Tuesday, July 9, 2019

यंत्रणा से गुज़रने पर कानूनी लड़ाई, ताकि कोई और न झेले


पिछले बरस न्यूयॉर्क के उत्तरी इलाके ब्रॉन्क्स की एक जेल में बंद कैदी को जब प्रसव वेदना शुरु हुई तो उसे एक नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया. यह सामान्य बात थी, लेकिन इसमें असामान्यता यह थी कि उस महिला को बाकायदा हथकड़ी और बेड़ियों में अस्पताल ले जाया गया. वैसे, न्यूयॉर्क राज्य के कानून के अनुसार  गर्भवती कैदी को प्रसव वेदना और प्रसव के समय जंजीरों में बांध  कर नहीं रखा जा सकता, लेकिन जो पुलिस कर्मी उन्हें अस्पताल  लेकर गए उन्होंने इस निषेध की परवाह नहीं की. बाद में अपने बचाव में उन्होंने कहा कि वे तो गश्त के लिए निर्धारित निर्देशों का पालन करने को विवश थे जिसके अनुसार कैदी की सुरक्षा  सर्वोपरि होती है. और इसीलिए उस महिला को प्रसव वेदना और फिर प्रसव के दौरान भी जंजीर से बांध कर रखा गया और उसके एक हाथ की हथकड़ी को पलंग से बांधे  रखा गया.  इसी अवस्था में उस महिला ने एक बेटी को जन्म दिया.

इस महिला का प्रकरण सामने आने के बाद यह खोजबीन शुरु  हुई कि पूरे अमरीका में कुल कितनी गर्भवती स्त्रियां जेलों में हैं. और तब पता चला कि इस तरह के कोई प्रामाणिक आंकड़े उपलब्ध ही नहीं हैं. लेकिन स्थिति का थोड़ा अनुमान जॉन्स हॉपकिंस मेडिसिन द्वारा किए गए एक सर्वे के आंकड़ों से लगाया जा सकता है जिनके अनुसार सन 2016 व 2017 में संघीय व बाईस राज्य की जेलों में कम से कम चौदह सौ गर्भवती  स्त्रियां कैद थीं.  न्यूयॉर्क राज्य ने इस सर्वे के लिए भी जानकारियां उपलब्ध कराने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि उसके पास इसके लिए समुचित स्टाफ नहीं है. वैसे, अमरीका के ज़्यादातर  राज्यों में गर्भवती महिलाओं को जंजीर से बांधे रखना वैध है. हां, इतना ज़रूर है कि डॉक्टरों और शोधकर्ताओं की इस चेतावनी के बाद कि गर्भावस्था में इस तरह का बर्ताव स्त्री और गर्भस्थ  शिशु के लिए प्राणघातक साबित हो सकता है, बहुत सारे राज्य अपने सम्बद्ध कानूनों में सुधार की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं. पिछले बरस अमरीकी कॉंग्रेस ने संघीय जेलों और संयुक्त राज्य मार्शल सेवाओं की हिरासत में बेड़ियों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया था. इस बरस कई अन्य राज्यों ने गर्भवती महिलाओं को जंजीरों से जकड़ने पर रोक लगा दी है. कुछ राज्य (जैसे कैरोलिना) अभी भी इस रोक को लागू करने पर विचार  कर रहे हैं और कम से कम एक राज्य (टेनेसी) ऐसा भी है जिसने इस तरह की रोक लगाने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया है.

जंजीर की मुखालिफत करने वाले कुछ कानूनों में  गर्भवती स्त्रियों को केवल उनकी प्रसव वेदना अथवा  प्रसव के समय जंजीर से मुक्ति देने का प्रावधान है तो  कुछ राज्यों जैसे न्यूयॉर्क में यह व्यवस्था है कि गर्भवती होने के किसी भी समय में तथा प्रसव के बाद कुछ समय तक अगर उस कैदी महिला को एक से दूसरी जगह ले जाया जाता है तो उसे जंजीर में जकड़ कर न ले जाया जाय. लेकिन करीब करीब सारे कानून यह कहते हैं कि अगर उस महिला के कारण हवाई यात्रा में किसी खतरे की आशंका हो अथवा खुद उस महिला या अन्यों  की सुरक्षा को कोई खतरा हो तो यह निषेध अप्रभावी होगा.

हम फिर उस महिला के प्रकरण पर लौटते  हैं. अपने साथ हुए व्यवहार को उस महिला ने न्यायालय में चुनौती दी. उस 28 वर्षीया अनाम महिला ने कहा कि वह नहीं चाहती है कि जिस तरह का अमानवीय व्यवहार उसे सहना पड़ा वैसा किसी भी और महिला को सहन करना पड़े. न्यायालय ने उसको सहानुभूतिपूर्वक सुना. महिला का आरोप था कि उसके साथ  किया गया बर्ताव अमानवीय था और उस से राज्य के नियमों का उल्लंघन  हुआ है.  आखिरकार न्यूयॉर्क नगर प्रशासन को उस महिला को छह लाख दस हज़ार डॉलर की मुआवज़ा राशि देकर अपना मान बचाना पड़ा. वैसे न्यूयॉर्क नगर प्रशासन ने अपनी टांग ऊपर रखते हुए यह अवश्य कहा कि उन्होंने कुछ भी ग़लत नहीं किया है. लेकिन इसी के साथ सबसे ख़ास बात यह कि इस महिला के प्रकरण के बाद वहां का पुलिस प्रशासन अपने गश्त विषयक नियमों पर पुनर्विचार करते हुए उन्हें संशोधित करने की दिशा में सक्रिय हो गया है.

न्यायालय में अपनी विजय पर हर्षित उस महिला की प्रतिक्रिया बड़ी संज़ीदा थी. उसने कहा कि उसे इस बात की खुशी है कि उसकी इस कानूनी लड़ाई के कारण भविष्य में अन्यों को उस तरह के त्रासद अनुभव से गुज़रने की यंत्रणा से मुक्ति मिल सकेगी जिस तरह के अनुभव से उसे गुज़रना पड़ा है. उसने यह भी कहा कि वो अपने परिवार जन को या किसी भी नज़दीकी व्यक्ति को वह सब नहीं बताना चाहेगी जो उसको सहना पड़ा है. वह यह भी नहीं चाहेगी कि उसकी बेटी को कभी भी यह पता चले कि उसका जन्म किन हालात में हुआ. और यही वजह है कि उसने अपना नाम गोपनीय रखने का आग्रह किया है.

●●●

जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न  दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, दिनांक 09 जुलाई, 2019 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.


No comments: