्रपति पद के प्रबल प्रत्याशी बराक ओबामा की दूसरी किताब द ऑडेसिटी ऑफ होप: थॉट्स ऑन रिक्लेमिंग द अमेरिकन ड्रीम एक ऐसी राजनीतिक किताब है जो न तो अपने प्रतिपक्षियों पर दोषारोपण करती है, न ‘हम बनाम तुम’ का वाक युद्ध रचती है. यह किताब अपने बहुलांश में बहुत सारे नीतिगत मुद्दों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, ईराक में युद्ध वगैरह पर ओबामा का पक्ष प्रस्तुत करती है. यह करते हुए ओबामा अपने पाठक का ध्यान उन अमरीकी समानताओं और मूल्यों की तरफ भी आकृष्ट करते हैं जो राजनीतिक मत वैभिन्य के बावज़ूद बरकरार हैं. ओबामा बडी समस्याओं के लिए आम सहमति के समाधानों की तलाश करते हुए परस्पर विरोधी विचारों को समझने की ज़रूरत पर बल देते हैं. लेकिन, यह समझौता नहीं है. यही है उम्मीद की साहसिकता, ऑडेसिटी ऑफ होप, जिसे ओबामा ने एक चर्च में प्रवचन सुनते हुए ग्रहण किया था. खुद ओबामा ने अपनी इस किताब पर बोलते हुए कहा है, “गलतियां ढूंढना आसान है. असल चुनौतियां तो उम्मीद तलाशने में हैं.”
किताब की महत्ता उस विज़न में है जो ओबामा अमरीकी राजनीति के लिए पेश करते हैं. यह एक ऐसा विज़न है जो सबको साथ लेकर चलना चाहता है. ओबामा की खासियत ही यह है कि वे विविध परिदृश्यों के ताने-बाने से एक सुसंगत और सुगठित समग्र रचते हैं. इसी कारण यह किताब आज की जटिल होती जा रही दुनिया में अमरीकी अस्मिता और उसकी भूमिका के लिए एक उत्तर-आधुनिक वृत्तांत रचती है. ओबामा मुख्यधारा की राजनीति के दबावों और तनावों को भली-भांति समझ कर खासकर रिपब्लिकन शैली की विभेदक पक्षधरता के विरोध में खडे होकर व्यापक अमरीकी मूल्यों पर आधारित बीच की राजनीति का पक्ष लेते हैं. ऐसा करते हुए वे कहीं-कहीं अंतर्विरोधी भी हो जाते हैं. जैसे, वे मुक्त व्यापार का समर्थन करते हैं लेकिन अमरीकी कामगारों पर उसके दुष्प्रभाव से व्यथित भी होते हैं, फिर जैसे अपने इस परस्पर विरोधी स्टैण्ड को कुछ दुरुस्त करते हुए आधे मन से यह भी जोडते हैं कि अंतत: तो शिक्षा, विज्ञान और नवीनीकरणीय ऊर्जा को ज़्यादा सहयोग देकर अर्थव्यवस्था पर भूमंडलीकरण के कुप्रभावों की भरपाई की जा सकेगी. अवसर बढाने के लिए भी वे शिक्षा, विज्ञान, तकनीकी और ऊर्जा के क्षेत्र में अधिक सार्वजनिक निवेश की पैरवी करते हैं. ऐसा, हालांकि 1970 से ही हो रहा है, लेकिन ओबामा को लगता है कि इसमें राष्ट्रीय महता की भावना का अभाव रहा है. इसी तरह वे राजनीतिज्ञों पर धन संग्रह, विभिन्न हित-समूहों, मीडिया, सौदेबाजी वगैरह के कारण बढते दबावों और उनकी समझौता परस्ती की चिंता करते हैं, लेकिन उस चिंता से बाहर नहीं निकल पाते.
ज़ाहिर है कि किताब का सम्बन्ध अमरीकी जीवन और राजनीति से है, लेकिन इसे पढते हुए बार-बार लगता है कि हम अपने देश के बारे में पढ रहे हैं. जब हम ओबामा का यह कथन पढते हैं कि संविधान को जन्म देने वाले सिद्धांतों की तरफ लौटकर ही अमरीकी अपने देश की टूट-फूट चुकी राजनीतिक प्रक्रिया को दुरुस्त कर सकते हैं और उस सरकार को फिर से काम-चलाऊ बना सकते हैं जो लाखों आम अमरीकियों से कट चुकी है, तो लगता है कि यह बात हमारे देश के बारे में भी तो कही जा सकती है.
ओबामा इस किताब की भूमिका में एक दिलचस्प घटना याद करते हैं. लगभग दस बरस पहले, जब उन्होंने पहली बार चुनाव लडा, वे जगह-जगह लोगों से मिलते, और हर बार घुमा फिराकर उनसे एक ही सवाल पूछा जाता, “आप तो खासे भले इंसान लगते हैं. आप राजनीति की गन्दी दुनिया में क्यों जा रहे हैं?” ओबामा इस आम धारणा का विश्लेषण भी करते हैं और कहते हैं कि राजनीति कर्मियों के वचन भंग की लम्बी परम्परा के कारण ऐसी धारणा बनी और मज़बूत हुई है. सोचें, क्या भारत में भी ऐसा ही नहीं हुआ है?
किताब में ऐसा ही एक और मार्मिक प्रसंग है जहां ओबामा व्हाइट हाउस में जॉर्ज डब्ल्यू बुश से हुई एक मुलाक़ात को याद करते हैं. बुश ने बडी गर्मजोशी से उनसे हाथ मिलाया, और फिर पास ही खडे अपने सेवक की तरफ मुडे. सेवक ने तुरंत उनके हाथ पर खूब सारा सेनिटाइज़र (एक तरह का साबुन) डाल दिया. राष्ट्रपति जी अपने इस मेहमान की तरफ भी थोडा-सा सेनिटाइज़र बढाते हैं, यह कहते हुए कि “अच्छी चीज़ है. इससे आप जुकाम से भी बचे रहते हैं.”
किताब की एक बहुत बडी विशेषता इसकी भाषा है. ‘उनकी आंखों में दुर्व्यवस्था की कौंध थी’, ‘कम्बल की झीनी ऊष्मा’, ‘अपने कूल्हों पर अनाम शिशुओं को टिकाए’ जैसे वाक्यांश और अपने बीबी-बच्चों से दूर वाशिंगटन डी सी में रहने की पीडा को ‘उनके आलिंगन की ऊष्मा और उनकी त्वचा की मधुर गंध के लिए तडपता हुआ’ कहकर व्यक्त करने वाला यह राजनीतिज्ञ अपनी भाषा की काव्यात्मक संवेदनशीलता से भी कम प्रभावित नहीं करता.
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Discussed book:
The Audacity of Hope: Thoughts on Reclaiming American Dream
By: Barrack Obama
Published By: Crown Publishing Group
Hardcover, 384 pages
US $ 25.00
राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट जस्ट जयपुर में मेरे साप्ताहिक कॉलम वर्ल्ड ऑफ बुक्स के अंतर्गत 12 जून, 2008 को प्रकाशित.
2 comments:
agrwaal ji
aapko patrika men
niymit pathak hun..
agrwaal ji
aapka patrika men
niymit pathak hun..
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