हम बचपन से सुनते आए हैं कि घूमना सेहत के
लिए फायदेमंद होता है, और इसलिए भरसक यह
कोशिश करते हैं कि जितना सम्भव हो पैदल चल लें. कुछ बरस पहले तक हम सुबह या शाम
घूम लिया करते थे और यह सोच कर संतुष्ट हो जाते थे कि आज हम दो किलोमीटर घूमे या
तीन किलोमीटर. फिर आहिस्ता आहिस्ता हमारे घूमने की नाप जोख करने वाले उपकरण आ गए
तो उनकी मदद से हम अपने घूमने का हिसाब-किताब रखने लगे. पीडोमीटर, स्मार्ट वॉचेज़ या
स्मार्ट फोन के विभिन्न एप्स – जिसको जो
सुविधाजनक और अपनी पहुंच के भीतर लगे वो उसी की मदद से आजकल अपने पैदल चलने का लेखा-जोखा
रख लेता है. वैसे बहुत लोग अब भी इन सबसे
मुक्त रहकर ही घूमते हैं.
जो लोग किसी आधुनिक उपकरण
की सहायता से अपने घूमने का रिकॉर्ड रखते हैं उनके लिए घूमने का आदर्श पैमाना है दस हज़ार कदम. यानि अगर
आप हर रोज़ दस हज़ार कदम चल लिये हैं तो मान लें कि आपने अपनी घूमने की दैनिक ज़रूरत
पूरी कर ली है. जैसे ही आप दस हज़ार कदम चल लेते हैं, आपके स्मार्ट फोन में स्थापित
एप हरे रंग की पट्टियों से बना एक गुलदस्ता नुमा उपहार आपको प्रदान कर आपका हौंसला
बढ़ाता है. हर एप में इस उपहार की आकृति अलग-अलग होती है, लेकिन दस हज़ार कदम पूरे
करते ही आपकी पीठ थपथपाई ज़रूर जाती है. क्या आपने कभी जानने का प्रयास किया है कि यह
दस हज़ार कदम का पैमाना बना कैसे? मैं तो यही सोचता था कि बड़े बड़े विशेषज्ञों ने
बरसों शोध और परीक्षण कर यह जाना होगा कि हमें स्वस्थ रहने के लिए हर दिन कम से कम
दस हज़ार कदम चलना चाहिए.
लेकिन आप भी यह जानकर चौंक
उठेंगे कि ऐसा नहीं है. अगर अनुमति दें तो इस रहस्य पर से पर्दा हटा ही दूं! हुआ
यह कि जब 1964 में जापान की राजधानी टोकियो में ओलम्पिक खेल होने वाले थे तो वहां
की पीडोमीटर बनाने वाली एक कम्पनी ने अपना उपकरण बेचने के लिए एक ज़ोरदार विज्ञापन
अभियान चलाया. पीडोमीटर यानि आपके कदमों की गणना करने वाला उपकरण. उस कम्पनी ने
अपने पीडोमीटर का नाम रखा था – मेन पो काई. जापानी भाषा में इन तीन शब्दों
के अर्थ ये हैं: मेन = दस हज़ार, पो = कदम, और काई = मीटर या गणना यंत्र. अब इसे संयोग
कहें या कुछ और,
कि
यह उपकरण बेहद कामयाब साबित हुआ. कम्पनी ने तो भारी मुनाफा कमाया ही, यह दस हज़ार की
संख्या भी लोगों की स्मृति में अड्डा जमा कर बैठ गई. बाद में कुछ छोटे-मोटे शोध भी
हुए जिनमें पांच हज़ार कदम चलने से होने वाले फायदों की तुलना दस हज़ार कदम चलने से
होने वाले फायदों से की गई, और तब यह निष्कर्ष तो निकलना ही था कि जितना ज़्यादा
चलोगे उतना फायदे में रहोगे. लेकिन यह एक तथ्य है कि दस हज़ार कदमों को लेकर अब तक
बाकायदा कहीं कोई शोध नहीं हुई है. अलबत्ता हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मेडिसिन की
प्रोफ़ेसर आई मीन ली और उनकी टीम ने सत्तर पार की सोलह हज़ार स्त्रियों पर एक शोध कर
यह जानने का प्रयास अवश्य किया है कि उनके चलने और उनकी मृत्यु के बीच क्या सम्बंध
है. उन्होंने भी यह पाया कि जो स्त्री जितना ज़्यादा चलती थी वो उतने ही ज़्यादा समय
तक जीवित रही. लेकिन इस शोध में यह भी पता चला कि ज़्यादा चलने का लाभ केवल साढ़े
सात हज़ार कदमों तक ही सीमित रहा, इससे ज़्यादा चलने पर या तो कोई अतिरिक्त लाभ नहीं
हुआ या लाभ कम हो गया. वैसे इस शोध के परिणामों पर विश्वास करते समय इस बात को नहीं
भूलना चाहिए कि यह सत्तर पार की स्त्रियों तक ही सीमित था.
कदमों की यांत्रिक गणना की
अपनी सीमाएं हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता. पहली बात तो यह कि यंत्र के
लिए बहुत तेज़ गति से चलना और एकदम धीमी गति से टहलना दोनों एक ही बात हैं. ये भी
चार कदम और वो भी चार कदम. जबकि हर कोई जानता है कि धीमे और तेज़ चलने के प्रभाव व
परिणाम एक से नहीं हो सकते. इसलिए कदमों की इस गणना को एक स्थूल आकलन ही माना जाना
चाहिए. दूसरी ख़ास बात जिसकी तरफ ध्यान जाना ज़रूरी है वह यह है कि कदमों की यह
यांत्रिक गणना आपका ध्यान उस आनंद से भटका देती है जो पैदल चलने से आपको मिलता है.
यह बात ड्यूक विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान के एक प्रोफ़ेसर जॉर्डन एटकिन ने कही है. उन्होंने एक अध्ययन कर यह बताया है
कि भले ही अपने कदमों की यांत्रिक गणना करने वाले लोग चले ज़्यादा हों, उन्हें ऐसा करके
आनंद कम मिला.
हमने तो सारी बातें आपके
सामने रख दी हैं. अब आप खुद तै कर लें कि आपको कितने कदम चलना है, और कदम गिनकर चलना
है या चलने का सच्चा आनंद लेकर चलना है!
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे
साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 06 अगस्त, 2019 को ‘पैदल चलने
की यांत्रिक गणना की सीमाएं’ शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल
पाठ.
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