Tuesday, April 21, 2015

सुन्दर होने के फायदे और नुकसान

पिछले दिनों हमारे देश के नेताओं की ज़बान फिसलने के जो बहुत सारे मामले सामने आए उनमें से कई का सम्बन्ध रंग और रूप से भी था. हमारे देश में सामान्यत: गोरे रंग को सौन्दर्य  का  एक ज़रूरी घटक मान लिया जाता है, हालांकि दुनिया के और देशों में इसका उलट भी है. पश्चिमी देशों में जहां गोरा रंग आम है, सौन्दर्य में वृद्धि के लिए सूरज की तेज़ धूप की मदद से टैनिंग कर त्वचा को ताम्बई बना कर सुन्दरता की तरफ क़दम बढ़ाये जाते हैं. यही बात शरीर के दुबले और मोटे होने को लेकर भी है. दुनिया में अगर कहीं खाया पीया होना सुन्दरता का पर्याय माना जाता है और दुनिया के और बहुत सारे देशों के अनुकरण पर पिछले दिनों हमारे देश में भी साइज़ ज़ीरो के प्रति गहरे आकर्षण के भी हम सब गवाह रहे हैं.

सुन्दरता के घटक चाहे जो हों, इतना तै है कि आपका सौन्दर्य आपको बिना मांगे ही बहुत सारे फ़ायदे सुलभ करा देता है. अमरीका की उत्तर कैरोलिना विश्वविद्यालय की दो समाज मनोवैज्ञानिकों लिसा स्लैटरी वॉकर और टोन्या फ्रेवर्ट ने हाल ही में एक अध्ययन कर यह जाना कि व्यक्ति की सुन्दरता उसे बहुत सारे फायदे स्वत: दिला देती है. आप जिनके सम्पर्क में आते हैं वे अनजाने में ही यह मान लेते हैं कि अगर आप सुन्दर हैं तो आपमें कुछ अतिरिक्त प्रतिभा भी होगी ही.  इसे हमारे देश में प्रचलित सत्यं शिवम सुन्दरम  उक्ति के साथ भी मिलाकर देखा जा सकता है. वॉकर और फ्रेवर्ट ने अपने अध्ययन में पाया कि शिक्षण संस्थाओं में भी विद्यार्थियों  की सुन्दरता  उनके शिक्षकों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है और अपने विद्यार्थियों का मूल्यांकन करते हुए वे सुदर्शन विद्यार्थियों के प्रति अधिक उदार रहते हैं.

और जब ये विद्यार्थी शिक्षण संस्थाओं से निकल कर रोज़गार के क्षेत्र में जाते हैं तो उनकी खूबसूरती वहां भी उनके लिए फायदेमन्द साबित होती है.  अधिक आकर्षक लोग कॉर्पोरेट जगत की सीढ़ियां ज़्यादा तेज़ी  से चढ़ते हैं और अधिक पैसा कमाते हैं. अमरीका में एमबीए स्नातकों पर किए गए एक अध्ययन से ज्ञात हुआ कि एक ही समूह में कम और ज़्यादा आकर्षक कार्मिकों के वेतन आदि में दस से पन्द्रह प्रतिशत का फर्क़ था, और इस तरह अधिक आकर्षक कार्मिक अपने पूरे सेवा काल में करीब डेढ करोड़ रुपये ज़्यादा कमाता है.

ज़्यादा और कम सुन्दर के बीच यह भेदभाव और भी बहुत सारी जगहों पर पाया गया. मसलन अदालतों में भी पाया गया कि सुन्दर व्यक्ति को अपेक्षाकृत  मुलायम दण्ड मिला और अगर वकील सुदर्शन था तो वह न्यायालय से अधिक अनुकूल फैसले  करवाने में कामयाब रहा. इन उदाहरणों से, जिनकी पुष्टि हमारे अपने अनुभवों से भी होती है यह माना जा सकता है कि अगर जीवन की अन्य बातें, मसलन आपकी अकादमिक योग्यता आदि समान हो तो आपके व्यक्तित्व का सौन्दर्य आपको कुछ अतिरिक्त फायदे पहुंचाने में सफल रहता है.

लेकिन इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है, जिसकी तरफ  सामन्यत: किसी का ध्यान नहीं जाता है. वॉकर और फ्रेवर्ट का अध्ययन ऐसे भी कुछ प्रकरण सामने लाता है जहां सुन्दरता फायदे की बजाय नुकसान का सौदा साबित होती है. इन प्रकरणों में कुछ में लिंग भेद है और कुछ सबके लिए एक जैसे हैं. ये मनोवैज्ञानिक बताती हैं कि कई बार जब किसी उच्च पद के लिए अधिकारी का चयन किया जाना होता है तो  अधिक सुन्दर प्रत्याशी को यह सोचकर छोड़ दिया जाता है कि वो शायद कठोर निर्णय ले पाने में कम सक्षम साबित हो. एक बहुत मनोरंजक बात इस अध्ययन में यह भी सामने आई कि जब चनयकर्ता और प्रत्याशी समान लिंग वाले यानि स्त्री-स्त्री या पुरुष-पुरुष होते हैं तो वहां चयनकर्ता का ईर्ष्या भाव अधिक आकर्षक प्रत्याशी के प्रतिकूल चला  जाता है. हमारे  यहां भी तो बाबा तुलसीदास कुछ ऐसी ही बात कह गए हैं कि मोहे न नारी नारी के रूपा. पश्चिम की एक ऑनलाइन डेटिंग साइट ओके क्यूपिड का अनुभव भी कुछ-कुछ इसी तर्ज़ पर है. इस साइट ने पाया कि जिन लोगों के प्रोफाइल पिक्चर्स एकदम बेदाग थे उनकी तुलना में उन्हें डेटिंग पार्टनर ज़्यादा आसानी से मिले जिनकी पिक्चर्स ऐसी बेदाग नहीं थी. बताया गया गया कि प्रत्याशियों की एकदम मुकम्मिल छवि से दूसरा पक्ष आतंकित हो जाता है और पहल करने में सकुचाने लगता है. 
इस अध्ययन की  सबसे मज़ेदार किंतु त्रासद बात तो यह है कि ज़्यादा सुन्दर लोगों को  इसलिए कम उम्दा चिकित्सा सुविधा मिल पाती है कि चिकित्सकगण भी उनके रोग को कम गम्भीरता से लेते हैं. शायद वे सुन्दरता को स्वास्थ्य का पर्याय मान बैठते हैं. इस तरह जब सुन्दरता के फायदे और नुकसान दोनों हमारे सामने हैं तो बहुत स्वाभाविक है कि हम यह सोचें कि हमें मदद किससे मिलती है सुन्दरता से, या उसके अभाव से? लेकिन यह सोचने से पहले यह भी तो जानना होगा कि सुन्दरता क्या है!

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लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 21 अप्रेल 2015 को सुन्दर हैं तो जितने फायदे उतने नुकसान शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ. 

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