हाल में चीन में सरकार ने एक विशेष
रेलगाड़ी चलाई है, जिसका नाम है ‘लव स्पेशल ट्रेन’. यह रेलगाड़ी
चोंगकिंग नॉर्थ स्टेशन से कियानजियांग स्टेशन तक चलती है और इसमें एकल अर्थात
सिंगल स्त्री या पुरुष ही यात्रा कर सकते हैं. दो दिन और एक रात के सफर वाली दस
डिब्बों की यह विशेष रेलगाड़ी इसलिए चलाई गई है ताकि यात्रीगण अपने लिए उपयुक्त
जीवन साथी तलाश कर सकें. अब तक इस रेलगाड़ी में तीन हज़ार सिंगल्स यात्रा कर चुके
हैं और उनमें से दस जोड़े बनने का शुभ समाचार मिल चुका है. इस रेलगाड़ी को चलाने की
ज़रूरत क्यों पड़ी, इसे जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चेयरमेन माओ
के प्रोत्साहन की वजह से चीन में जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई थी. 1978 तक
आते-आते यह वृद्धि वहां की तत्कालीन सरकार के लिए इतनी बड़ी मुसीबत बन गई कि उसे
मज़बूर होकर एक संतान की नीति की घोषणा करनी पड़ी. पति पत्नी को केवल एक ही संतान
पैदा करने की अनुमति थी और अगर दूसरी संतान हो जाती तो सरकार चाहती कि जैसे भी हो
वे लोग उससे छुटकारा पाएं. इस कठोर और निर्मम नीति को लागू कर चीन ने अपनी बढ़ती
जनसंख्या पर तो नियंत्रण पा लिया,
लेकिन
इसी नीति की वजह से आज वहां के समाज को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. असल
में चीनी समाज में भी लड़कों को अतिरिक्त महत्व दिया जाता है और लड़कियों को कमतर
माना जाता है. इस वजह से जब एक संतान वाली
नीति वहां प्रभाव में आई तो लोगों ने येन केन प्रकारेण अकेली संतान के रूप
में लड़कों को ही इस दुनिया में लाने के प्रयास ज़ारी रखे. भले ही पिछले बरस चीन ने
अपनी इस एकल संतान नीति में थोड़ी छूट देते हुए उन मां बाप को दूसरी संतान पैदा
करने की अनुमति दे दी जिनमें से कोई एक अपने मां बाप की एकल संतान था या थी, इतने बरस चली इस
नीति के कुपरिणामों का सामना तो करना ही था. एक मोटे अनुमान के अनुसार इन दशकों
में करीब पौने चार करोड़ चीनी कन्याओं को अनचाहा या अतिरिक्त मान कर गर्भपात, भ्रूण हत्या, इधर उधर फेंक देने
या अवैध क्रय विक्रय का शिकार बनाया गया. इसके अलावा, यह तो आधिकारिक आंकड़ा है
कि इस नीति के चलन में आने के बाद वहां चालीस करोड़ गर्भपात किये गए. बहुत सारे मां-बाप
ऐसे भी थे जो अपनी दूसरी संतान से किसी भी तरह छुटकारा नहीं पा सके लेकिन क्योंकि
इसकी अनुमति नहीं थी, उन्होंने अपनी इस संतान को छिपा कर रखा और उसका कहीं भी
आधिकारिक पंजीकरण नहीं कराया. परिणाम यह हुआ कि यूनीसेफ़ के आंकड़ों के अनुसार आज
चीन में पांच बरस से कम उम्र के दो करोड़ नब्बे लाख बच्चे ऐसे हैं जिनके पास जन्म
प्रमाण पत्र नहीं है, और इस वजह से चीनी सरकार के लिए उनका कोई अस्तित्व नहीं है. न
वे पढ़ सकते हैं,
न
इलाज़ करवा सकते हैं, न कहीं जा आ सकते हैं.
अभी स्थिति यह है कि चीन
में लड़के लड़की का अनुपात 118:100 है. कहीं
कहीं तो यह अनुपात 130:100 तक भी है. स्मरणीय है कि दुनिया में औसतन यह अनुपात 103:100
से 107:100 के बीच है. कहने का आशय यह कि वर्तमान चीनी समाज में लिंगानुपात में
भारी असंतुलन है. चीन के राष्ट्रीय
स्वास्थ्य एवम परिवार नियोजन आयोग ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि वहां बहुत
विकट लैंगिक असंतुलन है और यह बात वहां की जनसंख्या के बहुत बड़े भाग को प्रभावित
कर रही है. इस लैंगिक असंतुलन का ही परिणाम है कि वहां लाखों पुरुष ऐसे हैं जिनको
दूर-दूर तक विवाह की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती है. शहरों की तुलना में गांवों में स्थिति
और भी अधिक विकट है. कहा जा रहा है कि हर चार में से एक चीनी पुरुष अविवाहित ही रह
जाएगा. इस असंतुलन का एक दुष्परिणाम यह भी हो रहा है कि चीनी समाज में समलैंगिकता
बढ़ रही है.
ऐसे में स्थिति को सुधारने
के लिए चीन की सरकार जो अनेक प्रयास कर रही है उन्हीं में से एक प्रयास यह लव
स्पेशल ट्रेन चलाने का भी है. लेकिन इस प्रयास की सफलता इसलिए संदिग्ध है कि असल
समस्या तो यह नहीं है कि लड़के लड़की विवाह नहीं करना चाहते हैं, बल्कि समस्या यह है कि है कि वहां लड़कियों की कमी है.
देखना दिलचस्प होगा कि चीन अपनी इस समस्या
से कैसे उबरता है. इस समस्या में हमारी दिलचस्पी इसलिए भी होनी चाहिए कि भले ही
सरकार ने हमारे यहां एकल संतान जैसी कोई नीति लागू न की हो, लड़कियों को लेकर
पारम्परिक भारतीय समाज का सोच तो चीन जैसा ही है और इसी कारण हमारे यहां भी
लिंगानुपात गड़बड़ा रहा है.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक राजस्थान पत्रिका पावर्ड बाय न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 03 सितम्बर 2019 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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