आधुनिक विज्ञान जिस तेज़ गति से नए नए करतब
करता जा रहा है उससे हम एक साथ ही चकित भी हो रहे हैं और चिंतित भी. चकित होने की
वजह तो यह है कि विज्ञान की नव सृजन की गति हमारी कल्पना से भी आगे निकली जा रही
है. मैं तो प्राय: सोचता हूं कि अगर कोई चमत्कार हो जाए और सौ बरस पहले रहा कोई
व्यक्ति आज की दुनिया में आ जाए तो वह अपने चारों तरफ की दुनिया देखकर पगला ही
जाएगा. इधर हाल में जापान से एक नए सृजन की जो ख़बरें आई हैं वे एक बार फिर हमें
दांतों तले उंगलियां दबाने को मज़बूर कर रही हैं. जापान के वैज्ञानिकों की एक टीम
ने साया नाम की एक कन्या का निर्माण किया है, और यह कन्या आजकल जापान की बहुत बड़ी
सेलेब्रिटी बनी हुई है. स्कूली परिधान में सजी-धजी झालरदार बालों वाली इस सत्रह वर्षीय
बाला को जो भी देखता है उसका ध्यान
इस बात की तरफ जाता ही नहीं है कि वो इंसान नहीं है. जो भी उसे देखता है वो सच्चाई को जानने के बाद भी यही कहता है कि वह
एकदम वास्तविक लड़की लगती है.
जापान में एक बड़ी टीम ने काफी लम्बे प्रयासों के बाद इस साया नाम वाली कन्या का सृजन किया है. इस टीम की ग्राफिक
आर्टिस्ट यूका इशिकावा और उनके पति ने जब
साया की तस्वीरें ऑनलाइन जारी की तो
दुनिया ने पहली बार यह जाना कि कम्प्यूटर डिज़ाइन से क्या कमाल किया जा सकता है.
यूका इशिकावा को लोगों से जो
प्रतिक्रियाएं मिली हैं वे अभिभूत कर देने वाली हैं. जिन्होंने भी उनके सृजन साया
को देखा है, यही कहा है कि यह तो एकदम वास्तविक लगती है. और लगेगी भी क्यों नहीं!
बीते एक साल के दौरान इस दम्पती ने साया को हूबहू इसान बनाने के लिए मेहनत भी तो
कम नहीं की है. यूका इशिकावा ने बताया है
कि उन्होंने साया को मानवीय बनाने के लिए उसके सिर से अंगूठे तक कड़ी मेहनत की है. अपनी मेहनत की बात
को और स्पष्ट करते हुए यूका इशिकावा ने एक
मार्मिक बात कही है. उन्होंने कहा है, “हम खुद को साया के पैरेण्ट्स के तौर
पर नहीं देखते हैं, लेकिन हमने उसे अपनी
बेटी की तरह ही प्यार और लगाव से तैयार किया है.” यूका और उनकी टीम ने साया के सृजन के लिए टोक्यो के
शिबुआ इलाके में रहने वाली लड़कियों को मानक माना है. साया में उन्होंने जापानी
महिलाओं में पाए जाने वाले तमाम गुणों को शामिल किया है, इसलिए वह दयालु, भली और
नैतिक मूल्यों से युक्त लड़की है. क्यूट तो वो है ही. और हालांकि इस कृत्रिम संरचना
की अपनी कोई उम्र नहीं है, उसे सत्रह वर्षीया कन्या के रूप में तैयार किया गया है.
वैसे साया के सृजन की कथा बड़ी रोचक है. मूलत:
इस टीम को एक शॉर्ट फिल्म के लिए एक किरदार की रचना करनी थी, और इस तरह साया का
सृजन एक साइड प्रोजेक्ट भर था. लेकिन जब यह प्रोजेक्ट बहुत सराहा गया तो यूका इशिकावा
को इसमें अपरिमित सम्भावनाएं नज़र आने लगीं, और तब उन्होंने और उनके पति ने अपनी
नौकरी छोड़ दी और वे पूरी तरह से साया के सृजन में जुट गए. नौकरी से बचाए हुए पैसों
से उन्होंने अपना चूल्हा जलाए रखा और प्रोजेक्ट
के लिए धन सुलभ कराया कॉरपोरेट
घरानों ने. अब जबकि साया पर काफी काम किया जा चुका है, और इसी सप्ताह उसका पहला
एनिमेटेड प्रारूप जापान में आयोजित होने वाली कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक एक्ज़ीबीशन में प्रदर्शित
किया जा रहा है, इशिकावा युगल महसूस करते हैं कि उन्हें अभी इसकी चाल-ढाल को और
संवारना है. उन्हें लगता है कि साया जब
चलती है तो उसके मूवमेण्ट सहज नहीं बल्कि झटकेदार
होते हैं. अपने सपनों को और विस्तार देते हुए अब इशिकावा दम्पती इसे एक वर्चुअल ह्यूमन के रूप में विकसित करना
चाहते हैं. उनका खयाल है कि आर्ट तकनीकी की मदद से वे साया को फ्रेम के दायरे से
बाहर निकाल कर आम लोगों के संसार में ला सकेंगे. तब साया आम लड़कियों की तरह बात
करेगी और लोगों को भावनात्मक संबल भी प्रदान कर सकेगी.
और यहीं उस बड़े ख़तरे की आहट भी सुनी जा
सकती है जो इस प्रयोग की सफलता के पीछे से झांक रहा है. सोचिये, अगर यह प्रयोग
कामयाब रहा तो क्या हमें इस आशंका से भयभीत नहीं होना चाहिए कि कल को कोई ताकतवर
सत्ता अपनी मनपसंद प्रजा का सृजन नहीं कर डालेगी! और अगर वह प्रजा भली नहीं हुई
तो? अगर किसी ने दैत्यों की ही एक दुनिया का निर्माण कर डाला तो? बेशक ये
सम्भावनाएं, या आशंकाएं अभी हमारे बहुत नज़दीक नहीं हैं लेकिन यह हमारे अपने हित
में होगा कि हम इनके बारे में सावचेती बरतें.
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जयपुर से प्रकाशित लोकप्रिय अपराह्न दैनिक न्यूज़ टुडै में मेरे साप्ताहिक कॉलम कुछ इधर कुछ उधर के अंतर्गत मंगलवार, 01 नवम्बर को इसी शीर्षक से प्रकाशित आलेख का मूल पाठ.
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