Saturday, February 2, 2008

बीस साल बाद (व्यंग्य)


सन् 2025 के किसी रविवार की खुशनुमा शाम ! घर में हम दो ही. बच्चे तो वैसे भी बरसों से दूर ही हैं. और यों, रिश्ते में ही बच्चे हैं वे, वरना तो बाल उनके भी सफेद हो चले हैं. पत्नी का मन खाना बनाने का नहीं था तो सोचा कि किसी रेस्तरां से ही कुछ मंगवा लिया जाए. खयाल आया कि सुबह ही अखबार में शहर में एक नए खुले रेस्तरां की धुंआधार तारीफ पढ़ी थी. पहले कई दिन तक इसके आकर्षक विज्ञापन भी मेरा ध्यान खींचते रहे थे. अखबार उठाया, पन्ने पलटे, रेस्तरां का फोन नम्बर देखा और अपने मोबाइल पर वह नम्बर डायल किया.

उधर से एक सुरीली आवाज़ आई, "नमस्कार. रेस्तरां को फोन करने के लिए धन्यवाद. हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं?" ऐसी चाशनी में पगी आवाज़ें आजकल आम हैं. आप किसी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान को फोन करें, फोन में से रस धारा ही बहने लगती है. अब इसका कोई असर भी मुझ पर नहीं होता. मैंने बात को आगे बढ़ने का मौका न देते हुए कहा, " मैं, ऑर्डर देना चाहता हूं." "कृपया अपना कार्ड नम्बर बोलिये"- उधर से घुंघरू खनके. मुझे पहले से पता था. वैसे अब मेरी ज़रूरतें इतनी सीमित हो गई हैं कि बहुत ज़्यादा फोन नहीं करता. लेकिन आजकल कहीं भी फोन कीजिए, यही पूछा जाता है.

जवाब दिया, " जी मेरा नम्बर है नौ तीन शून्य पांच सात दो आठ चार एक सात शून्य तीन दो सात पांच" और मैं आखिरी वाले पांच का च पूरा करूं-करूं, उससे पहले ही उधर से फिर घण्टियां बजीं : " नमस्कार डॉ अग्रवाल! ई- दो बटा दो सौ ग्यारह, चित्रकूट. आपका घर का फोन नम्बर है तीन पांच सात..., दूसरा फोन नम्बर है दो चार आठ... लेकिन इस वक़्त आप अपने मोबाइल से हमें फोन कर रहे हैं, वैसे आपकी पत्नी के पास भी एक मोबाइल है, जिसका नम्बर है...." भद्र महिला इस पुराण को आगे बढ़ातीं इतना धैर्य मेरी जिज्ञासा वृत्ति को मंज़ूर नहीं था. "मेरे बारे में इतनी सारी जानकारियां आपके पास...?"

"हमारे कम्प्यूटर में है यह सब डॉ अग्रवाल." संतूर के तार झंकृत हुए. मुझे आश्चर्य भी नहीं हुआ. आखिर छोटे-से मोबाइल पर भी तो ढेर सारी सूचनाएं आ जाती हैं.

"मैं मसाला डोसा ऑर्डर करना चाहता हूं."

"मत कीजिए!" उधर से आवाज़ आई, गोया किसी ने कंकड़ मारा हो.

"क्यों?"
"हमारा कम्प्यूटर रिकार्ड बताता है कि आपकी उम्र इस समय 82 साल है, आपको हाई ब्लड प्रेशर रहता है, जिसके लिए आप रोज़ दस मिलीग्राम की होपकार्ड लेते हैं, आपका कॉलेस्ट्रॉल लेवल भी बढ़ा हुआ है; तीन साल पहले आपको हार्ट अटैक भी हो चुका है."

"फिर मुझे क्या ऑर्डर करना चाहिये?"

"बेहतर हो आप बेक्ड सलाद डोसा ऑर्डर करें." स्वर में एक ऐसी निश्चयात्मकता थी जो मुझे अच्छी नहीं लगी. आखिर कह ही दिया, "आप सुझा नहीं रही, मेरी तरफ से जैसे आदेश ही दे रही हैं."

देवी जी के पास इसका भी जवाब मौज़ूद था. "आपने दस दिन पहले ही केंद्रीय लाइब्रेरी से चिकनाई रहित पकवानों के किताब इश्यू करवाई थी. उसी से हमें लगा कि आप यह डिश पसन्द करेंगे."

मैं कह भी क्या सकता था सिवा इसके कि "ठीक है, आप मुझे दो बेक्ड सलाद डोसे भिजवा दें. कितना देना होगा?"

कोयल कूकी : "हां श्रीमती अग्रवाल और आपके लिए ये दो डोसे पर्याप्त होंगे. इनका मूल्य होगा ग्यारह सौ अट्ठाइस रूपये."

"धन्यवाद! मैं यह भुगतान अपने क्रेडिट कार्ड से कर दूंगा."

जवाब में उधर की आवाज़ में कुछ और गाढ़ी चाशनी घुली, " जी नहीं. आपको नकद भुगतान करना होगा. आप इस महीने की अपनी क्रेडिट कार्ड लिमिट पहले ही क्रॉस कर चुके हैं, और इस
महीने तो आपको अपना क्रेडिट कार्ड रिन्यू भी करवाना था, जो आपने अभी तक करवाया नहीं है."

"तो ठीक है. मैं ऐसा करता हूं कि आपके डिलीवरी ब्वाय के आने से पहले नज़दीक के एटीएम से पैसे निकाल लाता हूं."

