चिकित्सा विषयक हज़ारों मिथ्स यानि मन-गढंत बातें सदियों से प्रचलित हैं. उन्हें इतनी बार दुहराया गया है कि वे हमें एकदम प्रामाणिक लगने लगी हैं. वर्तमान सूचना क्रांति ऐसी बातों के भण्डार में और भी वृद्धि करती जा रही है. अगणित वेब साइट्स पर ऐसी बहुत सारी जानकारियां, सूचनाएं और सलाहें सर्व सुलभ हैं जिनका कोई उचित आधार नहीं है. ऐसी बहुत सारी बातें फॉर्वर्डेड मेल्स के माध्यम से और भी अधिक प्रसारित होने लगी हैं. हम इन्हें प्रामाणिक मान कर अपनी या औरों की बेशकीमती ज़िन्दगी से निरंतर खिलवाड़ करते रहते हैं. पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय में कैंसर शल्यचिकित्सक और एन बी सी न्यूज़ की चीफ मेडिकल एडिटर डॉ नैंसी एल स्नाइडरमैन ने अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक “मेडिकल मिथ्स देट केन किल यू एण्ड द 101 ट्रुथ्स देट विल सेव, एक्सटेण्ड एंड इम्प्रूव युअर लाइफ” में सात खण्डों में बांटकर ऐसी ही 101 मनगढंत मिथ्स का परीक्षण किया है और हमें एक स्वस्थ जीवन शैली की राह दिखाई है.
स्नाइडरमैन कहती हैं कि ऐसी कुछ बातें मात्र बेहूदा होती हैं और कुछ पर्याप्त हानिप्रद, लेकिन हमें तो सभी पर विचार कर उनको कसौटी पर कसना चाहिए ताकि मिथ और यथार्थ को अलग कर हम अपनी ज़िन्दगी को न केवल बेहतर बना सकें, बल्कि बचा भी सकें. वे एक मिथ का ज़िक्र करती है जो यह सलाह देती है कि हार्ट अटैक के समय ज़ोर-ज़ोर से खांसना चाहिए. स्नाइडरमैन कहती हैं कि इस मिथ का कोई आधार नहीं है और यह सलाह प्राणघातक सिद्ध हो सकती है. एक अन्य मिथ, जो पिछले दिनों फॉर्वर्डेड मेल्स के कारण खूब प्रचारित हुई है यह बताती है कि खाना खाने के साथ या उसके बाद ज़्यादा ठण्डे पानी का प्रयोग कैंसर को बढावा देता है. मिथ के अनुसार, ठण्डा पानी भोजन में शामिल फैट यानि वसा को जमा देता है और जमी हुई फैट पेट की अम्ल से मिलकर कैंसर को बढावा देती है. स्नाइडरमैन के अनुसार यह एकदम बेहूदा मिथ है. ऐसी ही एक मिथ है कि कॉलेस्ट्रॉल घटाने की दवा से लिवर खराब होता है. लेखिका कम से कम आठ गिलास पानी रोज़ पीने वाली सलाह को भी ऐसी ही बेमानी मिथों में गिनती हैं. लेकिन एक दूसरी तरह की मिथ का खण्डन करती हुई वे यह बताना भी नहीं भूलती कि रक्तदान से हृदय रोग होने के खतरे में कमी आती है. इसी तरह वे इस मिथ का भी पुरज़ोर शब्दों में खण्डन करती हैं कि कान का मैल साफ करने के लिए रुई वाली डण्डी (कॉटन स्वाब) का प्रयोग किया जाना चाहिए. वे आगाह करती हैं कि इससे मैल कान में और गहरे धंस सकता है और उसकी परिणति श्रवण क्षमता में कमी में भी हो सकती है. इस मिथ का खण्डन वे एक मिथ बन चुकी मेडिकल सलाह से करती हैं, कि अपने कान में आप कुहनी से छोटी कोई चीज़ न डालें!
किताब में स्नाइडरमैन ने जिन सात मुख्य मिथों की चर्चा की है वे हैं: वार्षिक स्वास्थ्य परीक्षण बेमानी है, टीकाकरण केवल शिशुओं के लिए है, डॉक्टर कोई पक्षपात नहीं करते, हम कैंसर के खिलाफ लड़ाई हार रहे हैं, हृदय रोग और हृदयाघात सिर्फ बूढों को होता है, हर प्राकृतिक चीज़ सुरक्षित होती है, और मानसिक रोगों से छुटकारा आपके अपने वश की बात है. ये सारी मिथें आधारहीन हैं. इन्हीं सात विषयों पर चर्चा करते हुए स्नाइडरमैन ने 101 मिथों की चर्चा व परीक्षा की है. उनकी कुछ सलाहें ध्यान देने योग्य हैं :
-आप अपनी ज़रूरत, स्वास्थ्य और पारिवारिक इतिहास के अनुसार वार्षिक स्वास्थ्य परीक्षण ज़रूर कराएं.
-कोई भी टीका पूरी ज़िन्दगी प्रभावी नहीं रहता. तीस की उम्र के बाद बूस्टर डोज़ ज़रूरी हो जाती है. नए निकले वैक्सीनों की जानकारी भी लेते रहें.
-कैंसर कोई एक बीमारी नहीं, सैंकड़ों बीमारियों के समूह का नाम है. कैंसर के इलाज़ की दिशा अब उसके उपचार से हटकर नियंत्रण की तरफ है.
-हृदय रोग किसी भी उम्र में हो सकता है.
-यह कभी न समझें कि जो प्राकृतिक है, वह सदा ही सुरक्षित है. प्राकृतिक तो तम्बाकू भी है और संखिया भी. ये कहां सुरक्षित हैं? इसके विपरीत, वे बहुत सारी दवाइयां जो प्राकृतिक नहीं हैं, मानवता के लिए जीवन-रक्षक भी सिद्ध हुई हैं.
स्नाइडरमैन जहां ऐसी मिथ्स की बढती संख्या पर चिंतित होती हैं वहीं वे यह कहना भी नहीं भूलती कि बहुत सारी मिथ्स समय के साथ अपने आप नष्ट भी हो जाती हैं. जैसे, पहले यह माना जाता था कि बुखार के लिए कोई दवा नहीं ली जानी चाहिए लेकिन अब कोई ऐसा नहीं मानता. फिर भी, स्नाइडरमैन बहुत ज़ोर देकर यह कहती हैं कि बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में हमारे दो सबसे बड़े दुश्मन हैं अज्ञान और निजी विश्वास. उनका कहना है कि इनसे मुक्ति पाकर हम बीमारियों के खतरों से पूरी तरह मुक्त भले ही न हो पाएं, उस राह पर अवश्य बढेंगे. वे सेल्फ डाइग्नोसिस को बहुत खतरनाक मानते हुए इससे बचने की सलाह देती हैं.
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Discussed book:
Medical Myths That Can Kill You: And the 101 Truths That Will Save, Extend, and Improve Your Life
By Nancy L. Md Snyderman
Published by: Crown
288 pages, Hardcover
US $ 24.95
राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में मेरे नए पाक्षिक कॉलम 'किताबों की दुनिया' के अंतर्गत दिनांक 10 अगस्त 2008 को प्रकाशित आलेख का किंचित विस्तृत रूप.
2 comments:
जानकारी परक लेख
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