Tuesday, January 1, 2019

क्या इंसानी जीवन का कोई मूल्य नहीं है?

नाइजीरिया का वो सरकारी अस्पताल हमारे देश के आम सरकारी अस्पतालों जैसा ही है. कहीं टाइल उखड़ा हुआ है तो कहीं प्लास्टर. गद्दे मैले हैं और हर तरफ़ बदइंतज़ामी का आलम है.  मरीज़ों की भीड़ है. तभी जाने कहां से एक चुस्त-दुरुस्त, चालीसेक बरस का अमीर-सा लगने वाला शख़्स अपनी काले रंग  की शानदार मर्सीडीज़ से निकल कर अस्पताल के वार्ड में दाखिल होता है. उसके साथ चल रहे अमले में से एक आदमी उसके हाथ में कुछ कागज़ थमा देता है और उन कागज़ों पर सरसरी  नज़र डालते हुए वो अपने साथियों से कुछ पूछताछ करता है. उस आदमी का नाम है ज़ील अकाराइवाय और उसके साथियों ने उसे जो  कागज़ थमाये हैं उनमें अस्पताल के उन रोगियों का विवरण है जो ठीक हो चुके हैं और घर जा सकते हैं लेकिन क्योंकि वे अस्पताल का बिल चुकाने में असमर्थ हैं, मज़बूरन वहां पड़े हुए हैं. वैसे नाइजीरिया के कुछ अस्पताल अपने रोगियों को यह सुविधा भी प्रदान करते हैं कि वे अपने बिल का भुगतान किश्तों में कर दें, लेकिन बहुत सारे रोगियों के लिए ऐसा भी करना सम्भव नहीं होता है. ज़ील अकाराइवाय  ऐसे ही एक मरीज़ के पास जाता है, उससे उसके रोग के बारे में पूछता है और  फिर यह जानना चाहता है कि वो अपने अस्पताल के बिल का भुगतान कैसे  करेगा? रोगी हताशा भरी आवाज़ में बस यह कह पाता है:  “मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा हूं!” ज़ील उसे कुछ नहीं कहता है, लेकिन आगे बढ़ते  हुए अपने साथियों में से एक को कुछ इशारा करता है, जिसका आशय यह है कि उसके बिल का भुगतान कर दिया जाए. और इस तरह वह पूरे वार्ड का चक्कर लगाता है, कई रोगियों के बिल का भुगतान करने के निर्देश देता है और अस्पताल से बाहर निकल जाता है. 

ज़ील ने, जो एक फाइनेंसियल कंसलटेण्ट है अपने साथियों को स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं कि किसी भी रोगी को यह पता नहीं चलना चाहिए कि उसके अस्पताल के बिल का भुगतान किसने किया है. वह यह भी नहीं चाहता कि जिन लोगों की उसने मदद की है उनमें से कोई उसके प्रति कृतज्ञ हो. लेकिन हां, वह यह ज़रूर चाहता है कि बाद में कभी कोई इस बात का ज़िक्र ज़रूर करे कि जब वो अस्पताल में भर्ती  था और ज़रूरतमंद था तो कोई आसमानी फरिश्ता आया था और उसने आकर उसके बिल का भुगतान कर दिया था. फरिश्ते वाली बात को ध्यान में रखकर ही ज़ील ने अपने प्रोजेक्ट को नाम दिया है – ‘एंजल प्रोजेक्ट’  यानि फरिश्ता परियोजना. ज़ील ईसाई धर्मावलम्बी है और उसका कहना है कि उसके  धर्म ने ही उसे यह सिखाया है कि हममें से हरेक किसी न किसी की मदद कर सकता है. उसका सोच यह है कि आप जिस आसमानी फरिश्ते का तसव्वुर करते हैं वह तो आपमें ही मौज़ूद होता है. इस एंजल  प्रोजेक्ट के लिए ज़ील के दोस्त और परिवार जन भी उसे आर्थिक सहयोग देते हैं और वह पाई पाई का हिसाब रखता है और उन्हें बताता है कि उनकी दी हुई राशि से उसने किस-किसके कितने बिल का भुगतान किया है. 

ज़ील ने अपने इस प्रोजेक्ट के लिए एक नियम यह बना रखा है कि वह केवल उन रोगियों के बिलों का भुगतान करेगा जो ठीक हो चुके हैं और बिल का भुगतान न कर सकने की वजह से अस्पताल में फंसे हुए हैं. यानि एंजल प्रोजेक्ट रोगियों के इलाज़ के लिए पैसा नहीं देता है. लेकिन बहुत बार ऐसा भी होता है वार्ड का दौरा करते हुए उसे किसी रोगी की करुण कथा कुछ इस तरह मज़बूर कर देती है कि वो खुद अपने बनाये नियम को तोड़कर उसकी मदद करने को विवश  हो उठता है. लेकिन अपनी हर मदद के बाद, चाहे वो ठीक हो चुके रोगी के अस्पताल का बिल चुकाना हो या किसी गम्भीर रोगी के उपचार का खर्चा उठाना हो, ज़ील पहले से ज़्यादा उदास हो जाता है. उदास भी और अपनी सरकार से नाराज़ भी. वो कहता है कि “मात्र यह बात कि मुझ जैसे किसी शख़्स को अस्पताल में बिल का भुगतान न कर पाने की वजह से फंसे पड़े रोगी  की मदद के लिए आगे आना पड़ता है, इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि हमारी व्यवस्था में कितनी नाइंसाफ़ी है. आखिर हम एक मुकम्मिल  स्वास्थ्य बीमा योजना क्यों नहीं लागू कर सकते हैं?” यहीं यह भी जान लेना उपयुक्त होगा  कि नाइजीरिया में मात्र पांच प्रतिशत लोगों को स्वास्थ्य बीमा सुलभ है. कुछ गुस्से और क्षोभ के मिले-जुले स्वरों में ज़ील पूछता है: “हर सप्ताह मैं अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा योजना लागू न होने की वजह  से लोगों को कष्ट  पाते और अपनी जान गंवाते देखता हूं. क्या इंसानी जीवन का कोई मूल्य नहीं है?”   
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न  दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 01 जनवरी, 2019 को इसी  शीर्षक से प्रकाशित आलेेेख का मूल पाठ.    

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