स्टार ट्रैक के स्क्रिप्ट लेखक और स्टीफेन हॉकिंग की बहु चर्चित पुस्तक ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ के सह लेखक के रूप में सुविख्यात लिओनार्ड म्लोदिनोव की नई किताब द ड्रंकर्ड्स वॉक: हाउ रैण्डमनेस रूल्स अवर लाइव्ज़ यह बताती है कि हमारी ज़िन्दगी में संयोगों और आकस्मिकता की क्या अहमियत है. खुद म्लोदिनोव एक विश्वविद्यालय में भावी वैज्ञानिकों को रैण्डमनेस यानि बेतरतीबी के बारे में पढाते हैं. किताब बहुत दिलचस्प तरीके से हमें इस बात का एहसास कराती है कि दुनिया किस तरह चलती है, और इस बारे में हम जो जानते हैं, वह कितना अल्प है. इस किताब में म्लोदिनोव गुज़रे समय के महानतम लोगों से लगाकर आज के मामूली लोगों तक की ज़िन्दगी और क्रिया कलाप के अनेक प्रसंग सामने लाकर हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बेतरतीबी या आकस्मिकता, संयोग और सम्भाव्यता की भूमिका को उजागर करते हैं और यह बताते हैं कि कैसे एक साधारण बातचीत या किसी बडी आर्थिक क्षति- इन सबकी अहमियत को हम ग़लत तरह से ग्रहण करते हैं.
दर असल ड्रंकर्ड्स वॉक एक गणितीय अभिव्यक्ति है जो किसी तरतीब हीन गति को अभिव्यक्त करती है. इस अभिव्यक्ति को अपनी किताब का शीर्षक बना कर लेखक म्लोदिनोव ने कहना चाहा है कि हमारी ज़िन्दगी का अधिकांश पहले से केवल उतना ही पूर्वानुमेय होता है जितना किसी मधुशाला से ताज़ा-ताज़ा निकले लडखडाते आदमी के क़दम. यानि किसी शराबी के कदमों का बहुत कम पूर्वानुमान लगाया जा सकता है.
म्लोदिनोव अपनी किशोरावस्था को याद करते हैं और कहते हैं कि वे मोमबत्तियों की पीली लौ को बेतरतीबी से हिलते-डुलते देखा करते थे. तब वे सोचते कि मोमबत्तियों की लौ की हलचल में निश्चय ही कोई तार्किक क्रम होता है और वैज्ञानिक ज़रूर ही उस क्रम को समझ सकते होंगे. लेकिन उन्हीं दिनों उनके पिता ने उनसे कहा कि ज़िन्दगी ऐसी नहीं होती. कई बार बहुत कुछ ऐसा घट जाया करता है जिसकी पहले से कल्पना नहीं की जा सकती. खुद उनकी ज़िन्दगी का एक वाकया इस बात की पुष्टि करता है.
म्लोदिनोव के पिता एक नाज़ी यातना शिविर में क़ैद थे. जब भूख असहनीय हो गई तो उन्होंने एक बेकरी से डबल रोटी चुरा ली. बेकरी के मालिक और गेस्टापो ने मिलकर सारे संदिग्धों को एक क़तार में खडा कर पूछा कि डबलरोटी किसने चुराई है. जब किसी ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया तो उन्होंने सैनिकों को हुक्म दिया कि वे इन लोगों को एक-एक करके उस वक़्त तक शूट करते रहें जब तक कोई अपना अपराध स्वीकार न कर ले या सारे ही मर न जाएं. ऐसे में दूसरों की जान-बचाने के लिए म्लोदिनोव के पिता आगे आए. बाद में उन्होंने अपने बेटे से कहा कि उन्होंने किसी महानता की वजह से ऐसा नहीं किया. इसलिए किया कि मरना तो हर हाल में था: ज़ुर्म कुबूल करके भी, चुप रहके भी. पिता को बेकरी वाले ने एक अच्छी नौकरी पर अपने सहायक के तौर पर रख लिया. पिता ने म्लोदिनोव से कहा कि यह सब संयोग नहीं तो और क्या था? अगर ऐसा न होकर कुछ भी और हुआ होता तो तुम्हारा जन्म ही नहीं हुआ होता. यानि तुम्हारे जन्म में तुम्हारी तो कोई भूमिका नहीं थी. इसी क्रम को आगे बढाते हुए खुद म्लोदिनोव ने सोचा कि उन्हें तो अपने होने के लिए हिटलर का आभारी होना चाहिए क्योंकि जर्मनों ने उनके पिता की पत्नी और दो बच्चों को मारकर उनकी पिछली ज़िन्दगी की स्लेट को पोंछ दिया था. अगर युद्ध न हुआ होता और उनके पिता ने न्यूयॉर्क पलायन न किया होता तो म्लोदिनोव की मां से उनकी मुलाक़ात ही न हुई होती. और तब उनके दो भाइयों का जन्म ही न हुआ होता.
