हाल में हुई एक शोध
से यह पता चला है कि जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का बुरा असर पुरुषों की बजाय स्त्रियों पर ज़्यादा पड़ता है.
ब्रिटेन की फिज़ीयोलॉजिकल सोसाइटी के माध्यम से लगभग दो
हज़ार वयस्कों पर करवाई गई इस शोध के माध्यम से यह जानने का प्रयास किया गया था कि
जीवन में घटित होने वाली महत्वपूर्ण घटनाएं पुरुषों को अधिक प्रभावित करती हैं या
महिलाओं को. हालांकि उक्त सोसाइटी ने यह शोध एक भिन्न उद्देश्य से कराई थी, इसके निष्कर्षों
को अनेक तरह से समझा जा सकता है. सोसाइटी ने यह शोध लोगों में इस बात की जागरूकता
के प्रसार के लिए कराई थी कि शरीर की
कार्यप्रणाली पर तनावों का बहुत गहरा असर पड़ता है इसलिए लोगों को
यथासंभव तनावों से बचना चाहिए. सोसाइटी का मानना है कि तनाव के दौरान उनका सामना
करने के लिए हमारी देह जो हॉर्मोन्स रिलीज़
करती है वे रक्त प्रवाह में घुल मिल जाते हैं,
और
इसका कुप्रभाव हमारे हृदय,
पाचन तंत्र और रोग निरोधक तंत्र पर पड़ता है. यही नहीं, बार-बार पैदा
होने वाले और लम्बे समय तक बने रहने वाले
तनावों की वजह से दीर्घकालीन शारीरिक समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं. यही वजह है कि
फिज़ीयोलॉजिकल सोसाइटी ने एक पूरे साल
के कार्यक्रम तनावों को समझने-समझने को समर्पित किये हैं और इस शृंखला के
अंतर्गत सार्वजनिक व्याख्यान और सेमिनार आयोजित किये जाएंगे.
जिस रिपोर्ट की हम यहां
चर्चा कर रहे हैं उसे ज़ारी करते हुए फिज़ीयोलॉजिकल
सोसाइटी की नीति और संचार समिति की
अध्यक्षा ने एक बहुत अर्थपूर्ण बात कही है. उनका कहना है आधुनिक विश्व अपने साथ
जिस तरह के तनाव ला रहा है,
पचास बरस पहले उनकी कल्पना तक नामुमकिन थी. अपनी बात को स्पष्ट करते
हुए उन्होंने तनाव उपजाने और बढ़ाने वाली दो
चीज़ों के नाम लिये हैं: सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन्स.
सोसाइटी की यह शोध 1967
में की गई बहुत विख्यात होम्स और राहे के
तनाव विषयक अध्ययन की ही अगली कड़ी है. जहां इस 1967 वाले अध्ययन में जीवन
की कुल 43 महत्वपूर्ण घटनाओं के आधार पर तनाव का आकलन किया गया था, वर्तमान
अध्ययन में घटनाओं की संख्या को घटाकर मात्र अठारह कर दिया गया है. यह माना गया है
कि बहुत सारी घटनाएं या तो एक दूसरे में समायोजित हो जाती हैं या अब उतनी
महत्वपूर्ण नहीं रह गई हैं. इस बार के अध्ययन में जिन अठारह घटनाओं को आधार बनाया
गया है वे ये हैं: जीवन साथी का निधन, कारावास, बाढ़ या आग के कारण घर का नुकसान, गम्भीर बीमारी,
काम से निकाल दिया जाना, दीर्घकालीन सम्बंध का
टूट जाना, पहचान की चोरी, आर्थिक
समस्या, नई नौकरी की शुरुआत, शादी की
तैयारियां, पहले बच्चे का जन्म, आने
जाने में नष्ट होने वाला समय, आतंकवादी ख़तरे, स्मार्टफोन का खो जाना, छोटे से बड़े घर में जाना, ब्रेक्सिट,
छुट्टियां मनाने जाना, अपने काम में कामयाबी
या पदोन्नति.
इस अध्ययन में इन अठारह
महत्वपूर्ण घटनाओं के संदर्भ में यह पड़ताल की गई है कि इनमें से किन के कारण
पुरुषों को और किन के कारण स्त्रियों को ज़्यादा तनाव होता है, और सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात यही है कि सारी
की सारी अठारह घटनाओं की वजह से पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को अधिक तनाव होता
है. तनाव का आकलन दस के पैमाने पर किया गया है, और
उदाहरणार्थ यह पाया गया है कि जीवन साथी की मृत्य की वजह से पुरुषों को 9.13 और
स्त्रियों को 9.7 तनाव होता है. इसके बाद पुरुषों और स्त्रियों में होने वाले तनाव
का अंतर भी अंकों में प्रदर्शित किया गया
है. इस तालिका के अनुसार स्त्री पुरुष में सर्वाधिक यानि 1.25 का अंतर आतंकवादी
खतरे के मामले में पाया गया है. पुरुष इससे 5.19 और स्त्रियां 6.44 तनाव महसूस
करती हैं. इससे कुछ कम यानि 0.74 तनाव अंतर गम्भीर रोग के मामले में और उससे कुछ
और कम यानि 0.71 अंतर आर्थिक मामलों अथवा बड़े घर में जाने के मामले में पाया गया
है. मज़े की बात यह कि स्त्री और पुरुषों के तनावों में सबसे कम यानि 0.19 का अंतर
पहली संतान के जन्म को लेकर है. एक रोचक बात यह भी है कि ज़्यादा से कम तनाव का
क्रम स्त्री और पुरुष में एक-जैसा है लेकिन अलग-अलग घटनाओं में वह तनाव का अंतर
घटता बढ़ता रहता है. इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि जहां बीमारी के मामले में
उम्र बढ़ने के साथ तनाव की तीव्रता बढ़ती है वहीं स्मार्टफोन्स न्स के मामले में इसका उलट होता है, यानि इस वजह से युवा पीढ़ी अधिक तनावग्रस्त होती है.
अंतर
चाहे जितना हो,
इस अध्ययन से यह तो पता चल ही गया है कि विभिन्न घटनाओं का असर
पुरुषों की तुलना में स्त्रियों पर ज़्यादा होता है. स्वाभाविक ही है कि यह बात उनके लिए एक चेतावनी
भी है.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 21 मार्च, 2017 को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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