"हमारा कम्प्यूटर बताता है कि आपका खाता यूटीआई बैंक में है और उसके एटीएम से एक दिन में जितनी रकम निकाली जा सकती है उतनी आप आज सुबह ग्यारह बज कर दो मिनिट पर निकाल चुके हैं." कोयल के गले की मिठास थोड़ी कम होने लगी थी. आवाज़ भावहीन तो थी ही.
"आप फिक़्र न करें. डोसे भिजवा दें. मेरी पत्नी के पर्स में इतने रुपये हैं. कितनी देर में भिजवा देंगी?" दरअसल पत्नी सारी बात सुन रही थी, उसी ने इस बीच अपने पर्स की तरफ इशारा कर मुझे प्रेरित किया था यह कहने को.
"ठीक सैंतालीस मिनिट लगेंगे. लेकिन अगर आपको जल्दी है तो आप अपनी वैगन आर में आकर ले जाएं.."

"क्या...!"

"जी, हमारा कम्प्यूटर कहता है कि आपके पास आर जे 14 छह सी 1742 नम्बर की 2001 मॉडल की सफेद वैगन आर है, और यह कल ही गैरेज से सर्विस होकर आई है."

मैं तो अवाक था. क्या कुछ ऐसा भी है जो इनके कम्प्यूटर को पता न हो!

"कोई और सेवा सर?" कोयल के गले में फिर से मिश्री घुलने लगी थी. उसी का फायदा मैंने उठाया. "मैम, क्या आप हमें डोसे के साथ फ्री कोक कैन भी भिजवाएंगी? आपके किसी एड में इसका ज़िक्र था."

"हाँ, आप सही कह रहे हैं डॉ अग्रवाल, लेकिन हमारा कम्प्यूटर कहता है कि आपको तो डायबिटीज़ भी है. इसलिए हम केवल एक कैन ही भिजवाएंगे, श्रीमती अग्रवाल के लिए."

मेरा गुस्सा अपनी हद पार कर रहा था. क्या इनसे मेरा कुछ भी पोशीदा नहीं है? इन्हें मेरी सारी ज़िन्दगी का ब्यौरा रखने का हक़ दिया किसने? गुस्सा तो मुझे कुछ इतना था कि मैं मोबाइल को ज़मीन पर ही पटक डालता, लेकिन उसकी कीमत के खयाल से किया इतना कि बहुत ज़ोर से ऑफ मात्र किया.

मुश्क़िल से दो-एक पल गुज़रे होंगे कि मेरा मोबाइल फिर से घनघनाया. स्क्रीन पर उसी रेस्तरां का नाम चमक रहा था. अब क्या हुआ? जलतरंग बजी. "सर, आपने बहुत गुस्से में अपने मोबाइल को ऑफ किया है. आप हमारे बहुत सम्मानित ग्राहक है, इसलिए हम आपको कहना चाहेंगे कि इस उम्र में इतना गुस्सा आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है. हमारा कम्प्यूटर बताता है कि तीन साल पहले आपको जो हार्ट अटैक हुआ था वह भी इसी तरह से गुस्सा होने की वजह से हुआ था. हैव अ नाइस डे सर, एण्ड टेक केयर !"

हद्द है. मैं अपने मोबाइल पर भी अपना गुस्सा नहीं उतार सकता. सोचने लगा, यह हाई टैक ज़माना अच्छा है या मेरी जवानी के दिनों का वह ज़माना अच्छा था जब नुक्कड का पान वाला मेरे बारे में सिर्फ उतना ही जानता था जितना कि उसके और मेरे रिश्तों को बनाये रखने के लिए पर्याप्त था. मसलन, "बहुत दिनों से दिखाई नहीं दिए, कहीं बाहर गये थे क्या?" या "आजकल भाभीजी बच्चों के पास गई हुई लगती हैं." वह ये बातें इसलिए कहता था कि सीधे यह कहना ठीक नहीं होता कि आप छह दिन से सिगरेट पीने नहीं आए या एक महीने से मीठा पान नहीं ले गए. वह मेरी निजी ज़िन्दगी में तो कोई दखल नहीं देता था. इस नई तकनीक ने तो मुझे एकदम ही नंगा करके रख दिया है.मेरा कुछ भी तो नहीं है जो इन व्यापारियों के कम्प्यूटर की खोजी निगाहों से छिपा हो.

मन को दूसरी तरफ ले जाने को अपना रेडियो ऑन करता हूं.

गीत आ रहा है : "कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन!"






3 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

बढ़िया व्यंग्य लिखा है अग्रवाल जी. लेकिन इसे बीस साल बाद की बात न कह कर आज की ही बात कहते तो मुफ़ीद होता. क्योंकि यह सब आजकल ही हो रहा है. सारी गोपनीय जानकारियां बेच चुके हैं कम्पनी वाले क्रेडिट कार्ड वालों को और क्रेडिट कार्ड वाले काल सेंटर वालों को और काल सेंटर वाले.... उफ़ छोड़िये भी. लेख के लिए बधाई!

mamta said...

:)

abhishek said...

बधाई, बहुत बढ़िया विग्यान गल्प,,, शायद आने वाले तीन चार सालों में सत्य हो जाएगा। अभी भी कई लोग डाटाबेस तो तैयार कर ही रहे हैं, अच्छी रचना है कहीं पर प्रकाशन के लिए भी भेंजे....
सादर