हम सोचते हैं कि मानव अधिकांश स्थितियों में बहुत बुद्धिसंगत तरीके से सोचते हैं, खास तौर पर व्यापार के मामलों में या कामकाजी जीवन जैसे मामलों में जहां बुद्दिसंगतता आवश्यक मानी जाती है. शेयर्स के भाव गिरते हैं, फिर भी आप उन्हें बेचने से बचते हैं. लोग मृत रिश्तों को भी ढोते रहते हैं. तमाम खतरों से परिचित होते हुए भी लोग प्रेम करने का दुस्साहस करते हैं. लेकिन ओरी और रोम ब्राफमान कहते हैं कि हम प्राय: बुद्धिसंगत तरीके से नहीं सोचते. अपनी नई किताब स्वे: द इर्रेसिस्टिबल पुल ऑफ इर्रेशनल बिहेवियर में ये ब्राफमान भ्राता, एक व्यापारी और दूसरा मनोवैज्ञानिक, इसी विधा की बहुचर्चित किताबों फ्रीकोनोमिक्स और ब्लिंक (दोनों किताबों की चर्चा इस कॉलम में की जा चुकी है) के विमर्श को आगे बढाते हुए एक बार फिर से मानव मन की अतल गहराइयों में उतर कर उसकी अतार्किकता की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं. मनुष्य के इसी इर्रेशनल यानि अतार्किक व्यवहार को उन्होंने स्वे करना कहा है, यानि डिगना, झूलना, झुकना.
ब्राफमान भ्राताओं ने अपनी किताब की शुरुआत एक प्रभावशाली उदाहरण से की है. 1977 में के एल एम का एक वायुयान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, जिसमें उसके 584 यात्री मारे गए थे. इस दुर्घटना को उडान इतिहास की भीषणतम दुर्घटना के रूप में स्मरण किया जाता है. लेखकों ने विश्लेषण करके बताया है कि रास्ता बदले जाने के बाद पायलट अपनी मंज़िल पर पहुंचने के बारे में इतना अधिक फोकस्ड था कि वह एक नितांत बेतुके निर्णय की तरफ स्वे कर गया जिसकी परिणति इस हादसे में हुई. किताब का प्रत्येक अध्याय किसी दिलचस्प विचार से प्रारम्भ होता है, और फिर कुछ ऐसी चर्चा की जाती है जो पहली नज़र में अतार्किक लगती है, लेकिन लेखक के विश्लेषण के बाद आप खुद सोचते हैं कि बात तो ठीक है.
सामाजिक मनोविज्ञान, व्यवहारवादी अर्थशास्त्र और संगठनात्मक व्यवहार के क्षेत्र में हुई नवीनतम शोधों के आधार पर हमारे जीवन के विविध क्षेत्रों के जिन महत्वपूर्ण स्वे’ज़ की चर्चा इस किताब में की गई है वे ये हैं:
-प्राय: हम सम्भावित नुकसानों के प्रति ज़रूरत से ज़्यादा रिएक्ट कर जाते हैं और दूरगामी परिणामों की बजाय निकटगामी परिणामों पर अधिक केन्द्रित रहते हैं.
-कोई नुकसान जितना ही ज़्यादा अहम होता है हम उसके प्रति उतने ही विमुख रहते हैं यानि हम यह दिखाते हैं कि वह नुकसान हमें अधिक प्रभावित नहीं कर रहा.
-हम प्रतिबद्धता के व्यापक सम्मोहन से ग्रस्त रहते हैं. जब हम किसी रिश्ते, निर्णय या जीवन की स्थिति से लगाव महसूस करते हैं तो हमारे लिए यह बहुत मुश्किल होता है कि हम बेहतर उपलब्ध विकल्पों पर नज़र भी डालें.
-मनुष्यों में एक प्रवृत्ति यह होती है कि वे किसी व्यक्ति या वस्तु पर कुछ खास गुण आरोपित कर लेते हैं और ऐसा करते हुए अक्सर तथ्यों की अनदेखी कर जाते हैं. इसी को मूल्य आरोपण कहा जाता है.
-मनुष्यों में एक और प्रवृत्ति यह होती है कि आरम्भिक राय के आधार पर व्यक्तियों, वस्तुओं या विचारों पर लेबल लगा लेते हैं और फिर उस लेबल पर पुनर्विचार नहीं करते. इसे निदान का पूर्वाग्रह कहा जाता है.
-हम लोग दूसरों को डिगाते रहते हैं और दूसरों के कारण खुद भी डिगते रहते हैं. लेखकों ने इसे गिरगिटी प्रभाव नाम दिया है.
-लोग साफ सुथरा व्यवहार करना चाहते हैं और दूसरों से भी ऐसी ही आशा रखते हैं.
- हम किसी काम को या तो स्वार्थ की निगाह से परखते हैं या परोपकार की निगाह से. लेकिन एक साथ दोनों निगाहों से कभी नहीं देखते.
-समूह हमारी तर्क क्षमता को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं.
किताब के अंत में लेखक ने ऐसी अनेक युक्तियां सुझाई हैं जिनके प्रयोग से हम अपने बेतुके व्यवहार –या स्वे- पर काबू पा सकते हैं. लेकिन ये युक्तियां प्रभावी हो सकती हैं या नहीं, यह आपके नज़रिये पर निर्भर करता है. मुझे तो लगा कि ज़्यादातर युक्तियां नितांत सरलीकृत उपदेश हैं. जैसे, लेखक कहते हैं कि अपने बिगडे सोच पर, जो कि मूल्य आरोपण की परिणति होता है, पार पाने के लिए आप चीज़ों को उस रूप में देखें जैसी कि वे असल में हैं, न कि जैसी दिखाई देती हैं. सिद्धांतत: बात ठीक है, लेकिन इस पर अमल कितना सम्भव है? फिर भी, अगर इस तरह के आदर्शीकृत सुझावों की बात अलग छोड दें तो किताब की महता असंदिग्ध है, इसलिए कि इसके माध्यम से हम मानवीय व्यवहार को और अधिक बारीकी से समझ पाते हैं, अपने तथा औरों के अतार्किक व्यवहार की तह में जा सकते हैं और उसके प्रति अधिक सदय तथा सम्वेदनशील हो सकते हैं. इतना भी कम नहीं है.
◙◙◙
Discussed book:
Sway: The Irresistible Pull of Irrational Behaviour
By Ori Brafman & Rom Brafman
Published by: Doubleday Business
Hardcover, 224 pages
US $ 21.95
1 comment:
आदरणिय अग्रवाल जी, सादर प्रणाम!
आपका पत्र श्री भादानी जी के बारे में पढ़ा। समाज विकास इस बार का नया अंक "साहित्य संगम विशेषांक" के रूप में छपा है। इस अंक में श्री भादानी जी, श्री सीताराम महर्षि, व श्री अम्बू शर्मा के बारे में जानकारी दी गई है। आप अपना पता मुझे निम्न पते पर मेल कर देगें तो आपको डाक द्वारा भेज दूँगा।
आपका ही
शम्भु चौधरी
ehindisahitya@gmail.com
Post a Comment