Tuesday, February 13, 2018

अब कनाडा के राष्ट्रगान में केवल बेटे नहीं बेटियां भी शामिल!

आखिर सन 2018 की जनवरी में कनाडा की सीनेट ने वह बिल पास कर ही दिया जिसके लिए लिए वहां के समझदार लोग करीब चार दशकों से अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे थे. इस बिल के पास हो जाने से अब कनाडा का राष्ट्रगान केवल पुरुष पक्षी न रहकर उभयपक्षी या जेंडर न्यूट्रल हो जाएगा. कनाडा का राष्ट्रगान मूलत: 1880 में रचा गया था, लेकिन राष्ट्रगान का दर्ज़ा पाने में इसे एक शताब्दी का सफर तै करना पड़ा था. तब तक गॉड सेव द किंग ही कनाडा का भी राष्ट्रगान बना रहा. इस नए गीत की शुरुआती पंक्तियां हैं: ओ कनाडा!अवर होम एण्ड नेटिव लैण्ड! / ट्रु पैट्रियट लव इन आल दाई  सन्स  कमाण्ड. सन 1997 में पचास वर्षीया फ्रांसिस राइट का ध्यान इन पंक्तियों पर गया और उन्हें यह बात अखरी कि इस गान में केवल बेटों का ही ज़िक्र क्यों है, बेटियों का क्यों नहीं? कुछ अन्य की शिकायत अवर होम एण्ड नेटिव लैण्ड से भी थी, विशेष रूप से उनकी जो कहीं अन्यत्र से आकर कनाडा वासी हो गए थे. लेकिन ज़्यादा ज़ोर इसके केवल बेटों को याद करने वाले  शब्दों पर ही था. 1998 में जब विवियन पॉय नामक एक पूर्व फैशन डिज़ाइनर सीनेट में पहुंची तब सीनेट की करीब आधी सदस्य स्त्रियां थीं. स्वभावत: उनमें से बहुतों को भी गीत के इन शब्दों पर गम्भीर आपत्ति थी. पॉय ने एक हस्ताक्षर अभियान शुरु किया जिसमें उनका सक्रिय साथ दिया उक्त फ्रांसिस राइट ने.

उन दिनों की याद करते हुए राइट ने कहा कि वो ज़माना सोशल मीडिया का तो था नहीं. उनका अभियान हिचकोले खाता हुआ ही चला. एक एक हस्ताक्षर जुटाने के लिए उनें कड़ी मेहनत करनी पड़ी, फिर भी बमुश्क़िल चार पांच सौ हस्ताक्षर ही जुट सके. कुछ परम्परा प्रेमी लोग उनसे यह कहते हुए ख़फ़ा भी हुए कि “अरे भाई, यह गान ठीक ही तो है. इसमें बदलाव की ज़रूरत ही क्या है?” लेकिन क्योंकि पॉय और राइट को इस तरह की प्रतिक्रियाओं की पहले से उम्मीद थी, वे हताश  नहीं हुईं. वे यह बात समझती थीं  कि आखिर जिस गान को 3.6 करोड़ लोग इतने समय से गा रहे हैं, उसमें किसी भी बदलाव के लिए उन्हें तैयार करना कोई बच्चों का खेल तो है नहीं. पॉय ने जब इसमें बदलाव के वास्ते प्राइवेट मेम्बर्स बिल पेश किया तो उन्हें तो यहां तक सुनना पड़ा कि अगर गान के शब्दों में बदलाव करना ही है तो इसमें सिर्फ औरतों को क्यों जोड़ा जाए, समाज के अन्य तबकों जैसे मछुआरों, बैंक कर्मियों, सॉफ्टवेयर इंजीनियरों वगैरह को भी क्यों न जोड़ दिया जाए! ज़ाहिर है कि बहुत सारे लोग बदलाव की मांग को तर्क संगत नहीं  मानते थे. इसके बावज़ूद दिसम्बर 2003 में यह आस बंधी कि शायद यह बिल पास हो जाए, लेकिन तब एक पुरुष सीनेटर ने अपने अहं के चलते इसे पास होने से रुकवा दिया.

लेकिन पॉय ने हार नहीं मानी. उन्हें 63 वर्षीया नैंसी रुथ का साथ मिला, जो कुछ मानों में कनाडा की राजनीति में एक विवादास्पद नेता भी मानी जाती हैं. वे एक जानी-मानी सीनेटर हैं, स्त्रीवादी हैं  और खुलकर स्त्री समलैंगिक सम्बंधों का समर्थन करती हैं. नैंसी को यह अभियान अपने स्त्रीवादी सोच के अनुरूप लगा और उन्होंने  इसका उन्मुक्त समर्थन  किया. उन्होंने बाद में कहा कि “मैं भी चाहती थी  कि इस मुल्क की स्त्रियों को अपने राष्ट्रगान में जगह मिले. मैं चाहती  थी कि मेरे जीते जी ही ऐसा हो जाए.” अपने प्रयासों को और तेज़ करते हुए उन्होंने इसके लिए एक संगठन भी बनाया. लेकिन उनका  मनचीता हो पाता उससे पूर्व ही उनका कार्यकाल पूरा हो गया. उनके बाद भी प्रयास ज़ारी रहे और आखिरकार पिछले बरस जून में हाउस ऑफ कॉमन्स ने इस बदलाव  को लाने वाले बिल  को परित कर ही दिया. नैंसी के अधूरे काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया एक अन्य स्त्रीवादी सीनेटर फ्रांसिस लैंकिन ने. उनका कहना था कि “मैं एक ऐसी दुनिया में जीना कहती हूं जिसमें पहले ही दिन से सभी  के लिए समान अवसर हों. क्या इस बिल से ऐसा हो जाएगा? नहीं. लेकिन कम से कम यह तो होगा कि मेरी पोती मुझसे यह सवाल नहीं करेगी कि इस गान में केवल बेटे ही क्यों हैं? इसमें बेटियों का ज़िक्र क्यों नहीं है? अब ऐसा नहीं होगा.” और आखिर यह बिल पास हो ही गया. अब इस गान में ऑल दाई सन्स कमाण्ड की जगह इन ऑल ऑफ अस कमाण्ड गाया जाएगा.

इस बिल पर सबसे खूबसूरत प्रतिक्रिया ज़ाहिर की कनाडा की विख्यात लेखिका मार्गरेट एटवुड ने. उन्होंने नैंसी को सम्बोधित एक पत्र में लिखा, “एक कृतज्ञ राष्ट्र की तरफ से तुम्हारा शुक्रिया. सिर्फ वो ही व्यक्ति तुम्हारा आभार नहीं मानेगा जो यह चाहता है कि मैं जिस चट्टान के नीचे से निकल कर आई हूं, फिर से जाकर उसी के नीचे घुस जाऊं.”

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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 13 फरवरी, 2018 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ. 

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