निजी अनुभवो से हटकर एक सार्वजनिक प्रसंग के माध्यम से भी म्लोदिनोव यही बात कहते हैं. वे कहते हैं कि आज जे के रॉलिंग की हैरी पॉटर की लोकप्रियता असन्दिग्ध है. लेकिन प्रकाशकों ने इसे एक-दो नहीं पूरे नौ बार अस्वीकृत किया था. हम हिन्दुस्तानी चाहें तो अमिताभ बच्चन के शुरुआती दौर को भी याद कर सकते हैं जब उनकी आवाज़ और कद काठी को अस्वीकार किया गया था. इसीलिए म्लोदिनोव कहते हैं कि किसी फिल्म की सफलता-असफलता ऐसे बहुत सारे तत्वों पर निर्भर करती है जिन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं होता.
यही वजह है कि म्लोदिनोव कहते हैं कि हमारी ज़िन्दगी की रूपरेखा तो मोमबत्ती की लौ की मानिन्द होती है. बहुत सारी आकस्मिक घटनाएं, जैसे हवा के झोंके, उस लौ को अनेकानेक दिशाओं की तरफ धकेलती हैं और उनके मुक़ाबिल खुद लौ का अस्तित्व उसका भविष्य तै करता है. इसलिए न तो ज़िन्दगी की दिशा और उसकी गति की कोई व्याख्या की जा सकती है और न उसका पूर्वानुमान किया जा सकता है.
म्लोदिनोव कहते हैं कि ऐसी तमाम अनिश्चितताओं के बीच समझदारीपूर्ण निर्णय करना और सही विकल्प चुनना खास तरह की दक्षता की मांग करता है, और दूसरी सारी दक्षताओं की तरह इस दक्षता को भी अनुभव व श्रम से निरंतर विकसित किया जा सकता है. लेकिन, याद रखें, ज़िन्दगी के खेल में भले ही कुछ खिलाडी दूसरों से बेहतर हों, उनकी हार-जीत में रैण्डमनेस की भूमिका सर्वोपरि होती है.
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Discussed book:
The Drunkard’s Walk: How Randomness Rules Our Lives
By Leonard Mlodinow
Published by Pantheon
Hardcover, 272 pages
US $ 24.95
राजस्थान पत्रिका के नगर परिशिष्ट जस्ट जयपुर में मेरे साप्ताहिक कॉलम वर्ल्ड ऑफ बुक्स के अंतर्गत 17 जुलाई, 2008 को प्रकाशित.
5 comments:
"...याद रखें, ज़िन्दगी के खेल में भले ही कुछ खिलाडी दूसरों से बेहतर हों, उनकी हार-जीत में रैण्डमनेस की भूमिका सर्वोपरि होती है...."
तो इसे क्या कहें -? तकदीर ? ईश्वरेच्छा? ... और शायद तभी ईश्वर के दरबार में भक्तों की भीड़ लगी रहती है... इसी रेंडमनेस को अपने फेवर में करने-करवाने हेतु...
आपने एकदम सही पकड़ा है रवि भाई.
ज़िन्दगी के खेल में भले ही कुछ खिलाडी दूसरों से बेहतर हों, उनकी हार-जीत में रैण्डमनेस की भूमिका सर्वोपरि होती है.
सही है........
रैण्डमनेस की भूमिका सर्वोपरि होती है- मगर उसके लिए भी सिर्फ तकदीर के भरोसे उदासीन नहीं बैठा जा सकता-आपको खेल में तो पूरी लगन से शामिल होना होगा तब ही रैण्डमनेस की भूमिका आयेगी.
तमाम अनिश्चितताओं (रेंडमनेस) के बीच समझदारीपूर्ण निर्णय करना और सही विकल्प चुनना ही कामयाबी का राज है.
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