Wednesday, January 28, 2009

उदयपुर में आयोजित एक महत्वपूर्ण साहित्यिक गोष्ठी की रपट


उदयपुर। पारम्परिकता रेत के शिल्प को शिथिल नहीं कर सकी और जरायमपेशा समाज पर लिखे जाने के बावजूद यह अतिरंजना से बचता है। सुपरिचित आलोचक एवं मीडिया विश्लेषक डॉ. माधव हाड़ा ने भगवानदास मोरवाल के चर्चित उपन्यास रेत के संबंध में कहा कि समाजशास्त्रीयता इस उपन्यास का साहित्येतर मूल्य है। उन्होंने कहा कि अस्मितावादी आग्रहों से परे होने पर भी रेत की संवेदना हाशिये के समाज से इस तरह संपृक्त है कि उसे अनदेखा करना अनुचित होगा। डॉ. हाड़ा ने किस्सा गोई को उपन्यास के शैल्पिक विन्यास की बड़ी सफलता बताया।
साहित्य संस्कृति की विशिष्ट पत्रिका बनास द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी में सुखाड़िया विश्वविद्यालय के डॉ. आशुतोष मोहन ने मोरवाल के तीनों उपन्यासों की चर्चा करते हुए कहा कि हिन्दी उपन्यास अपनी पारम्परिक रूढ़ियों को तोड़कर नया रूप और अर्थवत्ता ग्रहण कर रहा है। डॉ. मोहन ने रेत की तुलना दूसरे अस्मितावादी उपन्यासों से किए जाने को गैर जरूरी बताते हुए इसकी नायिका रुक्मिणी को एक यादगार चरित्र बताया।
संगोष्ठी में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के सह-आचार्य डॉ. मलय पानेरी ने रेत पर पत्र वाचन किया। डॉ. पानेरी ने मोरवाल की लेखन शैली को प्रेमचन्द की कथा धारा का सबाल्टर्न विस्तार बताते हुए कहा कि यह उपन्यास अपने प्रवाह और सन्देश में विशिष्ट है। बनास के सम्पादक डॉ. पल्लव ने कहा कि चटखारा लेने की प्रवृत्ति उपन्यास को कमजोर बनाती है, मोरवाल की प्रशंसा इस बात के लिए भी की जानी चाहिए कि वे ऐसे आकर्षण में नहीं पड़ते।
इससे पूर्व संयोजन कर रहे शोध छात्र गजेन्द्र मीणा ने उपन्यास के कुछ महत्त्वपूर्ण अंशों का वाचन किया। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ समालोचक प्रो. नवलकिशोर ने कहा कि रेत हमारे बीच रहने वाले एक कलंकित समुदाय को मानवीय दृष्टि से समझने की संवेदना हमें देता है। उन्होंने रेत की पठनीयता का कारण उसकी कथावस्तु की नवीनता को बताते हुए कहा कि यह हाशिये के बाहर के एक समाज की जन्मना अभिशापित औरत की जीवनचर्या को सामने लाती है। प्रो. नवल किशोर ने उपन्यास और स्त्री विमर्श के दैहिक पक्ष पर भी विस्तृत टिप्पणी की। चर्चा में जन संस्कृति मंच के संयोजक हिमांशु पण्ड्या, आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास, शोध छात्र नन्दलाल जोशी सहित अन्य पाठकों ने भी भागीदारी की। अन्त में गणेश लाल मीणा ने सभी का आभार व्यक्त किया।

गणेशलाल मीणा
152, टैगोर नगर,
हिरण मगरी से.4,
उदयपुर - 313 002








Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा

2 comments:

pallav said...
This comment has been removed by the author.
pallav said...

AABHAR. PALLAV,UDAIPUR