अगर आप याददाश्त पर थोड़ा ज़ोर डालें और
किसी उम्दा वाद विवाद प्रतियोगिता के अपने अनुभवों को फिर से याद करें तो पाएंगे
कि जब आप पक्ष के वक्ता को सुन रहे थे तो आपको लग रहा था कि वह एकदम सही कह रहा है, लेकिन
जब विपक्षी वक्ता बोलने को खड़ा हुआ और उसने अपने तर्कों से पिछले वक्ता के
तर्कों का खण्डन किया तो आपको लगा कि अरे, सही बात तो अब यह कह रहा
है! यानि दोनों के तर्क इतने वज़नदार कि उनमें से प्रत्येक को सुनते हुए आपको लगे कि सच बात तो केवल यही कह रहा है. मेरे
साथ हाल में ऐसा ही हुआ. हुआ यह कि रूस के एक स्कूल ने अपनी छब्बीस वर्षीया
अध्यापिका को नौकरी से निकाल दिया. उन पर आरोप लगाया गया कि उनके एक कृत्य की वजह
से स्कूल और खुद उनके पेशे को बदनामी का शिकार होना पड़ा है. कृत्य यह था कि उक्त
अध्यापिका ने मॉडलिंग वाली तैराकी की पोशाक पहन कर एक फोटो खिंचवाई और उस फोटो को इंस्टाग्राम
पर पोस्ट कर दिया. यह बात अलग है कि जैसे ही उस पर विवाद हुआ, उन्होंने वह फोटो
वहां से हटा ली.
लेकिन जैसे ही विक्टोरिया
पोपोवा नामक उस अध्यापिका को उनके स्कूल ने नौकरी से निकाला, रूस में, और दुनिया के अन्य
देशों में भी उनके समर्थन में और स्कूल के इस निर्णय के विरोध में आवाज़ें उठने
लगीं. अब तक कोई तीन हज़ार लोग तैराकी की पोशाक पहन कर “अध्यापक भी इंसान होते हैं”
हैशटैग के साथ अपनी तस्वीरें पोस्ट कर चुके हैं. विक्टोरिया के समर्थन में
टिप्पणियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं. एक भद्र महिला ने उन्हें नौकरी से निकालने के इस फैसले को
“पाखण्ड,
मूर्खता
और पागलपन का उग्र नमूना” कहा है. उन्होंने यह भी लिखा है कि “माना कि हम लोग अध्यापक हैं, लेकिन हम भी इंसान
हैं और इसलिए हमें भी यह अधिकार है कि हम विद्यालय परिसर के बाहर और सोशल मीडिया
पर अपनी तरह से जिएं.” एक और व्यक्ति ने अपनी प्रतिक्रिया में स्कूल प्रशासन के इस
फैसले को “पूरी तरह मूर्खताभरा” कहा तो एक बुज़ुर्ग ने अतीत को याद करते हुए और
स्कूल प्रशासन के फैसले की लानत-मलामत करते हुए लिखा कि “एक समय ऐसा भी था जब हमें इस तरह के बेहूदा
तर्कों से अपना बचाव करने की ज़रूरत नहीं पड़ा करती थी.” एक अन्य महिला ने इंस्टाग्राम पर यह कहते हुए
विक्टोरिया के साथ अपनी एकजुटता ज़ाहिर की कि “मैं अपनी अध्यापिका साथी का समर्थन
करती हूं और चाहती हूं कि हमारे देश को इस तरह की बेहूदगी से निजात मिले.” इसी तरह
अन्य बहुतों ने स्कूल प्रशासन के फैसले की कड़ी निंदा की और विक्टोरिया के कृत्य को
एक इंसान के तौर पर उनका स्वाभाविक अधिकार
मानते हुए उचित ठहराया.
जहां आम तौर पर अधिकतर
लोगों ने विक्टोरिया के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलंद की, वहीं समाज का एक छोटा-सा
हिस्सा ऐसा भी रहा जिसने विक्टोरिया के इस कृत्य को उचित नहीं समझा. विक्टोरिया के
समर्थन में तैराकी की पोशाक में अपनी तस्वीरें पोस्ट करने वालों-वालियों की खबर
लेते हुए एक ने लिखा है कि “इन्हें तो असल में तैराकी की पोशाक पहन कर खुद को दिखाने के लिए किसी बहाने की तलाश
थी.” एक और महिला ने इसी तर्क को आगे
बढ़ाते हुए समर्थन के रूप में तैराकी की पोशाक पहन कर अपनी तस्वीरें प्रकाशित
करवाने वाली महिलाओं की आलोचना करते हुए कहा कि “खुद अपने कपड़े उतारने से बेहतर यह
होता कि ये महिलाएं सीधे उन लोगों से बात करतीं जिन्होंने विक्टोरिया को नौकरी से
निकाला है.” एक अध्यापिका ने लिखा कि “यह बात सामान्य नहीं है. माना कि शिक्षक भी
इंसान होते हैं,
लेकिन
उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे समाज को राह दिखाते हैं.” उन्होंने अपनी बात को
आगे बढ़ाते हुए कहा कि “हां, मैं मानती हूं कि हममें से हरेक का निजी जीवन भी
होता है. लेकिन वह वास्तव में निजी और व्यक्तिगत ही होता है. आपको कैसा लगेगा अगर
निजी जीवन के नाम पर कोई अध्यापक स्कूल के पिछवाड़े जाकर शराब पीने लगे या नशा करने
लगे या फिर औरों के साथ मार-पीट करने लगे! उन्हें यह भी करने दीजिए! आखिर वे भी तो
इंसान हैं!” ज़ाहिर है कि वे विक्टोरिया के समर्थकों द्वारा दिये गए तर्कों की खिल्ली
उड़ा रही थीं.
क्या आपको नहीं लगता है कि
दोनों पक्षों के तर्क अपनी-अपनी जगह सही है!
आप सोचें, लेकिन यह भी जान
लें कि इसी बीच सरकार ने एक बयान ज़ारी कर कहा है कि सुश्री विक्टोरिया उसी या किसी
अन्य विद्यालय में पढ़ाना ज़ारी रख सकती हैं. लेकिन विक्टोरिया के लिए अब अन्य
विकल्प भी खुल गए हैं. एक मॉडलिंग एजेंसी ने भी उन्हें आमंत्रित कर लिया है.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 26 जून, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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