Tuesday, November 7, 2023

अविस्मरणीय श्रीमती विनोद गर्ग

 हमारा जीवन भी कितना विचित्रता भरा और विलक्षण है. आए दिन हम अनेक लोगों से मिलते-जुलते हैं और उनमें से अधिकांश को तुरंत ही बिसरा भी देते हैं. यह स्वाभाविक भी है. आखिर हमरी स्मृति की भी तो कोई सीमा होगी होगी. कितनों को हम याद रखेंगे? जिनसे हमारा अधिक मिलना-जुलना होता है वे, बल्कि कहें उनमें से अधिकांश हमारी स्मृति में अटके रह जाते हैं. आप कहेंगे, यह तो स्वाभाविक बात है. इसमें विलक्षणता क्या है? मैंभी इसे स्वाभाविक ही मान रहा हूं. लेकिन मेरी बात इससे आगे से शुरू होती है. विलक्षणता यह है कि जीवन में कुछ लोग ऐसे भी आते हैं जिनसे हमारी मुलाकातें तो बहुत कम होती हैं लेकिन वे हमारी स्मृति का अटूट हिस्सा बन जाते हैं!  भले ही उनसे मिलने-जुलने, बोलने-बतियाने के ज़्यादा अवसर हमारे जीवन में न आए हों, जब हम अपनी यादों की किताब के पन्ने पलटते हैं तो वे वहां मौज़ूद मिलते हैं. 


ऐसे ही एक विलक्षण व्यक्तित्व को आज मैं याद कर रहा हूं. और याद बहुत दुख के साथ कर रहा हूं. दुख इस बत का कि अब वे सदेह इस धरा पर मौज़ूद नहीं हैं. क्रूर काल ने उन्हें हमसे छीन लिया. लेकिन उनकी स्मृति अभी हमारे साथ है, और सदा हमारे साथ रहेगी. मैं बात कर रहा हूं जानी-मानी शिक्षाविद और शैक्षिक प्रशासक स्वर्गीया श्रीमती विनोद गर्ग की. क्योंकि वे और मैं - हम दोनों ही राजस्थान के कॉलेज शिक्षा विभाग में रहे, और लगभग समकालीन रहे, यह स्वाभाविक ही था कि हम एक दूसरे के नाम से परिचित थे. प्रत्यक्ष उनके सम्पर्क में आने का अवसर मुझे उदयपुर में एक प्रशासनिक प्रशिक्षण के दौरान मिला. वहां ओटीएस में राजकीय सेवा नियमों आदि के बारे में कोई प्रशिक्षण कार्यक्रम था, जिसमें भाग लेने के लिए मैं और श्रीमती विनोद गर्ग उदयपुर में थे. तब हालांकि हमारा परिचय औपचारिकताओं से आगे नहीं बढ़ा लेकिन उनके सौम्य व्यक्तित्व और सकारात्मक सोच ने मुझे बहुत प्रभावित किया. इसके बाद बरसों हम लोग नहीं मिले. कभी कोई ऐसा अवसर आया ही नहीं. लेकिन इसे मैं उनके व्यक्तित्व का जादू ही कहूंगा कि वे मेरी स्मृति से ओझल नहीं हुईं. 

इसके बाद एक संयोग यह बना कि मुझे जयपुर में कॉलेज शिक्षा निदेशालय (अब आयुक्तालय) में संयुक्त निदेशक के पद पर कार्य करने का अवसर  मिला. तब मेरे एक साथी संयुक्त निदेशक डॉ जेके गर्ग भी थे. अपने उसी कार्यकाल में मुझे पता चला कि श्रीमती विनोद गर्ग डॉ जेके गर्ग की सहधर्मिणी हैं. अपने उस कार्यकाल के दौरान  एकाधिक बार मुझे श्रीमती गर्ग से मिलने के अवसर मिले और हर मुलाकात के बाद  उनके प्रति मेरा आदर भाव और अधिक सघन हुआ. 


जेके गर्ग साहब और मेरे सेवा निवृत्त हो जाने के बाद एक और अवसर आया श्रीमती गर्ग से मुलाकात का. गर्ग परिवार ने  ने अजमेर में गर्ग दम्पती के विवाह की स्वर्ण जयंती पर एक शानदार आयोजन किया. मेरे पूर्व सहकर्मी जेके गर्ग साहब का पुरज़ोर आग्रह था कि कि मैं इस आयोजन में उपस्थित रहूं. उस समय एक बार फिर श्रीमती गर्ग के स्नेहिल व्यक्तित्व से अभिभूत होने का सौभाग्य मुझे मिला. बाद में गर्ग दम्पती अजमेर से जयपुर ही आकर बस गए और इस बात की बहुत सम्भावनाएं थीं कि हमारा अधिक मिलना-जुलना होता. लेकिन कोविड ने इन सम्भावनाओं को यथार्थ में परिणत नहीं होने दिया. 

 

आज जब श्रीमती गर्ग अनंत की यात्रा पर प्रस्थान कर चुकी हैं, मुझे इस बात का अफ़सोस हो रहा है कि मैं उनके वात्सल्यपूर्ण और स्नेह भरे सान्निध्य का अधिक लाभ नहीं ले सका. लेकिन वे अपनी प्रखर बौद्धिकता, अपने सौम्य शालीन व्यक्तित्व, अपने प्रशासनिक कौशल और ऐसे ही अन्य अनेक गुणों के कारण सदैव मेरी स्मृति में रहेंगी. 


उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि! 


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