न्यूज़वीक के सम्पादक, भारत में जन्मे और लम्बे समय से न्यूयॉर्क में रह रहे फरीद ज़करिया की एकदम ताज़ा किताब ‘द पोस्ट-अमेरिकन वर्ल्ड’ अर्थात उत्तर अमरीकी दुनिया, एक ऐसे भावी परिदृश्य की कल्पना करती है जिसमें आज का सर्वशक्तिमान अमरीका न तो वैश्विक अर्थव्यवस्था का नियंता है, न भू-राजनीति का संचालक और न संस्कृतियों का परिचालन कर्ता. ज़करिया को चीन, भारत, ब्राज़ील, रूस और कई अन्य देशों का उत्थान, जिसे वे ‘राइज़ ऑफ द रेस्ट’ का नाम देते हैं, एक ऐसी परिघटना नज़र आता है जो दुनिया की तस्वीर बदल देने वाला है. दुनिया की सबसे ऊंची इमारतें, सबसे बडे बांध, सबसे ज़्यादा चलने वाली फिल्में और नवीनतम सेलफोन – इन सबका निर्माण अमरीका के बाहर ही हो रहा है. और, बावज़ूद इसके कि विश्व की आबादी बढ रही है, कम से कम दुनिया के तीन चौथाई देशों में अत्यधिक गरीबी में रह रहे लोगों की संख्या में कमी हो रही है.
ज़करिया लिखते हैं कि अब तक तो अमरीका एक राजनैतिक और सैन्य महाशक्ति है, लेकिन इन दो को छोडकर शेष तमाम क्षेत्रों में शक्ति संतुलन की तस्वीर बदलती जा रही है. औद्योगिक, वित्तीय, शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक – इन सारे क्षेत्रों में अमरीकी वर्चस्व के गढ ढहते जा रहे हैं. चीन, भारत और अन्य उभरते बाज़ारों तथा दुनिया के बडे भाग में हो रहे आर्थिक विकास और दुनिया के लगातार विकेन्द्रिकृत और आपस में जुडते जाने की वजह से हम एक ऐसी उत्तर-अमरीकी दुनिया की तरफ बढ रहे हैं जिसे कई जगहों से कई लोग परिभाषित और निर्मित कर रहे हैं.
ज़करिया कहते हैं कि हमारा दौर पिछले 500 बरसों के तीसरे महान टेक्टॉनिक पॉवर शिफ्ट का दौर है. पहला दौर था आधुनिकता, विज्ञान, तकनीक, वाणिज्य, पूंजीवाद, कृषि और औद्योगिक क्रांति का, जिसे हम पश्चिम के अभुदय का दौर भी कह सकते हैं. दूसरा दौर बीसवीं शताब्दी में अमरीका के उत्थान का दौर था. और तीसरा यानि वर्तमान दौर है ‘राइज़ ऑफ द रेस्ट’ का जिसमें चीन और भारत अपने पास (और दूर भी) बडी शक्तियों के रूप में उभर रहे हैं, रूस अधिक आक्रामक हो रहा है और बाज़ार तथा अर्थशास्त्र के क्षेत्र में यूरोप अधिक शक्तिशाली और अर्थपूर्ण ढंग से सक्रिय हो रहा है..
ज़करिया संस्मरणात्मक होते हुए लिखते हैं कि अस्सी के दशक में जब वे भारत आते तो पाते थे कि यहां के ज़्यादातर लोग अमरीका से अभिभूत थे. इस भाव के मूल में अमरीका का शक्तिशाली होना या कोई अन्य बौद्धिक कारण नहीं थे. अक्सर लोग उनसे, यानि ज़करिया से, डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में पूछते क्योंकि वही अमरीका का प्रतीक था - चमकदार, अमीर और आधुनिक! ट्रम्प इस विचार का मूर्त रूप था कि अगर आप कुछ भी बडा करना या पाना चाहते हो तो अमरीका में ही कर या पा सकते हैं. लेकिन, आज, मनोरंजन की दुनिया को छोड दें तो अमरीकी व्यक्तित्वों में किसी की दिलचस्पी नहीं बची है. आप भारत के अखबार पढिए, यहां का टी वी देखिए. आप पाएंगे कि यहां के अनेक व्यापारी डोनाल्ड ट्रम्प से ज़्यादा अमीर हैं. आज भारतीयों के पास अपने अभिभूतकारी रियल एस्टेट धनपति हैं. और, जैसा भारत में हो रहा है, वैसा ही दुनिया के अधिकतर देशों में हो रहा है.
ज़करिया एक अहम बात यह कहते हैं कि यह ‘राइज़ ऑफ द रेस्ट’ अमरीकी विचारों और कृत्यों का ही परिणाम है. पिछले साठ सालों से अमरीकी राजनेता और राजनयिक दुनिया भर में मुक्त बाज़ार, मुक्त राजनीति तथा व्यापार और तकनीक के गठजोड की वकालत करते घूम रहे हैं. उसी का परिणाम है कि आज दुनिया के अनेक देश अमरीका के समकक्ष खडे हो गए हैं. सवाल यह है कि इस तेज़ी से बदलती जा रही, एक ध्रुवीय दुनिया में अमरीका की भूमिका क्या होगी? ज़करिया की सलाह है कि अमरीका को अपने हठधर्मी पूर्ण और आदेश देने वाले महाशक्ति के रूप को त्याग कर अन्य देशों से निकट और समानता के सम्बन्ध बनाने होंगे और उन्हें सलाह देनी होगी, उनसे सहयोग करना होगा, यहां तक कि उनसे समझौते भी करने होंगे. इस नई दुनिया में अमरीका की भूमिका एक वैश्विक दलाल की ही हो सकती है.
ज़करिया की एक बडी चिंता इस बात को लेकर है कि दुनिया के एक साथ कई देशों का विकास के पथ पर अग्रसर होना, और किसी नियंत्रक महाशक्ति का न होना, किसी बडे गडबडझाले का कारण हो सकता है. उनका कहना है कि आर्थिक वैश्वीकरण से विकास आता है और विकास के साथ ही आता है राष्ट्रवाद भी. राष्ट्रीय गर्व का यह भाव स्वभावत: सहयोग-भाव को घटाता है. और यही है आज की और कल की दुनिया की सबसे बडी विडम्बना और सबसे बडी चिंता. ज़करिया से इसका हल पूछें तो वे कहते हैं : हॉरिजॉण्टल, नॉट वर्टिकल; को-ऑपरेटिव, नॉट हायरार्किकल!
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Discussed book:
The Post-American World
By Fareed Zakaria
Published by: Norton, W.W. & Company, Inc.
Hardcover. 288 Pages.
US $ 25.95
राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट जस्ट जयपुर में मेरे साप्ताहिक कॉलम वर्ल्ड ऑफ बुक्स के अंतर्गत 22 मई 2008 को प्रकाशित.
3 comments:
पुस्तक काफ़ी रोचक लग रही है. ज़रूर पढ़ुंगा.. इतनी महत्वपूर्ण जानकारी शेयर करने के लिए धन्यवाद ..
aapkee lekhnee ko naman....ye to satat salilaa ho gayee hai..
बहुत रोचक समीक्षा की है. इस पुस्तक को पढ़ने की इच्छा जाग गई.
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